पैगासस जासूसी कांड—हंगामा है क्यों बरपा ?
पैगासस जासूसी को लेकर भारत सहित विश्व भर में मचा हंगामा स्वाभाविक है। हमको आपको अचानक पता चले कि हमारे मोबाइल में घुसपैठ कर जासूसी हो रही है तो गुस्सा आएगा ही। वैसे पैगासस जासूसी का मामला 2019 में ही सामने आ गया था। व्हाट्सएप ने अमरीका के कैलिफोर्निया के एक न्यायालय में इस सॉफ्टवेयर को बनाने वाली इज़रायली कंपनी एनएसओ के खिलाफ मुकद्दमा दायर किया था। आपको यह भी याद होगा कि तत्कालीन सूचना तकनीक मंत्री रविशंकर प्रसाद ने अक्तूबर 2019 में ही बाज़ाब्ता ट्विटर पर व्हाट्सएप से इसके बारे में जानकारी मांगी थी। यह अलग बात है कि उसके बाद आगे इस पर काम नहीं हुआ। यह कोई छिपा तथ्य नहीं है कि इज़रायली कंपनी एनएसओ के पैगासस नाम के इस हथियार का दुनिया की अनेक सरकारें उपयोग करती हैं। पैगासस का कहना है कि वह केवल सरकारी एजेंसियों, सशस्त्र बल को ही पैगासस बेचती है। यह सच है तो जहां भी जासूसी हुई, उसके पीछे सरकारी एजेंसियों की ही भूमिका होगी। फ्रांस में इस भंडाफोड़ के बाद जांच भी आरंभ हो गई है। हालांकि द गार्जियन और वाशिंगटन पोस्ट सहित विश्व के 16 मीडिया समूहों के इस दावे पर प्रश्न खड़ा हो गया है कि उन्होंने संयुक्त जांच में पेगासस सॉफ्टवेयर से जासूसी कराए जाने वाले सूचना का पर्दाफाश किया है। मानवाधिकार की अंतर्राष्ट्रीय संस्था एमनेस्टी इंटरनेशनल इसकी अगुआ थी। पहले एमनेस्टी की ओर से दावा किया गया था कि एनएसओ के फोन रिकॉर्ड का सबूत उनके हाथ लगा है, जिसे उन्होंने भारत समेत दुनियाभर के कई मीडिया संगठनों के साथ साझा किया था। स्वयं को नॉन प्रॉफिट संस्थान बताने वाली फ्रांस की फॉरबिडेन स्टोरीज और एमनेस्टी इंटरनेशनल ने दावा किया था कि वह मानवीय स्वतंत्रता और नागरिक समाज की मदद के लिए गंभीर खतरों का पता लगाने की कोशिश करता है और उनके जवाब ढूंढता है। इस वजह से उसने पैगासस के स्पाइवेयर का फॉरेंसिक विश्लेषण किया।
एमनेस्टी का बयान था कि उसकी सिक्योरिटी लैब ने दुनिया भर के मानवाधिकार कार्यकर्ताओं और पत्रकारों के कई मोबाइल उपकरणों का गहन फॉरेंसिक विश्लेषण किया है। उसके इस शोध में यह पाया गया कि एनएसओ ग्रुप ने पैगासस स्पाईवेयर के जरिए मानवाधिकार कार्यकर्ताओं और पत्रकारों की व्यापक, लगातार और गैरकानूनी तरीके से निगरानी की है। फॉरबिडेन स्टोरीज और एमनेस्टी इंटरनेशनल को एनएसओ के फोन रिकॉर्ड का सबूत हाथ लगा है, जिसे उन्होंने भारत समेत दुनियाभर के कई मीडिया संगठनों के साथ साझा किया है। अब मीडिया में उसका बयान आया है कि उसने कभी यह दावा किया ही नहीं कि यह सूची एनएसओ से संबंधित थी। इसके अनुसार एमनेस्टी इंटरनेशनल ने कभी भी इस सूचि को एनएसओ पेगासस स्पाईवेयर सूची के तौर पर प्रस्तुत नहीं किया है। विश्व के कुछ मीडिया संस्थानों ने ऐसा किया होगा। यह सूची कंपनी के ग्राहकों के हितों की सूचक है। सूची में वो लोग शामिल हैं, जिनकी जासूसी करने में एनएसओ के ग्राहक रुचि रखते हैं। यह सूची उन लोगों की नहीं थी जिनकी जासूसी की गई।
