देखते ही देखते यूक्रेन के चार ज़िलों पर कब्ज़ा कर लिया रूस ने

यह रूस की ताकत है या दुनिया की लाचारी कि तमाम चेतावनियों के बावजूद रूस ने देखते ही देखते गत 30 सितम्बर, 2022 को यूक्रेन के चार ज़िलों पर अपना कब्जा जमा लिया। एक दिन पहले ही रूसी राष्ट्रपति के कार्यालय क्रेमिलन के प्रवक्ता दिमित्री पेस्कोव ने कहा था कि राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन ने स्वीकृति पत्र पर हस्ताक्षर के साथ ही यूक्रेन के चारों इलाके औपचारिक रूप से रूस का हिस्सा हो जाएंगे और ऐसा ही हुआ। रूस की समाचार एजेंसी तास के अनुसार रूस के राष्ट्रपति पुतिन ने आज़ादी से जुड़े खेरसान और जापोरिजिया के दस्तावेजों पर हस्ताक्षर कर दिये थे। इस प्रकार अब ये दोनों क्षेत्र रूस की सम्प्रभुता का हिस्सा हो गए। दस्तावेजों के अनुसार रूसी राष्ट्रपति का यह फैसला अंतर्राष्ट्रीय कानून के सार्वभौमिक सिद्धांतों और मानदंडों पर आधारित है। यह संयुक्त राष्ट्र चार्टर द्वारा स्थापित लोगों की समानता और आत्मनिर्णय के सिद्धांत को स्वीकार और पुष्टि करता है। तास के मुताबिक कुछ ही देर में लुहान्स्क और डोनेस्क क्षेत्रों के संबंध में भी हस्ताक्षर हो जाने के बाद यूक्रेन के ये चारों ज़िले जो उसके कुल क्षेत्रफल का लगभग 18 फीसदी हैं, अब रूस के क्षेत्रफल का हिस्सा हो जाएंगे।
यूक्रेन ने चेतावनी दी थी कि रूस ऐसी हरकत न करे, इसका कड़ा विरोध किया जायेगा लेकिन जब अमरीका की पिछले चार हफ्तों में जनमत संग्रह को लेकर दी गई कम से कम आधा दर्जन चेतावनियों का उस पर कोई असर नहीं पड़ा तो भला यूक्रेन की चेतावनी का क्या मतलब था? हालांकि खेरसान में रूसी सैनिकों के साथ यूक्रेन की फौजें जबरदस्त ढंग से अभी भी लड़ रही हैं और यूक्रेनी राष्ट्रपति ज़ेलेंस्की ने जनमत संग्रह की घोषणा के बाद अपने उच्च रक्षा अधिकारियों की जो आपात बैठक की थी, उसके बाद भी यूक्रेन ने यही दावा किया है कि यूक्रेनी  अपनी आज़ादी के लिए अपने खून का आखिरी कतरा तक बहा देंगे। जनमत संग्रह का यूक्रेन ने ही नहीं बल्कि पूरे पश्चिमी जगत ने शुरू से ही विरोध किया, लेकिन रूस पर इसका कोई असर नहीं हुआ। अमरीका के राष्ट्रपति जो बाइडन ने पैसिफिक देशों के नेताओं से मुलाकात करके कहा कि रूस को इसकी बड़ी कीमत चुकानी पड़ेगी, लेकिन फिलहाल तो रूस इन्हें औपचारिक या कहें कि गीदड़ भभकियां ही समझ रहा है। ऐसा नहीं है कि रूस के लिए ऐसा समझना वाकई कोई बड़ी भूल है, क्योंकि रूस अब के पहले भी ऐसा कर चुका है। दुनिया ने तब भी उसे इसी तरह  धमकाया था, जिसका उस पर कोई असर नहीं पड़ा था।
साल 2008 में जॉर्जिया के साथ रूस ने एक मामूली सी लड़ाई लड़ने के बाद उसके दो हिस्सों अबकाजिया और दक्षिणी ओसेशिया को स्वतंत्र राज्य के रूप में मान्यता दी थी। इसके बाद यहां के लोगों को रूसी नागरिकता दी गई और युवाओं को रूसी सेना में शामिल किया गया। साल 2014 में भी ऐसा ही एक जनमत संग्रह कराया गया था, जैसा 23 से 28 सितम्बर, 2022 तक यूक्रेन के चारों इलाकों में हुआ और इस जनमत संग्रह के बाद क्रीमिया को रूस ने अपने में मिला लिया था। उस समय भी रूस ने इस पूरी प्रक्रिया को एक जश्न का रूप दिया था और रूसी राष्ट्रपति ने राष्ट्रवाद से सजी गर्वीली