वाहो वाहो गोबिंद सिंह, आपे गुरु चेला

सर्वस्वदानी, साहिब-ए-कमाल, दशम पिता श्री गुरु गोबिंद सिंह जी का जीवन युग प्रवर्त्तक इतिहास की गाथा बयान करता है। गुरु साहिब जी की शख्सियत का प्रत्येक पक्ष बड़े अर्थ और प्रेरणा देता है। आप जी का जीवन इतिहास क्रांतिकारी संदेश देने वाला है। गुरु साहिब जी के साहिबज़ादों की शहादत से संबंधित साका श्री चमकौर साहिब एवं साका सरहिंद को भावपूर्ण और भावुक शब्दों के द्वारा बयान करने वाले अल्ला यार खां जोगी ने गुरु साहिब की शख्सियत को रूपमान किया है। वह लिखते हैं कि नि:संदेह मेरे हाथ में कलम है परन्तु श्री गुरु गोबिंद सिंह जी की सम्पूर्ण प्रशंसा फिर भी नहीं लिखी जा सकती :
करतार की सुगंध है, नानक की कसम है।
जितनी भी हो गोबिंद की तारीफ वोह कम है। 
श्री गुरु गोबिंद सिंह जी की बहुपक्षीय शख्सियत का अध्ययन हमें प्रत्येक मनोभाव के रूबरू करवाता है। उनका जीवन दया, धर्म, संतोष, बहादुरी, कुर्बानी और अकाल पुरख पर अटूट विश्वास रखने की प्रेरणा देता है। इस नूरानी शख्सियत में श्री गुरु नानक देव जी की ज्योति जल रही थी, जिन्होंने पंद्रहवीं सदी में विश्व को सच्चे धर्म पर चलाने हेतु मानवीय एकता, धार्मिक समानता और आज़ादी की मानववादी विचारधारा की रोशनी फैलाई। इसी विचारधारा को पांचवें पातशाह श्री गुरु अर्जुन देव जी ने इस प्रकार बयान किया :
-कोई बोलै राम राम कोई खुदाय।। 
कोई सेवै गुसइया कोई अलाय।।
 (श्री गुरु ग्रंथ साहिब, 885)
ऐसी सोच और ऐसा बहुमूल्य विरसा श्री गुरु गोबिंद सिंह जी को विरसे में मिला, जिससे उनकी शख्सियत एक सुच्चे मोती जैसी साफ-सुथरी हो गई, ‘हमु गुरु गोबिंद सिंह, हमु नानक अस्त। हमु रत्न जौहर, हमु माणक अस्त।’ भाई नंद लाल जी के ये सम्बोधन लफ्ज़ गुरु साहिब पर पूर्णत: अनुकूल प्रतीत होते हैं।  इस युग प्रवर्त्तक ज्योति का आगमन पौष सुदी सातवीं (23 पौष) सम्मत 1723, सन् 1666 में पटना शहर में माता गुजरी जी की कोख से हुआ। इस समय आप जी के पिता गुरुदेव श्री गुरु तेग बहादुर साहिब ढाका में धर्म प्रचार हेतु गए हुए थे। उस समय हिन्दोस्तान में औरंगज़ेबी कहर बरपा हो रहा था। धर्म के नाम पर अधर्म बढ़ रहा था। भारत की संस्कृति और हिन्दू धर्म औरंगज़ेब के एक सूत्री जब्री धर्म परिवर्तन के नारे तले बेदर्दी से कुचले जा रहे थे। कश्मीर प्रदेश में तो हृदय-विदारक ज़ुल्म हो रहे थे। कट्टर इस्लामिक हुकूमत द्वारा प्रत्येक छोटा-बड़ा काम मुस्लिम धर्म को समर्पित होता था। ऐसे माहौल में भला गुरु घर कैसे अनभिज्ञ रह सकता था।   हमेशा की तरह अन्याय के विरुद्ध आवाज़ बुलंद करने वाली गुरु परम्परा भला चुप कैसे रह सकती थी, जिसने ज़ालिम बाबर के हिन्दोस्तान पर कहर भरे हमले की बेखौफ निंदा की और निर्दोष लोगों से हमदर्दी जतायी :
खुरासान खसमाना कीया हिन्दुस्तान डराया।।
