कुशल प्रबंधक कोडियेरी के निधन से माकपा को झटका

यह अटपटा लग सकता है लेकिन यह सच है कि कोडियेरी बालकृष्णन का दुखद निधन सीपीआई (एम)की अखिल भारतीय राजनीति और विशेष रूप से केरल की राजनीति में एक युग के अंत का प्रतीक है। दूसरे शब्दों में इस दिग्गज वामपंथी राजनीतिज्ञ के निधन के साथ केरल की राजनीति कभी भी वैसी नहीं होगी जैसी कि रही है। यह केरल और राज्य में वामपंथी आंदोलन के लिए एक अपूरणीय क्षति है।
आज की संकटग्रस्त राजनीतिक परिस्थितियों में दिग्गज कम्युनिस्ट नेता की मौत से बुरी और क्या बात हो सकती थी। राजनीतिक, आर्थिक और सामाजिक समस्याओं से घिरी पार्टी को उनकी अनुपस्थिति बहुत खलेगी। वह एक उत्कृष्ट संकट प्रबंधक थे जो आज  चले गये। यह कहना अतिश्योक्ति नहीं होगा कि एक संकट ने उनमें सर्वश्रेष्ठ को जन्म दिया। कोडियेरी के पास सबसे जटिल राजनीतिक गांठों को भी खोलने का महान उपहार था। 
वह माकपा का मुस्कुराता चेहरा भी थे। राज्य में संक्रमण काल के दौरान महान नेता ने महत्वपूर्ण भूमिका निभायी। एलडीएफ  सरकार के लिए लगातार दूसरा कार्यकाल सुनिश्चित करने में कोडियेरी का योगदान सर्वविदित है। एक नेता जो प्रतिबद्धता, साहस और समर्पण का पर्याय हैं, कोडियेरी ने सिद्धांतों से कभी समझौता नहीं किया।
बिना किसी अंतर्विरोध के यह कहा जा सकता है कि माकपा को उनकी मौत से  हुए गंभीर आघात से उबरने में काफी समय लगेगा। यह कोडियेरी ही थे जिन्होंने वीएस अच्युतानंदन-पिनारयी विजयन दरार के चरम पर होने पर चीजों को नियंत्रण में रखा। उन्होंने एक कड़ी के रूप में कार्य किया, जिन्होंने एक अत्यंत कठिन परिस्थिति से अपनी चतुराई और कूटनीतिक संचालन के साथ तनाव को कम किया। यह आदमी के चरित्र के बारे में बहुत कुछ बताता है। वह वीएस और पिनाराई दोनों के साथ एक उत्कृष्ट तालमेल बनाये रखने में कामयाब रहे। 
यह कोडियेरी ही थे जिन्होंने पार्टी को प्रभावित करने वाले गुटीय मुद्दों को प्रभावी ढंग से निपटाया। कोडियेरी संकट के क्षणों में धैर्य और महान गरिमा की तस्वीर थे। इस बात से इन्कार नहीं किया जा सकता कि उनके बेटों को लेकर चल रहे विवादों ने उनके राजनीतिक जीवन पर लम्बे समय तक प्रतिकूल प्रभाव डाला लेकिन वह अपने व्यक्तित्व और चरित्र के कारण इस विपरीत प्रभाव से बच गये।
16 नवम्बर, 1953 को जन्मे कोडियेरी बालकृष्णन 17 साल की उम्र में सीपीआई (एम) के सदस्य और स्टूडेंट फेडरेशन ऑफ  इंडिया (एसएफआई) के सचिव बन गये जब वह केवल 20 वर्ष के थे। पार्टी ने उन्हें यह पद सौंपा क्योंकि वह एक संगठन-निर्माता के रूप में कड़ी मेहनत और असाधारण कौशल के लिए उनकी महान क्षमता में पूर्ण विश्वास था। आपातकाल के दौरान वे 16 महीने जेल में भी रहे। उनका जाना मुख्यमंत्री पिनाराई विजयन के लिए एक  व्यक्तिगत क्षति भी है। कोडियेरी पिनाराई का सबसे करीबी विश्वासपात्र थे। दोनों ने एक बेहतरीन तालमेल साझा किया। कोडियेरी के निधन से पिनाराई के राजनीतिक और व्यक्तिगत जीवन में एक बड़ा शून्य पैदा हो जायेगा। जैसा कि पिनाराई ने खुद वर्णन किया है, कोडियेरी न केवल सबसे करीबी साथी थे, बल्कि एक प्यार करने वाला भाई था, जो हर समय उनके साथ खड़ा रहा। 
एक मिलनसार नेता, कोडियेरी एक कुशल मंत्री भी थे। वीएस के तहत गृह मंत्री के रूप में उनके कार्यकाल ने  ‘जनमित्री’ (लोगों के अनुकूल) पुलिस की नयी अवधारणा को लागू किया। पर्यटन मंत्री के रूप में उनके कार्यकाल में ग्रामीण पर्यटन को भी काफी बढ़ावा मिला। कम्युनिस्ट आंदोलन और केरल के विकास में उनका योगदान किसी से पीछे नहीं है।
अब जबकि कोडियेरी नहीं रहे, विशेष रूप से सीपीआई (एम)और लेफ्ट डेमोक्रेटिक फ्रंट (एलडीएफ) के लिए केरल की राजनीति के ठंडे पानी से तैर कर गुजना मुश्किल होगा। पार्टी और सरकार को ऐसे नेता की तलाश करनी होगी जो उनके जाने से छोड़ी गयी जगह को भर सके लेकिन यह आसान नहीं होगा। माकपा और एलडीएफ  दोनों को बेहद लोकप्रिय जन नेता की कमी खलेगी, जिन्हें संकट-निवारण और तनाव-विघटन की अद्भुत क्षमता का वरदान प्राप्त था। वह कठिन से कठिन घड़ी में भी अपनी कभी न टूटने वाली मुस्कान से चीज़ों को बदल देता था। केरल की राजनीति उस प्रतिबद्ध कम्युनिस्ट की मौत से बदतर हुई है, जिसने अपने उपचारात्मक स्पर्श से सभी को बेहतर बनाया था। कोडियेरी नेताओं की उस दुर्लभ नस्ल के थे, जिन्होंने बड़ी गरिमा और प्रतिबद्धता के साथ राजनीति का अभ्यास किया। (संवाद)