लोक-लुभावन वायदों से भ्रमित होती जनता

किसी भी देश की राजनीति के बहुत-से पक्ष हो सकते हैं लेकिन विश्व के किसी भी देश की राजनीति में एक पक्ष हमेशा मिलता है कि हम अपने देश को आगे लेकर बढ़ेंगे। देश की जनता का पूर्ण विकास हो, जनता की आय और उसकी दैनिक जीवन की भौतिक इच्छाएं पूरी हो सकें, ऐसा करने का प्रयास करेंगे। ऐसा सभी देशों के राजनेता अपने भाषणों में कहने का प्रयास करते हैं परंतु प्रश्न यह उत्पन्न होता है कि जनता की मूलभूत आवश्यकताएं देश के खजाने को लुटा कर पूरी की जाएं या देश की जनता के परिश्रम को इस दिशा में लगाया जाए कि वह स्वयं का पेट तो भरे ही, साथ ही उससे राष्ट्र निर्माण और नव निर्माण की कल्पना भी सार्थक हो सके।
भारतवर्ष में पिछले कुछ वर्षों से जनता के बीच वे सभी राजनीतिक दल और राजनेता आगे निकलने का प्रयास कर रहे हैं जो जनता को मुफ्त की योजनाओं के नाम पर सरकारी खजाने में सेंध लगा रहे हैं या छूट देने का वायदा करके जनता को अपनी ओर आकर्षित कर अपनी कुर्सी पक्की कर रहे हैं। जो लोग गांधी जी को अपना सभी कुछ मानते हैं,  गांधी जी की चर्चा अपने भाषणों में करते हैं, उनको गांधी जी के हिन्द स्वराज की इन पंक्तियों को भी पढ़ लेना चाहिए, जिसमें गांधी जी लिखते हैं कि, ‘मुझे अगर आपसे आपकी घड़ी छीन लेनी हो, तो बेशक आपके साथ मुझे मारपीट करनी होगी लेकिन अगर मुझे आप की घड़ी खरीदनी हो तो आपको दाम देने होंगे। अगर मुझे बख्शीश के तौर पर आपकी घड़ी लेनी होगी तो मुझे आपसे विनती करनी होगी। घड़ी पाने के लिए मैं जो साधन काम में लूंगा, उसके अनुसार चोरी का माल, मेरा माल या बख्शीश की चीज़ होगी। तीन साधनों के तीन अलग-अलग परिणाम आएंगे।’  गांधी जी के इस विचार से लोगों के मस्तिष्क में एक बात तो स्पष्ट हो ही गई होगी कि वे बख्शीश पर ज़िंदा हैं या अपने माल पर।
दूसरी ओर नजर दौड़ा कर देखें तो आज देश में राजनीति चमकाने के लिए राजनेता बड़े-बड़े वायदे करते हैं। कई बार उन्हें पूरा करने की योजना लागू भी हो जाती है लेकिन देश आर्थिक रूप से कितना पिछड़ रहा है, इसकी कौन चिंता करे। ‘मुफ्त का चंदन, घिस मेरे नंदन’ की योजना चल रही है। विचार करें तो जनसेवा का भाव हर एक देश की राजनीति का सबसे सशक्त पक्ष है लेकिन राष्ट्र को आर्थिक धक्का देकर आप अपना स्वाभिमान आगे बढ़ा सकते हैं, राष्ट्र का नहीं। जब आपके पास कुछ है ही नहीं तो फिर आने वाली पीढ़ियों के लिए क्या छोड़कर जाओगे। एशिया के कितने ही देश आज बदहाली की कगार पर खड़े हैं, उसका एक ही कारण है, जन-लुभावन भाषण और लोभी होती जनता। हिन्द स्वराज में गांधी जी ने लिखा है कि, ‘अक्सर जिन शरीरों को गलत लाड लड़ा कर या सहलाकर कमजोर बना दिया गया है, उनमें रहने वाला मन भी कमजोर होता है और जहां मन का बल नहीं है, वहां आत्मबल कैसे हो सकता है।’
गांधी जी भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के महानायक हैं। इनके जीवन, सोच, कार्यबल आदि के योगदान को भारतवर्ष ही नहीं, विश्व भी नहीं भुला सकता। गांधी जी के विचार और सोच वैश्विक दृष्टिकोण के साथ भूत, वर्तमान और भविष्य को अपने में छिपाए हुए हैं। गांधी जी और अन्य देशभक्तों ने हमें 15 अगस्त, 1947 को आज़ादी दिलाई। कितने देशभक्त तो स्वतंत्रता से पूर्व ही अपनी शहादत देकर वीरगति को प्राप्त हो गए। 
हिन्द स्वराज में गांधी जी ने लिखा है कि, ‘मेरे विचार सब लोग तुरंत मान लें, ऐसी आशा मैं नहीं रखता। मेरा फर्ज इतना ही है कि आपके जैसे जो लोग मेरे विचार जानना चाहते हैं, उनके सामने अपने विचार रख दूं। मेरे विचार उन्हें पसंद आएंगे या नहीं, यह तो समय बीतने पर ही मालूम होगा।’ यह विचारणीय है कि हमने गांधी जी के विचारों से कितना कुछ लिया है। गांधी जी की बातें हमने कितनी मानी या नहीं मानी हैं या अपने स्वार्थ के चलते उन्हें अपने अनुसार बदल लिया है। समझने की बात यह है कि कितना, किसने राष्ट्र को आगे बढ़ाया है, इसका उत्तर और इस पर विचार करना हमारा और आपका कर्त्तव्य है। (अदिति)