नव संस्कृति के सृजक —भगवान वाल्मीकि 

भगवान वाल्मीकि जी की शोभा भारत में ही नहीं पूरे विश्व में फैली हुई है, ऐसा इसलिए है क्योंकि वह संस्कृत श्लोक के पहले निर्माता हैं, वह आदि कवि हैं और कवि शब्द का सम्बोधन परमात्मा के लिए भी किया जाता है और वेद को भी काव्य कहा गया है। रामायण वाल्मीकि जी की प्रथम काव्य रचना है, रामायण को आदि काव्य इसलिए कहा गया है कि जब श्री वाल्मीकि जी द्वारा रामामण लिखी गई थी। उस समय कोई भी ग्रंथ छंदमय भाषा द्वारा लिपिबद्ध नहीं किया गया था, और यह उस समय की लोक भाषा पर आधारित थी। वाल्मीकि जी को सम्मान के तौर पर आदि कवि, ब्रह्म ज्ञानी तथा महर्षि आदि नामों से सम्मानित किया जाता है। श्री वाल्मीकि जी अपनी रचना रामायण के कारण पूरे विश्व में प्रसिद्ध हैं, इसी रचना को आधार बना कर अनेक राम कथाएं लिखी गईं जैसे : कम्बन रामायण, आध्यात्मिक रामायण, श्री राम चरित मानस आदि। वाल्मीकि जी की रामायण की सुन्दरता के बारे, सूर्य ग्रंथ के कर्ता कवि संतोख सिंह लिखते हैं : वाल्मीकि कृत कथा सुनी जबि। बंदन बिखै रची तबि हम मबि। राम कथा पावन बिसतारी। सुनि सभ नीकी रीति उतारी।।आदि कवि वाल्मीकि ने जहां राम का जीवन चरित्र वर्णन किया है, वहीं मानवीय सामाजिक नैतिक-मूल्यों तथा भारतीय संस्कृति के उल्लेख अपने महाकाव्य में किया है। यह काव्य चौबीस हज़ार श्लोकों में रचित संस्कृत साहित्य का उत्तम नमूना है। वाल्मीकि रामायण का संसार की अनेक भाषाओं में अनुवाद उपलब्ध है चाहे कि वाल्मीकि रामायण के अतिरिक्त अन्य कई राम कथाएं भी रची गई हैं परन्तु वाल्मीकि रामायण में, लिखी गई राम कथा एक अद्भुत रचना है : इसमें राज्य प्रबंध, सामाजिक जीवन, जंगल-नदियां, वन्य-जीव तथा प्राकृतिक सौन्दर्य का वर्णन किया गया है। भगवान वाल्मीकि जी के जीवन काल को निर्धारण करना एक कठिन विषय है, आधुनिक विद्वानों ने महाभारत काल को ईसा पूर्व 5000 वर्ष माना है और रामायण काल महाभारत काल से पहले हुआ है, क्योंकि महाभारत में रामायण के पात्रों का वर्णन है परन्तु रामायण में नहीं। यही रामायण काल ही महर्षि वाल्मीकि जी का जीवनकाल माना जा सकता है। कवि तुलसी दास ने वाल्मीकि जी को त्रिकालदर्शी कहा है, ‘तुम त्रिकालदर्शी मुनि नाथा विश्व बदर जिम तुमारे हाथा’ अर्थात् जब श्री राम चन्द्र जी वाल्मीकि जी को चित्रकूट पर्वत स्थित आश्रम में मिलते हैं और दंडवत प्रणाम करके कहते हैं कि पूरा विश्व आपके हाथ में एक बेर की भांति है।’ संत रविदास जी महाराज भी श्री वाल्मीकि जी को त्रिकालदर्शी होने का प्रमाण अपनी वाणी में देते हैं, ‘लोग बपुरा किआ सराहै तीन लोक प्रवेस’। कबीर जी वाल्मीकि को द्वापर युग में होने का संकेत अपने बीजक ग्रंथ में देते हैं, ‘सपुच धार सतिगुरु जी आए पांडव के यग संख बजाए’ महाभारत में एक कथा का उल्लेख है कि पांडवों द्वारा किये गए यज्ञ में श्री कृष्ण जी की सलाह पर ब्रह्म ज्ञानी वाल्मीकि जी को यज्ञ में बुलाया गया, जिन्होंने पांडवों का यज्ञ सम्पूर्ण किया। महर्षि वाल्मीकि जी ने समाज को स्त्री का आदर-सम्मान करने का उपदेश दिया है। पराई स्त्री का निरादर करने वाले रावण का कुछ क्षणों में ही नाश हो गया। इस तरह रामायण को माध्यम बना कर महर्षि वाल्मीकि जी ने भारतीय संस्कृति की नींव रखी है, जिस पर चलकर समूचे विश्व का समाज सुख-शांति से अपना जीवन यापन कर सकता है। महर्षि वाल्मीकि जी ने पराई स्त्री अधर्म को फटकार लगाई है और मानवीय समाज को सुचेत किया है। धर्म की व्याख्या करते हुए श्री वाल्मीकि जी कहते हैं कि ‘सबसे उत्तम धर्म वह है, जो शरणागत की रक्षा करता है चाहे कि वह दुश्मन ही क्यों न हो। मनुष्य को हमेशा सज्जन व्यक्ति की ही संगत करनी चाहिए। भगवान वाल्मीकि जी ने मनुष्य को पुरुषार्थ करने के लिए ही प्रेरित किया है, भाग्य नाम की कोई वस्तु नहीं है सब कुछ मनुष्य द्वारा की हुईर् अपनी मेहनत ही है।’ श्री वाल्मीकि जी कहते हैं कि जो मनुष्य यह समझते हैं कि सब कुछ भाग्य पर ही आधारित है, वे नष्ट हो जाते हैं, किस्मत तो मूर्ख लोगों की कल्पना है।’ भगवान वाल्मीकि जी ने जन-कल्याण तथा मोक्ष प्राप्ति के लिए एक और ग्रंथ की रचना की, जो संसार में महा रामायण के तौर पर प्रसिद्ध है। यह ग्रंथ अद्वैतवाद का उत्तम नमूना है, आध्यात्म तथा भारतीय दर्शन का समूचा सार इसमें शामिल है। इसमें 33000 श्लोक, 7 प्रक्रण तथा 674 सरग हैं। भगवान वाल्मीकि ने रामायण तथा महा रामायण द्वारा समूचे मानव जगत की संस्कृति की नींव रखी, जिस पर चल  कर मनुष्य भवसागर से पार हो सकता है। महर्षि श्री वाल्मीकि जी का हृदय प्राणी मात्र के लिए प्यार तथा हमदर्दी भरा था।  वह अपने समय के महान् विद्वान, नारी रक्षक, ब्रह्म ज्ञानी तथा आदर्श परम्पराओं को रखने वाले महापुरष थे। ब्रह्मा जी का वाक्य है कि, ‘जब तोड़ी इस पृथ्वी पर नदियां, पहाड़, वन, जीवन रहेगा वाल्मीकि रामायण का प्रचार होता रहेगा और अपनी लिखितों के कारण संसार में अमर रहेंगे।’

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