सभी राजनीतिक दलों को जारी करना चाहिए चंदे का श्वेत-पत्र

राजनीतिक दलों के चंदे का खेल बहुत पुराना है। राजनीतिक दल ये छुपाने में कामयाब रहे हैं कि नगदी के तौर पर मिला चंदा कहां से आया है और किसने दिया। इससे काले धन को भी बढ़ावा मिल रहा है। भारत में राजनीतिक दल चंदा इकट्ठा करने  के 4 तरीकों का इस्तेमाल करते हैं—सीधे लोगों के जरिए, कॉर्पोरेट घराने या कम्पनियों के जरिए, विदेशी कम्पनियों के जरिए और पब्लिक या सरकारी फंडिंग के जरिए फंड जुटाया जाता है। अभी दो दिन पूर्व निर्वाचन आयोग की सिफारिश पर देश के जाने-अनजाने राजनीतिक दलों के 118 ठिकानों पर छापेमारी कर सियासी चंदे के खेल का बड़ा खुलासा किया। इस छापेमारी में उत्तर प्रदेश की जनराज्य पार्टी और मुम्बई की जनतावादी कांग्रेस पार्टी को मिलने वाले चंदे ने आम जनमानस के होश उड़ा दिए। निश्चित ही सरकार और निर्वाचन आयोग के इस प्रयास की सराहना होनी चाहिएं। इससे पूर्व भी जनवरी 2022 के शुरुआती 10 दिनों में ही राजनीतिक दलों को चंदा देने के लिए एसबीआई से करीब 1,213 करोड़ रुपए के इलेक्टोरल बॉन्ड बिके हैं। इस तरह 2018 से अब तक 4 साल में इलेक्टोरल बॉन्ड के माध्यम से राजनीतिक पार्टियों को 9,207 करोड़ रुपए चंदा मिला है। ये पैसा कहां से आया और किसने दिया, इसका कोई अता-पता नहीं है जबकि इलेक्टोरल बॉन्ड को लेकर देश के तीन शीर्ष संस्थान सुप्रीम कोर्ट, निर्वाचन आयोग और आरबीआई ने गलत बताया था। अब बात करें कार्रवाई को अंजाम तक पहुचाने की, तो भारत में कार्रवाई को अंजाम तक पहुचाने में हमेशा चूक होती रही है। 
यह बात सर्वविदित है कि जिस भी राजनीतिक दल की सरकार केन्द्र या राज्यों में होती है उसे चंदा देने वालों की लाईन लगी रहती है। एक बार सत्ता में आ जाने के बाद क्षेत्रीय राजनीतिक दल कुबेर के खजाने में तब्दील हो जाते हैं, कई गुना संसाधन बढ़ जाते हैं। ऐसे में राष्ट्रीय राजनीतिक दलों को मिलने वाले चंदे पर कुछ कहना तो सूरज को दीया दिखाने जैसा होगा। यह चंदा क्यों दिया जाता है, यह भी किसी से छुपा नहीं है। ऐसे में क्या राजनीतिक शूचिता के लिए देश के सभी पंजीकृत, अपंजीकृत राष्ट्रीय और क्षेत्रीय दल खुद को मिलने वाले चंदे का श्वेत पत्र जारी करने का दुसाहस रखते हैं। वास्तव में स्वच्छ राजनीति के लिए यह बहुत ज़रूरी कदम है।
एक तरफ जनता को अपनी कमाई और खर्च के लिए पाई-पाई का हिसाब देना पड़ता है, दूसरी तरफ  राजनीतिक दल जवाबदेही से खुद को बचाने के लिए एक साथ कई कानूनों में ही बदलाव कर देते हैं। विशेषज्ञ मानते हैं कि राजनीतिक चंदा अब कालाधन बनाने का एक जरिया बन गया है। भारत के चुनाव आयोग के नवीनतम प्रकाशन 23 सितम्बर 2021 के अनुसार पंजीकृत दलों की कुल संख्या 2858 थी, जिसमें 8 राष्ट्रीय दल, 54 प्रादेशिक दल और 2796 गैर-मान्यता प्राप्त दल थे। 
