उत्तराखंड में हिमनद फटने की चेतावनी दी थी वैज्ञानिकों ने !

उत्तराखंड के चमोली जिले में हिमनद के फटने से बड़ी तबाही हुई है। इस हादसे की चेतावनी उत्तराखंड के ही वैज्ञानिकों ने 8 महीने पहले दे दी थी। वैज्ञानिकों ने बताया था कि उत्तराखंड, जम्मू-कश्मीर और हिमाचल के कई इलाकों में ऐसे ग्लेशियर हैं जो कभी भी फट सकते हैं लेकिन इस चेतावनी को नजरअंदाज़ कर दिया गया था।
वैज्ञानिकों ने बताया था कि श्योक नदी के प्रवाह को एक हिमनद ने रोक दिया है। इसकी वजह से अब वहां एक बड़ी झील बन गई है। झील में ज्यादा पानी जमा हुआ तो उसके फटने की आशंका है। यह चेतावनी देहरादून के वाडिया इंस्टीट्यूट आफ जियोलाजी के वैज्ञानिकों ने दी थी। वैज्ञानिकों ने सचेत किया था कि जम्मू-कश्मीर काराकोरम रेंज समेत पूरे हिमालय क्षेत्र में ग्लेशियरों द्वारा नदी का प्रवाह रोकने पर कई झीलें बनी हैं। यह बेहद खतरनाक स्थिति है जो आपदा के रूप में हमारे सामने आई है।
पृथ्वी पर 99 प्रतिशत हिमानियां ध्रुवों पर ध्रुवीय हिम चादर के रूप में हैं। इसके अलावा गैर-ध्रुवीय क्षेत्रों के हिमनदों को अल्पाइन हिमनद कहा जाता है और ये उन ऊंचे पर्वतों के सहारे पाए जाते हैं जिन पर वर्ष भर ऊपरी हिस्सा हिमाच्छादित रहता है। ये हिमानियां समेकित रूप से विश्व के मीठे पानी का सबसे बड़ा भण्डार हैं और पृथ्वी की धरातलीय सतह पर पानी के सबसे बड़े भण्डार भी हैं।
हिमानियों द्वारा कई प्रकार के स्थूल रूप भी निर्मित किए जाते हैं जिनमें प्लेस्टोसीन काल के व्यापक हिमाच्छादन के दौरान बने स्थल रूप प्रमुख हैं। इस काल में हिमानियों का विस्तार काफी बड़े क्षेत्र में हुआ था और इस विस्तार के दौरान और बाद में इन हिमानियों के निवर्तन से बने स्थूल रूप उन जगहों पर भी पाए जाते हैं जहां आज उष्ण या शीतोष्ण जलवायु पाई जाती है। वर्तमान समय में भी उन्नीसवीं सदी के मध्य से ही हिमानियों का निवर्तन जारी है और कुछ विद्वान इसे प्लेस्टोसीन काल के हिम युग के समापन की प्रक्रि या के तौर पर भी मानते हैं।
हिमानियों का महत्व इसलिए भी बढ़ जाता है क्योंकि ये जलवायु के दीर्घकालिक परिवर्तनों जैसे वर्षण, मेघाच्छादन, तापमान इत्यादि के प्रतिरूपों से प्रभावित होते हैं। हिमालय में हजारों छोटे-बड़े हिमनद हैं जो लगभग 3350 वर्ग किमी क्षेत्र में फैले हैं। इन हिमनदों में सबसे पहले गंगोत्री हिमनद है जो 26 किमी लम्बा तथा 4 किमी चौड़ा है। यह उत्तरकाशी के उत्तर में स्थित है। इसके बाद पिण्डारी गढ़वाल-कुमाऊं सीमा के उत्तरी भाग पर स्थित है जबकि सियाचिन का हिमनद काराकोरम श्रेणी में है और 72 किलोमीटर लम्बा है। इसी तरह सासाइनी, बियाफो हिस्पर ,बातुरा व खुर्दोपिन कराकोरम श्रेणी के हिमनद हैं। रूपल, सोनापानी व रिमो कश्मीर में हैं जिनकी