आपै दोस न देई करता जमु करि मुगलु चढ़ाया।।
 (श्री गुरु ग्रंथ साहिब, 360)
औरंगज़ेब द्वारा फैलाये जा रहे डर और खौफ के माहौल में हिन्दोस्तानी लोगों के लिए सिर्फ एक ही आशा की किरण थी, वह थे श्री गुरु तेग बहादुर साहिब। गुरु साहिब जन-साधारण को हर तरह का डर-भय त्यागने और सच के रास्ते पर चलने का उपदेश दे रहे थे। आप हिन्दोस्तान के पीड़ित लोगों का केन्द्र बिंदु बने और कश्मीरी पंडितों की पुकार पर धर्म और न्याय की खातिर दिल्ली के चांदनी चौक में अपना आप कुर्बान कर दिया। गुरु साहिब जी की यह अद्वितीय कुर्बानी व्यर्थ नहीं गई। कई नई दिशाएं दे गई और सिख धर्म को नये पथों पर चलाने की प्रथाएं डाल गई। यह लहर श्री गुरु गोबिंद सिंह जी के रूप में प्रकट हुई। जब श्री गुरु तेग बहादुर साहिब शहीद हुए, तब आप जी की आयु सिर्फ नौ वर्ष थी। इतनी कम बाल आयु और इतना बड़ा हृदय कि पिता का कटा हुआ शीश सामने रख कर एक भी आंसू नहीं बहाया। हुकूमत के खौफनाक और आतंकी माहौल को खुले मन से स्वीकार किया। किसी तरह के डर के कारण छिप कर नहीं बैठे, अपितु अपनी भविष्य की नीतियों को क्रियात्मक रूप देने हेतु विचार-विमर्श एवं कोशिशों में जुट गए। इसी क्रम में खालसा पंथ का सृजन करके, सिख संघर्ष को नया बल और नई दिशा दी, जो युग प्रवर्त्तक सिद्ध हुई। 
इस कठिन रास्ते पर जहां आप जी के पिता जी शहीद हुए, वहीं आप जी के चारों साहिबज़ादे भी अपनी कीमती जानें कुर्बान कर गए। पंथ की चढ़दी कला और जुझारूपन को देख कर पूरा विश्व हैरान रह गया। गुरु साहिब जी ने फरमान किया है-
-सेव करी इनही की भावत अउर की सेवा सुहात न जीको।।
आगै फलै इनही को दयो जग मै जस अउर दयो सब फीको।।
-इनही की कृपा के सजे हम हैं नही मो से गरीब करोर परे।।
गुरु घर द्वारा विनम्र लोगों को मान-सम्मान और बेसहारों को सहारा, निराशितों को आश्रय मिला।  जिन पांच प्यारों को अमृतपान कराया, उनसे स्वयं भी अमृतपान किया। ‘वाहो वाहो गोबिंद सिंह आपे गुरु चेला’। संसार के धार्मिक इतिहास में ऐसी इन्कलाबी घटना कभी भी नहीं हुई और इसी घटना ने भारत के धार्मिक ही नहीं बल्कि राजनीतिक इतिहास को भी बदल कर रख दिया। गुरु साहिब द्वारा सजाए गए खालसा ने सदियों की ज़िल्लत और गुलामी की जंज़ीरें काट दीं और यही खालसा पंथ युग प्रवर्त्तक सिद्ध हुआ। दशम पातशाह श्री गुरु गोबिंद सिंह जी के प्रकाश पर्व के अवसर पर समूचे खालसा पंथ और गुरु नानक नाम लेवा संगतों को हार्दिक बधाई देते हुए अपील करती हूं कि महान गुरु साहिब जी के जीवन और उनके उपदेशों से दिशा प्राप्त करके मानवीय सरोकारों को समझने का यत्न करें और गुरु जी द्वारा प्रदत्त खंडे-बाटे की पाहुल छक कर खालसाई रहन-सहन के धारणी बनें। 
-अध्यक्ष, शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी,
 श्री अमृतसर