वर्तमान में हज़ारों दल ऐसे हैं जिन्हें कोई जनता है, कोई नहीं जानता। राजनीतिक दलों के इस मकड़जाल को तोड़ने के लिए पिछले दिनों निर्वाचन आयोग ने 198 दलों को आरयूपीपी सूची से हटाया। 
पिछले दिनों की छापेमारी ने राजनीति और चुनाव के नाम पर जो अंधेरगर्दी रही है, उस पर से आयकर विभाग ने पर्दा कुछ हटा दिया है। राजनीतिक दलों की आड़ में बहुत कुछ ऐसा होता आया है, जिस पर चुनाव आयोग या सरकार की निगाह नहीं थी। आयकर विभाग ने दिल्ली, गुजरात, उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, छत्तीसगढ़, हरियाणा और कर्नाटक में करीब 205 ठिकानों पर छापे मारे हैं और अनेक कथित राजनीतिक दलों का भंडाफोड़ किया है। यह शर्मनाक बात है कि झुग्गियों, गुमटियों से भी राजनीतिक दल चल रहे हैं और करोड़ों रुपये के वारे-न्यारे कर रहे हैं। आयकर अधिकारियों ने उत्तर प्रदेश के सुल्तानपुर में एक ऐसी पंजीकृत, पर गैर-मान्यता प्राप्त पार्टी का पता लगाया, जो घड़ी मरम्मत करने की दुकान से संचालित होती थी और जिसने पिछले तीन वर्षों में चंदे के रूप में 370 करोड़ रुपये स्वीकार किए थे। जाहिर है, आयकर विभाग के लिए उस व्यक्ति का पता लगाना ज़रूरी हो गया, जो एक राजनीतिक पार्टी के नाम पर अरबों रुपये के वारे-न्यारे कर रहा है। ऐसे राजनीतिक दल के मालिक की धर-पकड़ भी ज़रूरी है, जिसके लिए राजनीति या पार्टी एक कारोबार मात्र है। ऐसी पार्टियां न जाने कब से काला कारोबार चला रही हैं? छापे के बाद पता यह चल रहा है कि ऐसे दलों को धन शोधन के एवज में तीन से पांच प्रतिशत कमीशन मिलता है। मतलब, जिस कथित पार्टी प्रमुख ने 300 करोड़ रुपये को चंदा स्वरूप लेकर काले से सफेद बनाया है, उसे नौ करोड़ रुपये का फायदा हुआ होगा। यह सारा खेल ही टैक्स चोरी के लिए होता है। राजनीतिक पार्टियों को जब कोई चंदा देता है, तो उतनी राशि पर उसे आयकर में छूट का लाभ भी मिलता है। काफी सारा पैसा राजनीतिक दलों के पास ऐसा आता है, जिसके स्रोत का खुलासा नहीं करना पड़ता। दान या चंदे को राजनीतिक दल आसानी से छिपा सकते हैं, क्योंकि उनकी नकेल कसने का कोई विशेष इंतजाम नहीं है। जब भी चंदे को आधिकारिक या पूरी तरह से घोषित या पारदर्शी बनाने की चर्चा होती है, तब बड़े राजनीतिक दल आगे बढ़कर अपनी अबाध आर्थिक आज़ादी सुनिश्चित करते हैं। आयकर विभाग ने इस सिलसिले में छापे मारकर साहसिक काम किया है। यह प्रक्रिया जारी रहनी चाहिए। बड़े दलों के खातों की भी पड़ताल होनी चाहिए।  ऐसे में अब बहुत ज़रूरी है कि देश के बड़े दलों से लेकर मुठ्ठी भर लोगों के साथ बनाए गए हर राजनीतिक दल के चंदे से लेकर हर गतिविधियों का खुलासा किया जाए। बहरहाल इसकी सम्भावना कम ही है क्योंकि चंदे के खेल से देश का कोई भी दल अछूता नहीं है।