लम्बाई 40 किलोमीटर तक है। वही केदारनाथ व कोसा उत्तराखंड में हैं। जेमू हिमनद भारत के सिक्किम व नेपाल में 26 किलोमीटर तक फैला है। कंचनजंघा भी नेपाल में है जिसकी लम्बाई 16 किलोमीटर तक है। हिम यानी बर्फ के एकत्र होने से निचली परतों के ऊपर दबाव पड़ता है और वे सघन हिम के रूप में परिवर्तित हो जाती हैं। यही सघन हिमराशि अपने भार के कारण ढालों पर प्रवाहित होती है, जिसे हिमनद यानी ग्लेशियर कहते हैं। प्राय: यह हिमखंड नीचे आकर पिघलता है और पिघलने पर जल में परिवर्तित हो जाता है।
 उत्तराखंड से निकलने वाली प्रमुख नदियों में भागीरथी, अलकनंदा, विष्णुगंगा, भ्युंदर, पिंडर, धौलीगंगा, अमृत गंगा, दूधगंगा, मंदाकिनी, बिंदाल, यमुना, टोंस, सोंग, काली, गोला, रामगंगा, कोसी, जाह्नवी, मंदाकिनी प्रमुख हैं। मौजूदा घटना धौलीगंगा नदी में हुई है। धौलीगंगा नदी अलकनंदा की सहायक नदी है। गढ़वाल और तिब्बत के बीच यह नदी नीति दर्रे से निकलती है। इसमें कई छोटी नदियां मिलती हैं जैसे कि परला, कामत, जैंती, अमृतगंगा और गिर्थी नदियां। धौलीगंगा नदी पिथौरागढ़ में काली नदी की सहायक नदी है। सामान्यत: हिमनद जब टूटते हैं तो स्थिति काफी विकराल होती है क्योंकि बर्फ पिघलकर पानी बनता है और उस क्षेत्र की नदियों में समाता है। इससे नदी का जलस्तर अचानक काफी ज्यादा बढ़ जाता है। चूंकि पहाड़ी क्षेत्र होता है इसलिए पानी का बहाव भी काफी तेज होता है। ऐसी स्थिति तबाही लाती है। नदी अपने तेज बहाव के साथ रास्ते में पड़ने वाली हर चीज को तबाह करते हुए आगे बढ़ती है। हिमनद दो प्रकार के होते हैं—एक घाटी रूप में, दूसरा पहाड़ रूप में। उत्तराखंड के चमोली जिले में हुई घटना का संबंध पहाड़ी हिमनद से  है जो ऊंचे पर्वतों के पास बनते हैं और घाटियों की ओर बहते हैं। 
पहाड़ी हिमनद ही सबसे ज्यादा घातक माने जाते हैं। हिमनद वहां बनते हैं जहां काफी ठंड होती है। बर्फ पूरे साल जमा होती रहती है। मौसम बदलने पर यह बर्फ पिघलती है जो नदियों में पानी का मुख्य स्रोत होता है। ठंड में बर्फबारी होने पर पहले से जमी बर्फ दबने लगती है। उसका घनत्व काफी बढ़ जाता है और वायुदाब के कारण वह फट जाता है। 
हिमनद पृथ्वी पर पानी का सबसे बड़ा माध्यम हैं। इनकी उपयोगिता नदियों के स्रोत के तौर पर होती है। जो नदियां पूरे साल पानी से लबालब रहती हैं, वे ग्लेशियर से ही निकलती हैं। गंगा नदी का प्रमुख स्रोत गंगोत्री  हिमनद ही है। यमुना नदी का स्रोत यमुनोत्री भी हिमनद ही है। हिमनद का टूटना या पिघलना ऐसी दुर्घटनाएं हैं जो बड़ी आबादी पर असर डालती हैं। कई बार पहाड़ों पर घूमने गए सैलानी, माउंटेनियर  ग्लेशियर की चोटियों पर पहुंचने की कोशिश करते हैं। ये बर्फीली चोटियां काफी खतरनाक होती हैं। कभी भी गिर सकती हैं। (युवराज)