तेज़ी से डूब रहा है कांग्रेसी टाईटैनिक

कांग्रेस पार्टी की राजनीतिक दशा आज यह हो गई है कि इस पार्टी के वरिष्ठ नेता बारी-बारी से पार्टी को मंझधार में छोड़ कर अन्य पार्टियों में शामिल हो रहे हैं या स्वयं की पार्टी बना बाद में उसका स्थापित पार्टियों में विलय कर अपना अलग अस्तित्व व राजनीतिक भविष्य तलाश रहे हैं। 
बेशक ऐसे नेताओं को पार्टी प्रवक्ता गद्दार की संज्ञा देते हैं। बाद में ये प्रवक्ता भी पार्टी नीतियों से तंग आकर स्वयं भी देर सवेर इसी रास्ते पर चल पड़ते हैं। यह विडम्बना है कि इतनी पुरानी स्थापित पार्टी गहरे राजनीतिक भंवर में फंस गई। जनता व राजनीतिक विश्लेषकों व राजनीति के पंडितों को चिंता है कि कांग्रेस जैसी पार्टी की लोकतंत्र में मजबूत विपक्ष की भूमिका होनी चाहिए थी, परन्तु उसकी नाकामी लोकतंत्र की गरिमा को ठेस पहुंचा रही है। पार्टी नेतृत्व इसका स्वयं ज़िम्मेवार है। जैसे एक परिवार में बच्चा नासमझ आयु में तो माता पिता, बड़ों का आँखें मूँदकर कहना मानता है परन्तु धीरे-धीरे जब उसकी मानसिकता परिपक्व होने लगती है तो वह अपनी समझ का इस्तेमाल कर अपने भले-बुरे व भविष्य में हित का सोच कुछ बातों में मनमानी या विरोध करने लगता है परन्तु कई बार परिवार के बड़े उसे उदंड समझ कर सज़ा देने की सोचने लगते हैं। एक दिन वह अनुशासित बच्चा या तो स्वयं घर छोड़ अपनी अलग राह पर चल पड़ता है या घर से निकाल दिया जाता है। 
 घर में अगर सभी को एक समान उचित सम्मान न देकर विशेष सदस्यों को ही हर बात व काम में प्राथमिकता दी  जायेगी, उनकी जायज़ नाजायज़ मांगों को ही माना जाएगा तो अन्य सदस्यों में असंतोष की भावना गहराती जाएगी। घर के नेतृत्व को सदस्यों में बढ़ते असंतोष को समझ कर सभी इच्छाओं व महत्वाकांक्षाओं को समझ उचित समाधान करना लाज़िमी है अन्यथा विनाश दीवार पर लिख दिया है । नीरो की तरह चैन से बंसी बजाते रोम को जलने में देर नहीं लगती।
आज के सन्दर्भ में कांग्रेस पार्टी का कुछ ऐसा ही हाल है। पंजाब में कैप्टन अमरिंदर सिंह के जाने से इस सिलसिले का आ़गाज़ हुआ था जो आज तक नहीं थमा। इसका अंजाम निश्चित ही विनाशकारी होगा जिसकी काफी हद तक ज़िम्मेवारी कांग्रेस के नेतृत्व यानी आलाकमान की होगी। अभी-अभी  राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने तो मानो कांग्रेस के ताबूत में आखरी कील ठोकने का ही काम किया है। उनके भीतरघात ने कांग्रेस पार्टी को एक नाज़ुक मुकाम पर ला खड़ा किया है। वह भी ऐसे समय में जब कई राज्यों के विधान सभा चुनाव होने जा रहे हैं। ऐसे समय में कांगेस सरीखा टाईटैनिक जहाज़ स्वयं ही डूबता हुआ दिखाई दे रहा है। कप्तानी ऐसे कुशल हाथों में नहीं है जो ठीक से पतवार संभाल पायें। खुद जहाज़ के नाविक ही जहाज़ डूबोने में कोई कसार नहीं छोड़ रहे हैं।  समुद्र में अन्य जहाज़ ऐसे जहाज़ को संभालने का खतरा न उठाकर अपने को सुरक्षित निकालने का प्रयास करेंगे और जहाज़ धीरे-धीरे गहरे गर्त्त में समाता जायेगा। समय रहते  कोई कुशल मांझी आगे आकर पतवार संभाल ले तो अभी भी कुछ नहीं बिगड़ा। बड़ा जहाज़ इतनी आसानी से नहीं डूबता परन्तु  ऐसा होता प्रतीत नहीं हो रहा क्योंकि स्थापित मांझी अर्थात जहाज़ का कप्तान सवयं पतवार संभाल नहीं  रहा, तथा किसी और को इसकी पूर्ण ज़िम्मेवारी देना नहीं चाहता। ऐसा होना राष्ट्रहित व लोकतंत्र के हित में  बिलकुल नहीं है।