धान की भरपूर फसल होने के आसार

धान की फसल बड़ी आशाजनक है। कृषि और किसान भलाई विभाग के संयुक्त डायरैक्टर बलदेव सिंह पंजाब भर में फसल का निरीक्षण करने के बाद भरपूर फसल होने की संभावना दर्शा रहे हैं। इसमें अनुकूल मौसम का बड़ा योगदान है। किसानों ने इस बार कीटनाशक दवाईयां बहुत कम मात्रा में इस्तेमाल की हैं। दानेदार दवाईयां जैसे रीजेंट, पदान आदि तो नाममात्र ही इस्तेमाल की हैं। किसानों ने जहां दवाईयां इस्तेमाल की हैं, क्वालिटी की अच्छी दवाईयों को प्रयोग किया है जो फसल को सुरक्षित रखने में प्रभावशाली सिद्ध हुई हैं। ऐसी दवाईयां मित्र कीड़ों का भी नुक्सान नहीं करतीं। कम्पनियों के निर्माता और दवाईयों के डीलर बड़ी निराशा में हैं कि उनकी ब्रिकी बहुत कम हुई है। अनेक ने तो दवाईयों की कीमतें भी कम कर दी हैं। 
किसानों ने मानवीय स्वास्थ्य के लिए हानिकारक कीटनाशकों, फफूंदनाशक, नदीन नाशक जैसे राऊंडअप (जिस पर पंजाब सरकार ने पाबंदी लगाई हुई है) बिल्कुल ही इस्तेमाल नहीं किये। राऊंडअप के स्थान पर उन्होंने स्वीप पावर दवाई इस्तेमाल की है जो वातावरण और मानवीय स्वास्थ्य के लिए सुरक्षित है। डा. बलदेव सिंह के अनुसार पहले किसान धान को अधिक पानी लगाते थे परन्तु अब बड़े संयम से पानी लगाने लग पड़े हैं। अधिकतर किसानों ने अपनी ज़मीन बिजाई से पहले लेज़र कराहे से भी समतल करवा ली जिस उपरान्त 15 से 15 प्रतिशत पानी की बचत हुई।  कुछ स्थानों पर सीथहलाइट (पत्ते का झुलस रोग) की कुछ निशानियां अवश्य देखी गई हैं। यह उन स्थानों पर हैं जहां फसल अधिक घनी लगाई गई है या कोई ऐसी किस्म की बिजाई की गई है जिसे यह बीमारी अधिक आती है। 
पीएयू से सम्मानित और किसान कमेटी के सदस्य बलबीर सिंह जड़िया धर्मगढ़ (अमलोह) कहते हैं कि जिन खेतों को नहरों या छप्पड़ों का पानी लगता है, उन खेतों में भी यह बीमारी अधिक देखी गई है। इस बीमारी से तने पर स्लेटी रंग के धब्बे (जिनके सिर जामनी होते हैं) पानी की सतह से ऊपर, पड़ जाते हैं। बाद में बढ़ कर ये धब्बे एक-दूसरे से मिल जाते हैं। सीथबलाइट के अधिक हमले के कारण पौधों में दाने पूरे नहीं बनते। जहां नाईट्रोजन खाद, यूरिया का इस्तेमाल अधिक किया गया है, वहां भी इस बीमारी की निशानियां देखने को मिलती हैं। इस बीमारी को रोकने के लिए विशेषज्ञों द्वारा बीमारी की निशानियां नज़र आने के उपरान्त एमीस्टार टौंप 325, एस सी यां ‘अवांसर गलो’ या फोलीकोर या लश्चर 37.5 एस.ई. या बाविस्टन या नटीवो का छिड़काव करने की सिफारिश की गई है। दो छिड़काव आवश्यक हैं। दूसरा 15 दिन बाद। सर्वेक्षण से यह भी प्रत्यक्ष हुआ है कि जिन खेतों में सीधी बिजाई की गई है अथवा बाटों या बैडों पर धान लगाया गया है, उन किसानों के खेतों में केंचुयों की संख्या बहुत बढ़ गई है। कम समय में पकने वाली धान की पी.आर.-126 और जिन किसानों (विशेष करके आलू की फसल लेने वाले उत्पादकों) ने कम समय में पकने वाली बासमती की किस्में जैसे पूसा बासमती-1509 और पूसा बासमती-1692 अगेती लगा ली हैं, उनकी फसल पकने पर है। विशेषज्ञों के अनुसार इन फसलों को एक छिड़काव की आवश्यता पड़ सकती है। छिड़काव करने वाली दवाईयों की मात्रा भी अब बहुत कम होती है। जिन दवाईयों की मात्रा पहले लीटरों में थी, अब स्तरीय दवाईयां ग्रामों में आकर बिक रही हैं। यह दवाईयां पहले से अधिक समय तक फसलों को हानिकारक कीड़ों और बीमारियों से सुरक्षित रखती हैं। ये दवाईयां मानवीय दृष्टिकोण से भी सुरक्षित हैं। 
इस समय बारिश या बादल छा जाएं और सीलन आ जाए तो फसल की झूठी कांगियारी (फाल्स समट्ट) भी आ सकती है। यह बीमारी के भी यहां यूरिया का इस्तेमाल अधिक किया गया हो और फसल अधिक घनी हो, वहां आने की संभावना है। इस बीमारी को रोकने के लिए जब फसल बगोलो पर हो (अभी सिट्टा बारह न आया हो) पीएयू के विशेषज्ञों द्वारा 500 ग्राम कोसाइड, 46 डीएफ (कापर हाईड्रोआक्साइड) को 200 लीटर पानी में घोल कर प्रति एकड़ छिड़काव करने की शिफरिश की गई है। 
कीटनाशक दवाईयों का इस्तेमाल कम करके के लिए मित्र कीड़ों की बड़ी प्रभावशाली भूमिका है। जैसे इस वर्ष धान के खेतों में मकड़ी के जाले अधिक देखे गए हैं। मकड़ी एक मित्र कीड़ा है जो धान के दुश्मन कीड़ों को खाता है। दूसरा मित्र कीड़ा हैलीकाप्टर के नाम से जाना जाता है। डॉ. बलदेव सिंह किसानों को सलाह देते हैं कि फसल को बीमारियों से मुक्त रखने के लिए नाइट्रोजन और यूरिया की गैर-ज़रूरी इस्तेमाल न किया जाए। वह 13045 (पोटाशियम  नाइट्रेट), 3 किलोग्राम 200 लीटर पानी में घोल कर फसल पर छिड़काव करने की सिफारिश करते हैं। इससे उत्पादकता बढ़ेगी। दाने थोथे नहीं पड़ेगें और पंजाब सरकार और किसानों का भरपूर फसल लेने का सपना पूरा हो जाएगा।