आह स्वर्गीय!
आह स्वर्गीय! तुम चले गये। तुम्हारी मौत आई और तुम चले गये। जीवित से स्वर्गीय हो गये। थोड़ी ही देर में तुम अग्नि को समर्पित कर दिये जाओगे और मुट्ठी भर राख में तबदील हो जाओगे। तुम्हारा वजूद बस एक तस्वीर में सिमट जायेगा, जिस पर एक टंगा हार तुम्हारे सम्मान का सूचक रह जायेगा! हर मरने वाला व्यक्ति स्वर्गीय हो जाता है । जब तक जिन्दा है, नर्क भी भोग सकता है, लेकिन मरने के उपरांत वह स्वर्गीय हो जाता है । कहते हैं कि मरने के उपरांत वह ऊपर चला जाता है । ऊपर नर्क हो न हो, परन्तु नीचे नर्क अवश्य है। कुछ लोग यहाँ पर पैदा ही नर्क भोगने के लिए होते हैं और स्वर्ग वालों के गले की हड्डी बने रहते हैं । बीमार जानवर तक को कोई अपने पास नहीं रखना चाहता, आदमी की तो औकात ही क्या ! फिर भी नर्क भोगने वालों को अपनी नियति का फल भोगना पड़ता है या स्वर्ग वालों के षड्यंत्र का शिकार बनना पड़ता है, यह तो ऊपर वाला ही जाने । फिर भी कहते हैं कि उसके घर में देर है, अंधेर नहीं । शायद इसीलिए नारकीय ज़िन्दगी जीने वाला भी मर कर स्वर्गीय कहलाता है ।
आह स्वर्गीय ! कुछ देर पहले तुम सांसें ले रहे थे और जीवित कहलाते थे । लेकिन सांस क्या रूकी कि मृत्यु ने तुम्हें स्वर्गीय बना दिया । लेकिन तुम नहीं जानते कि पीछे तुम्हारे परिवार पर क्या गुजर रही है । तुम्हारे कथित भाई-बन्धु मगर के आँसू बहा रहे हैं और तुम्हारी अर्थी के उठने का बेसब्री से इंतजार कर रहे हैं । पेट की आन्तड़ियों में भूख कुलबुला रही है, लेकिन लोक-लाज के मारे हैं । कभी कभी छिपकर कुछ खाने का अवसर भी नहीं मिलता । तुम्हारी पत्नी ज़ार-ज़ार रो रही है, इसलिए नहीं कि तुम स्वर्गीय हो गये । वह इसलिए अधिक दुखी है कि अब बेटों और बहूओं के हाथ की उसे कठपुतली बनना पड़ेगा । पहले वह दूसरों को अपनी उंगलियों पर नचाती थी, अब उसे दूसरों की उंगलियों पर नाचना पड़ सकता है। कैसा हिसाब किताब है यह, जो इसी जन्म में जमा और घटाव करवा देता है। ‘बेलैंसशीट’ बराबर! तानों की बरसात करने वालों को भी तानों की बौछार सहनी पड़ सकती है । पहले तुम उसकी ‘शील्ड’ का काम करते थे, क्योंकि तुम एक फलदार पेड़ की तरह थे आंधी के जोर से जब कोई पेड़ गिरता है तो पेड़ को कोई नहीं रोता। वह रोता है कि अब वे मीठे फल नहीं मिलेंगे, जो यह पेड़ देता था। उस छाया को रोता है जो उन्हें शीतलता प्रदान करती थी।
ज़िन्दगी के अंतिम पड़ाव से पूर्व तुम अपने छोटे बेटे के पास रह रहे थे । वह कुछ अधिक लाभ में था, अब पैंशन का लाभ भी उसे और उसके परिवार को मिल रहा था । बूढ़ा-बुढ़िया कितना खा लेते थे, बुढ़ापे में अधिक पचता ही कहाँ है । साथ में आम के आम और गुठलियों के दाम वाली बात थी । स्वर्गीय तुम उसके कारोबार का पूरा हिसाब किताब ‘मेनटेन’ करते थे, चाहे तुम्हारी बूढ़ी आँखें इसके काबिल नहीं थी । दस हजार का पूरा लाभ था उसे! वरना आज के ज़माने में इससे कम दाम में एकाउन्टेंट नहीं मिलता । लेकिन तुम्हारा समय पूरा हुआ और तुम चले गये, स्वर्गीय हो गये और वह बेटा नारकीय हो गया । उसे तुम्हारे जाने का दुख हो न हो, लेकिन दस हजार रुपये महीने के घाटे का ग़म है । यही दुनिया का दस्तूर है । हर कोई दूसरे से लाभ ही पाना चाहता है । कोई घाटा नहीं सहना चाहता। हर जगह कुर्सी की दौड़-धूप लाभ पाने के लिए ही होती है। मंत्री से सन्तरी तक, हर कोई लाभ और पद पाने की चूहा-दौड़ में लगा हुआ है । जब तक लाभ मिल रहा है, कोई स्वर्गीय नहीं बनना चाहता । वह दूसरों की सांसे भी जीना चाहता है, लेकिन अगर जीते जीवन में नर्क है तो वह इससे छुटकारा पानो के लिए स्वर्गीय बनने की लालसा तक रख सकता है ।
स्वर्गीय! तुम्हारी छोटी बहू भी सदमे मैं है । उसके लिए तुम स्वर्गीय क्या हुए, उसकी तो आज़ादी ही छिन गई। पहले वह अपने बच्चों को तुम्हारे हवाले घर में छोड़कर अपनी ‘किट्टी’ का मज़ा लेने चली जाती थी और उनके स्कूल-वर्क को करवाने का जिम्मा भी तुम्हारा होता था। उनकी ट्यूशन के पैसे भी बच रहे थे। लेकिन अब ऐसा नहीं हो पायेगा शायद! एक अकेली बुढ़िया के सहारे घर नहीं छोड़ा जा सकता। कब कोई उसे अकेली पाकर उसका गला घोंट जाये और घर का सारा कीमती सामाना लेकर रफू-चक्कर हो जाये । ज़माना बड़ा खराब है जी! नित्य प्रति ऐसी घटनाएं घटने के समाचार समाचार-पत्रों की शोभा बढ़ाते रहते हैं। हर तरफ लूट-पाट मची है, हर हमाम में नंगों की बारात सजी है। सरकार को ‘लॉ ऐन्ड आर्डर’ देखने की फुरसत ही नहीं, वह तो रंगीन सपने बेचने में लगी है । रोटी, कपड़ा या मकान की समस्या तो आम आदमी की है, सरकार का इससे क्या लेना-देना ! नाशुख अपनी खुशी से स्वर्गीय हो सकते हैं । खैर!
स्वर्गीय! तुम्हारी जायदाद के दूसरे दावेदार भी अब उसे पाने के घमासान में जुट जायेंगे। वे अगर तुम्हारी सेवा नहीं कर पाये तो क्या हुआ! उनकी अपनी कोई मज़बूरी रही होगी। लेकिन बाप की जायदाद पर सब का बराबर का हक बनता है। हर कोई अपने अधिकार की लड़ाई ही तो आज लड़ रहा है। तुम इस लड़ाई से ऊपर उठ चुके हो। स्वर्गीय होने का यही तो एक लाभ है न!
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