आर्थिकता की चुनौतियां 

पिछले 7 महीने से कोरोना के कारण जिस प्रकार के हालात देश में बने रहे हैं, उनसे ऐसा प्रतीत होता रहा है कि देश में आर्थिक मंदी के साथ लोगों को अतीव तंगी के संकट में से गुज़रना पड़ेगा। दुनिया भर के अधिकतर देशों में भी ऐसा ही होते दिखाई देता रहा है। प्रत्येक देश ने अपने-अपने ढंग से इस स्थिति से निपटने के लिए अपनी पूरी शक्ति लगा रखी है। भारत पहले ही गरीबी से ग्रस्त देश है। यहां करोड़ों लोग ऐसे हैं जो प्रतिदिन कमा कर अपने परिवार को पालते  हैं। उनकी प्रतिदिन की यह आय भी सुनिश्चित नहीं है। इसलिए उन्हें रोटी-रोज़ी के लिए कड़ा संघर्ष करना पड़ता है। ऐसे समय में यदि कोरोना महामारी के होते हुए गरीब लोगों को कड़ी तालाबंदियों में से गुज़रना पड़े तो उनका जीवन अनिश्चित होकर रह जाता है। सरकार एवं सामाजिक संस्थाओं को यत्नों के बावजूद यह अनुमान लगाया जा सकता है कि आम व्यक्ति इस दौर में से किस प्रकार गुजरा होगा। इसी कारण इस काल में आर्थिक समस्याओं से साथ-साथ सामाजिक समस्याएं भी बढ़ी हुई दिखाई दी हैं। मानवीय संबंधों में दरारें भी उभरी हैं। यह अत्यधिक दर्द भरा समय था जिसका विस्तार हम पढ़ते सुनते रहे हैं। इसका प्रभाव देश की कर प्रणाली पर भी पड़ा। इससे जीएसटी भी कम हुई। केन्द्र सरकार की ओर से भी राज्यों को इस संबंध में मुआवज़ा दिये जाने से इन्कार अथवा आनाकानी की जाती रही है। इसकी स्थान पर केन्द्रीय वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने प्रांतों को  अपने तौर पर ऋण लेने की सलाह दी है। प्रांत पहले ही वित्तीय संकट में से गुज़र रहे हैं। आर्थिक मंदी का रोज़गार पर भी घातक प्रभाव पड़ा है। सरकारी कर्मचारियों के वेतन एवं पैंशनें भी बुरी तरह से प्रभावित हुई हैं। देश की विकास दर की गति अतीव धीमी हो गई है। इसका खुलासा पिछले दिनों विश्व बैंक ने भी किया है तथा कहा है कि भारत की अर्थिक स्थिति पहले से भी बुरी हो गई है। व्यापारियों, बड़ी कम्पनियों एवं आम लोगों को बड़े झटकों में से गुज़रना पड़ा है। तालाबंदी तो महामारी के प्रभाव को घटाने रके लिये लागू की गई थी परन्तु इसने देश को आर्थिक तौर पर अत्यधिक कमज़ोर कर दिया है। विश्व बैंक के अनुसार वर्ष 2020 में शुरू हुए वित्तीय वर्ष में भारत की विकास दर में 9.6 प्रतिशत की कमी आएगी। चाहे आगामी वर्ष इस पक्ष से इसके संभल कर अपने पैरों पर खड़े होने की सम्भावना नज़र आती है। कुछ लोगों को खो गई नौकरियां वापिस मिल सकती हैं तथा बैंकों का कुछ भुगतान भी हो सकता है परन्तु अधिकतर बड़ी-छोटी कम्पनियों ने अपने हाथ खड़े कर दिये हैं। भारतीय रिज़र्व बैंक के पूर्व गवर्नर सी. रंगाराजन ने तो यह भी अनुमान लगाया है कि चालू वित्तीय वर्ष में केन्द्र एवं राज्य सरकारों का सांझा वित्तीय घाटा बढ़ कर 6 प्रतिशत के मुकाबले 14 प्रतिशत तक पहुंच सकता है। उन्होंने यह भी कहा है कि यदि जीएसटी के नुक्सान की पूर्ति के लिए सरकार और ऋण लेने का फैसला करती है तो यह वित्तीय घाटा और बढ़ सकता है। एशियाई विकास बैंक ने भी लगभग ऐसी ही भविष्यवाणी की  है। आगामी समय में यदि आवाजाही आम की तरह हो जाती है, कारोबारी गतिविधियां आम की भांति बढ़ जाती हैं तो भारत की विकास दर 8 प्रतिशत रह सकती है। अब केन्द्रीय वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने यह घोषणा की है कि वित्तीय योजनाओं पर खर्च करने के लिए राज्य सरकारों को 12 हज़ार करोड़ रुपए ब्याज रहित दिये जाएंगे। इसके साथ ही उन्होंने 25 हज़ार करोड़ रुपए वित्तीय तौर पर खर्च करने की योजनाओं की भी घोषणा की है तथा कहा है कि यह राशि सड़कों, शहरी विकास एवं पानी उपलब्ध कराने की योजनाओं पर खर्च होगी। उन्होंने त्योहारों के मौसम पर सरकारी कर्मचारियों को 10 हज़ार रुपए बिना ब्याज देने की भी घोषणा की है। इससे लोगों की खर्च करने की सामर्थ्य में वृद्धि होगी तथा आर्थिक गतिविधियां भी बढ़ेंगी। इस समय आर्थिकता को पुन: पटरी पर लाने के लिए सभी पक्षों से भारी यत्न किये जाने की आवश्यकता है। सभी प्रकार के उत्पादन एवं मांग में वृद्धि होने से विकास की गति को तेज किया जा सकता है। इस चुनौतीपूर्ण समय में केन्द्र एवं राज्य सरकारें इस दिशा में अपने यत्नों में कितनी सफल होती हैं, यह देखने वाली बात होगी। 

          —बरजिन्दर सिंह हमदर्द