कृषि कानूनों से लेकर कोविड तक अस्तित्व की लड़ाई है

ठीक दो महीने पहले, 26 नवम्बर, 2020 को हमारे किसान रास्ते में पानी की बौछारों और लाठियों का सामना करते हुए दिल्ली की सरहद तक पहुँचे। आज, जब देश अपना 72वां गणतंत्र दिवस मना रहा है (कोविड महामारी के कारण हालाँकि कुछ सीमित रूप में), तब हज़ारों किसानों द्वारा ट्रैक्टरों पर राष्ट्रीय राजधानी की सड़कों पर निकलने का दृश्य इस तथ्य का सूचक है कि भारतीय संविधान और हमारे गणतंत्र के सिद्धांत पर कोई समझौता नहीं हो सकता और न ही इनको अलग किया जा सकता है। किसानों द्वारा अपने अस्तित्व के लिए किया जा रहा संघर्ष हमें हमेशा इस सत्य की याद दिलाएगा और यह याद रखने में भी मदद करेगा कि जिन सिद्धांतों पर भारत का ढांचा खड़ा है और जिसके निर्माण के लिए हमारे बड़ों ने अथक संघर्ष किया, उसे कुछ एक लोगों की मनमज़री से मिटाया या गिराया नहीं जा सकता।
दु:ख की बात है कि हमारा संवैधानिक गणराज्य, जो वह संघीय ढांचा है जिस पर भारतीय राजनीति की नींव रखी गई है, मौजूदा हुकूमत के अधीन सबसे बड़े ख़तरे का सामना कर रहा है।  केंद्र सरकार के पास कृषि जैसे राज्यों से सम्बन्धित विषय पर कानून बनाने का कोई अधिकार है ही नहीं और उसके द्वारा कृषि कानूनों को लागू करना हमारे संविधान और संघीय ढांचे, जिसका यह प्रतिनिधित्व करता है, के हरेक सिद्धांत का उल्लंघन है। यही संघीय ढांचा है, जिसकी रक्षा के लिए हमें लड़ना होगा।एक पंजाबी होने के नाते, मैं हमारे किसानों की हालत पर दुखी हूँ और एक भारतीय होने के नाते, मैं केंद्र की भाजपा के नेतृत्व वाली सरकार द्वारा किसानों की हालत के प्रति असंवेदनशील रवैए से हैरान भी हूँ। मैं कई बार कह चुका हूँ और दोबारा कह रहा हूँ कि केंद्र सरकार द्वारा कृषि कानून रद्द न करने के अडिय़ल रवैये का कोई ठोस कारण नहीं है। ये कानून जल्दबाज़ी में किसानों या अन्य सम्बन्धित पक्षों से बातचीत किए बिना लागू किए गए हैं। इस मुद्दे को अपने अभिमान का सवाल बनाने के पीछे कोई उचित वजह नजऱ नहीं आती। भारतीय गणराज्य का उत्सव भारत की प्रगति में पंजाब और यहाँ के किसानों द्वारा दिए गए योगदान के जिक्त्र के बिना अधूरा है। इसको तब तक अर्थहीन माना जायेगा जब तक केंद्र विनम्रता के साथ यह स्वीकार नहीं करता कि उसने हमारे साथ गलत किया है। केंद्र तुरंत अपनी भूल को सुधारे और इन कृषि कानूनों को रद्द करके किसानों के साथ चर्चा करके नये सिरे से शुरुआत करें। कोरोना के विरुद्ध लड़ाई अभी खत्म नहीं हुई है। हालाँकि कोरोना वायरस के संक्रमण के दुष्प्रभावों से हमें बचाने के लिए दो भारतीय टीकों की शुरुआत से इस महामारी के खत्म होने की उम्मीद जागी है। हमारे अग्रणी डॉक्टरों ने पहला टीका लगाकर हमें रास्ता दिखाया है और अब हमारी बारी है कि इसका पालन करें। यह एक अवसर है जो वाहेगुरु  ने हमें महामारी से बचाने के लिए प्रदान किया है। कुछ महीने पहले मैंने बार-बार पंजाब के लोगों को याद दिलाया था कि मास्क ही कोविड के खिलाफ सुरक्षा का एकमात्र उपाय है। आज मुझे यह बात करते हुए खुशी और गर्व महसूस हो रहा है कि वास्तव में भारत उस समय से बहुत आगे निकल चुका है और कोरोना वायरस के खिलाफ अब हम दो हथियारों के साथ लैस हैं। एक टीका और दूसरा मास्क। इसलिए आओ, हम सब पंजाब में इन दोनों हथियारों का लाभ उठाएं और कोविड के ़िखलाफ अपनी लड़ाई के नये चरण में देश का नेतृत्व करें।

-जय हिन्द