नये युग की नयी आवाज़

‘अब और कब तक ज़िन्दा रहने की गुस्ताखी करोगे तुम?’ छक्कन ने हमें पूछा, और हमारा नाम काट कर मुर्दों की सूची में डाल दिया। जब से छक्कन ‘गंगा गये तो गंगा राम और जमना गये तो जमना दास’ हो गये हैं, तब से उनकी गिनती अति महत्वपूर्ण व्यक्तियों में होने लगी है। आजकल वह नेताओं और अधिकारियों के बीच झगड़े निपटाते हैं और नेताओं से बड़े नेता, और अधिकारियों से बड़े अधिकारी बन गये हैं। 
हम पहले भी उनके कई गुणों पर फिदा थे यानी कि अगर वह सुगम संगीत के रसिया थे, तो अपना रुतबा शास्त्रीय संगीत के महासम्मेलन आयोजित करके बढ़वाते थे। उनके जीवन दर्शन की बात करो, तो वह वाम पक्ष के मसीहाओं का चेला कहला ईश्वर के अस्तित्व पर शुबहा प्रगट करना पसंद करते थे। लेकिन जब धार्मिक आयोजनों द्वारा हज़ारों लोगों को अपने जीवन की आस तलाशते देखते, तो उनके लिए वह कभी यहां नकार की मुद्रा न अपनाते बल्कि इन आयोजनों के मुखिया बन उनके लिए क्षीर सागर में डुबकी लगा मोती चुग लाने की बात कहते। 
ऐसे व्यक्ति जो ‘आया राम गया राम’ की पुरानी सूक्तियों के भी कान कतरते हैं, भला कभी किसी मामले में पिट सकते हैं  बल्कि वह तो अब हारे हुए को जीत का सपना बांटते हैं। देखते ही देखते नये सपनों के मसीहा बन जाते हैं। उनके यहां हर पराजित अपना मुक्ति मार्ग तलाशता है। उनके अंगरखे का कोना पकड़ कर अपनी दुखों की वैतरणी पार कर जाना चाहता है। 
हमने भी इस अंगरखे का कोना पकड़ अपनी पहचान बना लेने का बहुत प्रयास किया, लेकिन यहां तो लोगों की सफलता की दास्तां गिरगिट की तरह रंग बदलती है। जो जितनी जल्दी रंग बदल सके, उतना ही दुनियावी और कामयाब रहता है लेकिन हम जैसे लोग जो सदा यह सूत्र जीते रहे कि ‘मियां दुरंगी छोड़ कर एक रंग हो जा’ कभी अपना रंग न बदल सके। फिर देखते ही देखते उनके द्वारा मृत घोषित कर दिये गये।  इसी बीच जो ज़िन्दा थे, और महान हो जाने का शुबह पाल भी चुके थे, उन्हें हमने छक्कन की शोभा में झांझ-कर- ताल बजाते देखा। यह एक ऐसी बिकाऊ मण्डी थी, कि यहां कल तक जो बिल्कुल अपना था, वह आज सरे बाज़ार नीलाम हो गया या रात के अंधेरे में पांसा पलट गया। कुछ पता नहीं चला। वे चौकस थे कि उनके पक्षधर बिके नहीं, इसलिए अपने विरुद्ध स्वयं अविश्वास प्रस्ताव पेश करके उसे बहुमत से जीतने की चेष्टा में थे ताकि सदन में सनद रहे, कि उनके अनुयायी उनके साथ खड़े हैं। रात के बिकाऊ अंधेरे में कहीं गुम नहीं हो गये, या सरे बाज़ार नीलाम होते नज़र नहीं आ गये। 
हम भी छक्कन से पूछना चाहते थे, कि भई, हम तो आप के पक्के अनुयायी थे, हमें आपने क्यों मृत घोषित कर दिया। उधर दल फलांग कर आये नेताओं को आपने पंचतारा निर्वासन में रख दिया, कि कहीं वे रपट न जायें, हाथ से फिसल न जाएं। हमने समझाया, अन्धभक्तों के अनुसरण के बिना न राजनीति चलती है, और न ही अपनी गद्दियां सुरक्षित रहती हैं। इसलिए जब तक विश्वास मत प्राप्त नहीं हो जाता, हमारे अनुयायियों को पंचतारा बनवास में रहना होगा और हमारे जयघोष का स्वर उठाने वाले नये नारे सीखने होंगे। सांप और सीढ़ी के खेल में पारंगत होना पड़ेगा। इसमें कल जो शिखर पर था, उसने ज़रा भी असहमति जताई, तो चोरी का सांप उसे डस लेगा। यह दुनियादारी का सांप, ईर्ष्या का सांप, अपने आपको महान मान लेने का अजगर आपको चारों ओर से कस लेगा, और आपको चोटी से नीचे गहरे तल तक गिराते हुए उसे एक सभ्य समय भी नहीं लगेगा। अचानक आप मृत घोषित कर दिये जायेंगे, और आपके शुभेच्छु आपका मर्सिया पढ़ने के लिए आपका नामोनिशान भी कहीं तलाश नहीं पायेंगे। 
लीजिये, अभी तक न जाने कितने समाचार सूत्रों ने फरमा दिया कि जो कल अर्श पर थे, वे अब फर्श पर आ गये, क्योंकि उन्होंने आपका खेल उनकी शर्तों पर खेलने से इन्कार कर दिया। उन्होंने अपने अधिकार के लिए आवाज़ उठाने की हिम्मत की। अपने लिए खैरात की नहीं, हक की रोटी मांग ली। भ्रष्टाचार के प्रति अपनी ज़ीरो टौलरैंस की घोषणा करने वालों को विनय करने का प्रयास किया कि उन्हें उनके गिर्द बुने हुए सफलता के इन आंकड़ों के मायाजाल से बचाया जाये। उन्होंने आदर्शों और नैतिकता की दुहाई देने वालों से कहने का साहस किया, ‘अरे यह तो हमें अब भी नज़र नहीं आती,’ केवल इसे और प्रशासन को सरे बाज़ार इन भद्रजनों के सामने बन्धक पड़ा देखते हैं, और उनके आदेश पर इसे नये युग की नयी आवाज़ कहने पर मजबूर होते हैं।  यह नई आवाज़ जो नये जन्मे बच्चों की तरह फूलों की रविशों से उठनी चाहिए थी, क्यों आज फूलों का रूप धार कर पुराने कैक्टसों से घिरती नज़र आ रही है?
‘हम अभी मरे नहीं हैं।’ हमने बहुत से गूंगे होते लोगों के साथ छक्कन और उनके शहसवारों को कहना चाहा, लेकिन उपलब्धियों के आंकड़ों के रेगिस्तान में हमारा चीत्कार कोई कोहराम क्यों नहीं बन सका? हमारी टूटती हुई आवाज़ एक ऐसी दर्द भरी धुन बनी रही कि जिसे आजकल कोई नहीं सुनता। कब जानेंगे कि ज़माना तो ऐसा संगीत सुनने का है, कि जिसकी आवाज़ कान फोड़ू हो। जी हां, आजकल।