स्पीच दी थी। गौरतलब है कि अभी रूस ने यूक्रेन के जिस डोनेस्क और लुहांस्क क्षेत्र को अपने में मिलाया है, 22 फरवरी, 2022 को रूस पहले ही इन्हें स्वतंत्र राज्य की मान्यता दे चुका है। मालूम हो कि इन दोनों इलाकों को डोनवास के तौर पर जाना जाता है। रूस की इस घोषणा के दो दिनों बाद ही रूस और यूक्रेन के बीच जंग छिड़ गई थी। रूस के इस कदम का विरोध जाहिर है, दुनिया के ज्यादातर देशों ने किया है और रूस ने ऐसा अनुमान न लगा रखा हो, ऐसा हो नहीं सकता।
जर्मनी के विदेश मंत्री एनालेना बेरबॉक का आरोप है कि जनमत संग्रह के लिए लोगों को घरों और ऑफिसों में घुसकर धमकी दी गई यानी यह जनमत संग्रह बंदूक के नोक पर हुआ है जो स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनावों के उलट है, लेकिन गौर से देखा जाए तो ये ऐसी रूटीन आलोचनाएं हैं, जिनका पहले से ही रूस को अंदाज़ा था। सवाल है, आखिर रूस एक बिना जीते युद्ध के बीचोबीच इस कदम के जरिये क्या जताना चाहता है? दरअसल व्लादिमीर पुतिन यूक्रेन के साथ अनुमान के विपरीत हुई छीछालेदर को छिपाकर दुनिया को यह संदेश देना चाहते हैं, मानो सच्चाई यह हो कि रूस ने जरूरी जीत हासिल कर ली है, जिस जीत की उसे दरकार थी। कहीं न कहीं यह उनकी मनोवैज्ञानिक युद्ध रणनीति का हिस्सा है। पुतिन जैसे यूक्रेन की आम जनता और यूक्रेन की सेना द्वारा पीछे धकेली गई रूसी सेना के कारनामे को एक गैर-ज़रूरी खुशफहमी करार देना चाहते हैं। रूस दुनिया को जतलाना चाहता है कि वह जिस मकसद से यूक्रेन में घुसा था, वह मकसद उसने पूरा कर लिया है। बाकी हार जीत का कोई मतलब नहीं रह गया।
संयुक्त राष्ट्र ने रूस की इस घोषणा को खतरनाक कहा है। रूस की निंदा करते हुए संयुक्त राष्ट्र के महासचिव एन्टेनियो गुटेरेस ने कहा है कि रूस के इस कदम की जितनी भी निंदा की जाए, कम है। दूसरी तरफ  यूरोप रूस की इस कार्यवाही से न सिर्फ  गुस्से में है बल्कि वह भड़क उठा है। हाल ही में बाल्टिक सागर में नार्डस्ट्रीम की जिन दो पाइप लाइनों में तोड़-फोड़ के कारण गैस लीक का मामला सामने आया है, उस पर ईयू के विदेश नीति के प्रमुख जोसेफ  बोरेल ने कहा कि उपलब्ध जानकारी व सुबूत साफ  दर्शाते हैं कि यह रिसाव जानबूझकर किया गया। 30 देशों के संगठन नाटो ने भी साफ  तौर पर कहा है कि बुनियादी ढांचे पर किसी किस्म का हमला जवाबी कार्यवाही को आमंत्रित करेगा लेकिन रूस किसी भी तरह की चेतावनियों या धमकियों पर तनिक ध्यान नहीं दे रहा।
रूस का यह कदम भारत को असमंजस में डालेगा, लेकिन हमारे कूटनीतिक समीकरण कुछ ऐसे हैं कि हम खुलकर न तो रूस का विरोध करेंगे, न ही उसके विरुद्ध खड़े दिखना चाहेंगे क्योंकि अंतर्राष्ट्रीय संबंधों के मामले में सब कुछ के बावजूद अपने हित ही सर्वोच्च सिद्धांत होते हैं और हमारे हित अगर आने वाले दिनों में इस पूरे प्रकरण को लेकर मौन रहने के लिए मजबूर करें तो इसमें अतिश्योक्ति नहीं होगी, लेकिन दुनिया को इस सवाल का जवाब तो ढूंढना ही होगा कि जिस तरह से रूस ने अपनी इच्छा को अमली जामा पहनाते हुए यूक्रेन के चार क्षेत्रों पर कब्जा कर लिया है, क्या उसके बाद भी दुनिया के किसी लोकतांत्रिक और कानन सम्मत भविष्य की उम्मीद की जा सकती है?
-इमेज रिफ्लेक्शन सेंटर