विभिन्नता व मुनाफे के लिए अनुकूल है बासमती तथा सब्ज़ियों की काश्त

कम समय में पकने वाली पी.आर.-126 किस्म के अतिरिक्त धान की अन्य किस्मों की पौध लगभग लग चुकी है। अब बासमती की कम समय में पकने वाली पूसा बासमती-1509 तथा पूसा बासमती-1847 किस्मों की पौध किसान लगा रहे हैं। धान की पी.आर.-126 किस्म की पौध भी लग रही है। इन किस्मों की पौध की आयु रोपाई के समय 25 दिनों से अधिक नहीं होनी चाहिए, क्योंकि ये पकने में कम समय यानी 120-125 दिन ही लेती हैं। पूसा बासमती-1121, पूसा बासमती-6 (पूसा-1401) तथा पूसा बासमती-1885 एवं पूसा बासमती-1886 की पौध लगभग लग चुकी है। 
पंजाब तथा हरियाणा के उत्पादक अधिकतर बासमती की पूसा बासमती-1121, पूसा बासमती-1885, पूसा बासमती-1509, पूसा बासमती-1847 तथा धान की पी.आर.-126 आदि किस्मों को प्राथमिकता दे रहे हैं। उन्हें इन किस्मों के अधिक लाभदायक रहने की सम्भावना है। पूसा बासमती-1121, पूसा बासमती-1509 किस्मों की मांग तो खाड़ी के देशों से भी अधिक है। 
नि:संदेह किसानों को फसल तथा किस्मों का चयन करते समय मुनाफे पर मुख्य रूप से विचार करना होता है। गत वर्ष पूसा बासमती-1121 तथा पूसा बासमती-1509 का दाम उत्पादकों को 4200 से 4800 रुपये प्रति क्ंिवटल तक मिला। किसानों को खरीफ में किसी फसल से पहले इतना मुनाफा नहीं हुआ। उन्होंने एक लाख रुपये प्रति एकड़ तक भी फसल का लाभ कमाया है। इसी कारण इस वर्ष उनकी बासमती के अधीन रकबा बढ़ाने की रुचि ज़ोर पकड़ रही है। उनकी योजनाबंदी के अनुसार लगभग 8 लाख हैक्टेयर से अधिक रकबे पर बासमती की काश्त की जाएगी जबकि गत वर्ष 5.96 लाख हैक्टेयर रकबे पर बासमती की बिजाई की गई थी और पंजाब सरकार ने 7 लाख हैक्टेयर का लक्ष्य रखा हुआ है। कुल धान की काश्त के अधीन (बासमती सहित) पंजाब में 31 लाख हैक्टेयर रकबा आने की सम्भावना है। आल इंडिया राइस एक्सपोर्ट्स एसोसिएशन के पूर्व अध्यक्ष तथा प्रसिद्ध निर्यातक विजय सेतिया के अनुसार इस वर्ष भी किसानों को बासमती किस्मों का लाभकारी दाम मिलने की पूरी उम्मीद बनी हुई है। किसानों की सुरक्षा के लिए सरकार को सिर्फ वह बासमती निर्यात करने को नियमबद्ध कर देना चाहिए, जो उत्पादकों से 3500-3800 रुपये प्रति क्ंिवटल से अधिक दाम पर खरीदी जाए। गत वर्ष 46 लाख टन बासमती भारत से निर्यात हुई, जिसमें पंजाब का लगभग 40 प्रतिशत योगदान रहा। लगभग इतनी ही बासमती की भारत में खपत हुई। निर्यात करने वाली तथा घरेलू खपत की मात्रा में इस वर्ष कुछ और वृद्धि होने की सम्भावना है। बासमती के वैज्ञानिकों के अनुसार यदि पंजाब में 10 लाख हैक्टेयर रकबा बासमती की काश्त के अधीन हो जाए, तो भी किसानों को लाभदायक दाम मिलते रहने की सम्भावना है। जी.आई. ज़ोन में पंजाब, हरियाणा के अतिरिक्त अन्य राज्यों में बासमती का उत्पादन बढ़ने की गुंजाइश बहुत कम है। बासमती के अंतर्राष्ट्रीय स्तर के प्रसिद्ध ब्रीडर तथा इंडियन एग्रीकल्चरल रिसर्च इंस्टीच्यूट के निदेशक तथा उप-कुलपति डा. अशोक कुमार सिंह का कहना है कि किसान पी.बी.-1509 तथा पी.बी.-1847 किस्मों को अगेता न लगाएं। इन किस्मों के चावल की गुणवत्ता भी पी.बी.-1121 के चावल से कम नहीं। किसानों द्वारा पी.बी.-1509 की बिजाई 10 जुलाई के बाद करना बेहतर होगा। 
फसली विभिन्नता के लिए बासमती बड़ी अनुकूल फसल है। फल, फूल, दालों या सोयाबीन की काश्त आम किसान नहीं कर रहे। सब्ज़ियों की काश्त के अधीन कुछ रकबा बढ़ने की सम्भावना अवश्य है। किसानों को ‘पूसा हरा बैंगन’ जिसका रूप सब्ज़ रंग का है, का औसत उत्पादन 40-45 टन प्रति हैक्टेयर है तथा दूसरी किस्म ‘पूसा सफेद बैंगन’ जिसका रंग सफेद है, फल छोटा व आकार मध्यम है। इसका औसत उत्पादन 35 टन प्रति हैक्टेयर है। ये दोनों किस्में खरीफ के मौसम में बिजाई के लिए अनुकूल हैं। इनकी बिजाई की जानी चाहिए। हैक्टेयर की पौध तैयार करने के लिए सिर्फ 400-500 ग्राम बीज की ज़रूरत है। पूसा हरा बैंगन 55 दिन में तथा सफेद बैंगन 50 से 55 दिन में पक कर तैयार हो जाता है। एक और लाभदायक फसल बीज रहित खीरा ‘पूसा खीरा 6’ है, जिस का गहरा रंग तथा बढ़िया स्वाद होने के कारण खपतकारों की पसंद है। पूसा खीरा 6 किस्म के खीरे की कीमत भी मंडी में लाभदायक मिलती है। इस किस्म को पॉली हाऊस में लगाया जाता है। इसके बीज को कार्बेंडाज़ाम से संशोधित कर लेना चाहिए। 
करेले की ‘पूसा रसदार’ किस्म की काश्त भी किसानों के लिए लाभदायक है। इसकी पौध 28 से 32 दिन में तैयार हो जाती है। फल 40 से 45 दिन में पक कर तैयार मिल जाता है। किसानों को हरा प्याज़, ‘पूसा स्योख्या’ की भी बिजाई करनी चाहिए। यह किस्म पूरा वर्ष लगाई जा सकती है। इसके पत्ते सब्ज़ नीले रंग के होते हैं। खरीफ में बासमती तथा सब्ज़ियों की काश्त अधिक मुनाफे तथा विभिन्नता के लिए अनुकूल है।