भारतीय महिला फुटबाल खिलाड़ियों  की अंतर्राष्ट्रीय मंच पर होने लगी चर्चा

हमारे देश में पुरुषों की फुटबाल खेल इस समय विकासशील दौर में प्रवेश कर चुकी है और दुनिया के चर्चित खिलाड़ी भारत में खेलना गर्व समझने लगे हैं। इसी के समांतर ही हमारे देश की महिलाओं की फुटबाल खेल ने भी अंगड़ाई ली है। बहुत से सामाजिक और संचालन से जुड़ी रुकावटों के बावजूद भारतीय महिला फुटबाल खिलाड़ियों की अंतर्राष्ट्रीय मंच पर चर्चा होने लगी है, जिसे भारत में महिलाओं की फुटबाल खेल के उभार का सूचक माना जा रहा है। आगामी वर्ष भारत की धरती पर लड़कियों के अंडर-17 फीफा विश्व कप और एशिया कप अंडर-17 होने हैं। इसके साथ ही भारत की सीनियर खिलाड़ी बाला देवी देश की पहली ऐसी खिलाड़ी बन गई है, जिसे यूरोप के किसी क्लब में खेलने का अवसर मिला है। बाला देवी स्काटलैंड के रेंजर्स वूमैन एफ.सी. की ओर से गत वर्ष खेल चुकी है। इस बड़ी उपलब्धि संबंधी बाला देवी का कहना है, ‘जिस समय उसने रेंजर्स क्लब की ओर से खेलते हुए अपना पहला गोल किया तो फुटबाल जगत में एशियन महिलाओं की फुटबाल से बात आगे बढ़ी और भारत की महिला फुटबाल बारे बात चली। यूरोप के फुटबाल संचालकों ने मेरी खेल को देखकर भारतीय फुटबाल का पूरा नोटिस लिया।’ परन्तु हमारे देश में अन्य खेलों की तरह लड़कियों को फुटबाल खेलने में भी बहुत सी सामाजिक, प्रबंधकीय और आर्थिक समस्याओं का सामना करना पड़ रहा है, जिस संबंधी बाला देवी जैसी खिलाड़ी को बड़े मुकाम पर पहुंचने के लिए काफी सामाजिक मुश्किलों का सामना करना पड़ा। उसके क्षेत्र में लड़कियों की कोई टीम नहीं थी, जिस कारण उसे लड़कों के साथ खेलना पड़ता था। लोग उसकी इस गतिविधि बारे बहुत चर्चा करते थे परन्तु बाला देवी के पिता, जो कि पूर्व फुटबालर थे, ने अपनी बेटी को आगे बढ़ने में हर तरह मदद की। बाला देवी का कहना है, ‘हमारे देश में लड़कियों को फुटबाल के क्षेत्र में आगे बढ़ने के लिए बहुत सी मुश्किलों का सामना करना पड़ रहा है परन्तु जब कोई खिलाड़ी बड़ी उपलब्धि हासिल कर लेती है तो सब की सोच बदल जाती है। भारतीय टीम की कप्तान आशा लता का कहना है, ‘जब मैंने फुटबाल खेलना शुरू किया तो मेरे परिवार का रवैया बहुत नकारात्मक था। परन्तु जब भारतीय अंडर-17 टीम में चयन हुआ तो मेरे माता-पिता को लगा कि उनकी बेटी कोई बड़ी उपलब्धि प्राप्त करने की ओर बढ़ रही है। इसके बाद मुझे परिवार ने पूरी मदद देनी शुरू  की।’  भारतीय टीम की गोलकीपर अदिति चौहान के विचार भी कुछ इसी तरह के हैं, ‘हमारे देश में अधिकतर लड़कियों को अपने माता-पिता के अनुसार चलना पड़ता है। हमारे देश की लड़कियों के लिए खेल, अपनी इच्छओं की पूर्ति और शख्सियत के विकास के बहुत बढ़िया साधन हैं। इस कारण माता-पिता को अपनी बेटियों को खेलों के क्षेत्र में आगे बढ़ने के अधिक से अधिक अवसर देने चाहिएं।’