इसमें कहा गया है कि जिन खोजी पत्रकारों और मीडिया आउटलेट्स के साथ वे कार्य करते हैं, उन्होंने शुरू से ही बहुत स्पष्ट भाषा में साफ कर दिया है कि यह एनएसओ की सूचि ग्राहकों के हितों में है। सीधे अर्थों में इसका मतलब उन लोगों से है, जो एनएसओ ग्राहक हो सकते हैं और जिन्हें जासूसी करना पसंद है। इसके बाद निश्चित रूप से केवल भारत नहीं, पूरी दुनिया को यह विचार करना होगा कि हम एमनेस्टी इंटरनेशनल के पहले के बयान को सच मानें या अब वह जो कह रहा है, सच्चाई उसमें है? जासूसी हमेशा से गूढ़ रहस्य वाली विधा रही है। अब तो एमनेस्टी इंटरनेशनल और फारबिडेन स्टोरीज पर केंद्रित जांच होनी चाहिए कि उसने पहले किस कारण से वह बयान दिया और अब किन कारणों से उसने अपना बयान बदला है।
वैसे एनएसओ ने इसे एक अंतर्राष्ट्रीय साजिश कह दिया है। भारत सरकार या भारत सरकार से जुड़ी किसी अन्य संस्था द्वारा उसके सॉफ्टवेयर की खरीदी संबंधी प्रश्न पर एनएसओ का जवाब है कि हम किसी भी कस्टमर का जिक्र नहीं कर सकते। जिन देशों को हम पैगासस बेचते हैं, उनकी सूची गोपनीय जानकारी है। हम विशिष्ट ग्राहकों के बारे में नहीं बोल सकते लेकिन इस पूरे मामले में जारी देशों की सूची पूरी तरह से गलत है। एनएसओ कह रही है कि इस सूची में से कुछ तो हमारे ग्राहक भी नहीं हैं। हम केवल सरकारों और सरकार के कानून प्रवर्तन और खुफिया संगठनों को बेचते हैं। हम बिक्री से पहले और बाद में संयुक्त राष्ट्र के सभी सिद्धांतों की सदस्यता लेते हैं। किसी भी अंतर्राष्ट्रीय प्रणाली का कोई दुरुपयोग नहीं होता है। उसका यह भी कहना है कि उसके सॉफ्टवेयर का इस्तेमाल कभी भी किसी के फोन की बातें सुनने, उसे मॉनिटर करनेए ट्रैक करने और डाटा इकट्ठा करने में नहीं होता है।
भारत में 300 सत्यापित मोबाइल नंबरों की जासूसी होने का दावा किया गया है। इनमें नेताओं, सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीश, वहां के पूर्व कर्मचारी के साथ 40 पत्रकारों के नंबर भी शामिल हैं। विचित्र बात यह है कि इसमें मोदी सरकार के एक मंत्री का भी नंबर है। कोई सरकार अपने ही मंत्री की जासूसी क्यों कराएगी? पैगासस का उपयोग दुनिया भर की सरकारें करती हैं, तभी तो 2013 में सालाना 4 करोड़ डॉलर कमाने वाली इस कंपनी की कमाई 2015 तक 15.5 करोड़ डॉलर हो गई। सॉफ्टवेयर काफी महंगा माना जाता है, इसलिए सामान्य संगठन और संस्थान इसे खरीद नहीं पाते। कम्पनी के दावों के विपरीत 2016 में पहली बार अरब देशों में काम कर रहे कार्यकर्ताओं के आईफोन में इसके इस्तेमाल की बात सामने आई। बचाव के लिए एप्पल ने आईओएस अपडेट कर सुरक्षा खामियां दूर कीं। एक साल बाद एंड्रॉयड में भी पेगासस से जासूसी के मामले बताये जाने लगे। जैसा हमने ऊपर कहा, कैलिफोर्निया के मामले में व्हाट्सएप के साथ फेसबुक एमाइक्रोसॉफ्ट और गूगल भी न्यायालय गई थी। उस समय व्हाट्सएप ने भारत में अनेक एक्टिविस्टों और पत्रकारों के फोन में इसके उपयोग की बात कही। अगर पैगासस मोबाइल की जासूसी करता ही नहीं है तो ये कम्पनियां उसके खिलाफ न्यायालय क्यों गईं?
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