रूस-यूक्रेन युद्ध विनाश को रोकने की ज़रूरत

रूस ने अपने पड़ोसी यूक्रेन पर 24 फरवरी, 2022 को हमला किया था। जिसे अब लगभग 7 माह से अधिक समय हो गया है। इस पूरे समय में रूस द्वारा यूक्रेन पर भारी हवाई हमले किये गये। देश के अधिकतर भागों में बहुत विनाश हुआ। जिसके परिणामस्वरूप लाखों ही लोगों को, परिवारों को अपना देश छोड़ कर शरणार्थियों के रूप में यूरोप के पड़ोसी देशों में शरण लेनी पड़ी। दूसरे विश्व युद्ध के बाद इस लड़ाई को बेहद भयावह माना जाता रहा है। पहले यह अनुमान लगाया जा रहा था कि बेहद शक्तिशाली तथा विशाल देश रूस के सामने यूक्रेन ज्यादा समय तक टिक नहीं पाएगा। परन्तु यह बात आज भी हैरान करने वाली है कि उसने रूस की शक्ति के समक्ष घुटने नहीं टेके। यूक्रेन के राष्ट्रपति व्लोदिमीर ज़ेलेंस्की ने जितनी बहादुरी इस हमले के संबंध में दिखाई उससे भी यूक्रेन के हौंसले का अहसास होता है।
आरम्भ में यूक्रेन से बड़ी संख्या में महिलाएं तथा बच्चे बाहर गये थे, परन्तु बाद में सैकड़ों युवक युद्ध के लिए वापिस लौट आये। आज भी ज्यादातर युवक देश में डटे हुये हैं। इसी दौरान राष्ट्रपति ज़ेलेंस्की की अपीलों पर तथा उनके दृढ़ इरादे को देखते हुए अमरीका तथा अन्य यूरोपियन देशों ने उसकी हथियारों तथा अन्य आवश्यक सामान से व्यापक स्तर पर सहायता भी लगातार जारी रखी हुई है। यूरोपियन यूनियन तथा अन्य देशों के आधुनिक हथियारों की सहायता से यूक्रेन रूस का मुकाबला कर सका है परन्तु इससे भी बड़ी बात यह है कि यूक्रेन की सेना ने ज़मीनी हमले को रोका ही नहीं, अपितु रूस के कब्ज़े से बहुत से इलाके पुन: आज़ाद भी करवा लिये हैं। रूस के राष्ट्रपति व्लादीमिर पुतिन को यूक्रेन से ऐसी आशा नहीं थी। रूस के दावे अनुसार अब तक उसने यूक्रेन के लगभग 15 प्रतिशत क्षेत्र पर कब्ज़ा किया हुआ है। अपनी सीमा के साथ उसने कुछ महत्त्वपूर्ण क्षेत्रों पर कब्ज़ा कर लिया है, जहां आज भी लगातार लड़ाई जारी है। इस स्थिति से बौखलाये पुतिन ने महत्त्वपूर्ण कब्ज़े अधीन लिये कथित जनमत संग्रह का बहाना बना कर अब रूस में मिलाने की घोषणा कर दी है। इनमें दूनेतस्क, लुहांसक, खेरसान तथा जापोरिजिया आदि क्षेत्र शामिल हैं। इसी तरह वर्ष 1914 में रूस यूक्रेन के क्रीमिया क्षेत्र पर काबिज़ हो गया था तथा उसे अपने देश में मिला लिया था। अब उपरोक्त 4 क्षेत्रों को रूसी फैडरेशन के साथ मिलाने की पुतिन द्वारा की गई घोषणा की विश्व के ज्यादातर देशों द्वारा कड़ी आलोचना की जा रही है। यहां तक कि यूक्रेन का समर्थन करते उसके पड़ोसी देशों सर्बिया तथा कज़ाकिस्तान ने यह घोषणा कर दी है कि वह धक्केशाही से काबिज किये इन क्षेत्रों को मान्यता नहीं देंगे। नि:सन्देह इस लड़ाई में अन्तर्राष्ट्रीय पक्ष से रूस का बहुत बड़ा नुकसान हुआ है, जिसकी पूर्ति आगामी लम्बी अवधि तक नहीं की जा सकेगी। रूस भारत का हमेशा से बहुत करीबी मित्र रहा है। पुतिन ने अक्सर अन्तर्राष्ट्रीय मसलों में भारत के साथ खड़े होने को प्राथमिकता दी है। दोनों देशों के लम्बी अवधि से व्यापक स्तर पर व्यापारिक संबंध भी बने हुए हैं। रूस ने कश्मीर के मसले पर हमेशा भारत की ओर झुकाव बनाये रखा है।
इस समय भारत को अपनी विदेश नीति में बेहद सचेत होकर चलना पड़ रहा है, क्योंकि जहां इस समय उसके अमरीका तथा अन्य यूरोपियन देशों के साथ अच्छे संबंध बने हुए हैं वहीं वह रूस के साथ भी पहले की भांति अपने संबंधों को मज़बूत रखने हेतु वचनबद्ध है। इस समय यह बात बेहद ज़रूरी प्रतीत होती है कि इस लड़ाई को हर हाल में खत्म किया जाये। इसमें भारत अपना बड़ा योगदान डालने की समर्था रखता है। इस लड़ाई का विश्व भर में किसी न किसी रूप में बड़ा नकारात्मक प्रभाव देखा जा सकता है। अन्तर्राष्ट्रीय मंच पर जो भारत की विश्वसनीयता बनी हुई है, उससे इसे इस मसले के हल के लिए अपना बड़ा योगदान डालना चाहिए, ताकि हो रहे इस भयावह मानवीय विनाश को रोका जा सके।

—बरजिन्दर सिंह हमदर्द