संविधान की मूल भावना


26 जनवरी को देश में बड़ी धूमधाम से 74वां गणतंत्र दिवस मनाया गया। 15 अगस्त, 1947 को भारत स्वतंत्र हुआ था। उसके बाद कड़ी मेहनत और लगन के साथ संविधान तैयार किया गया था। 26 जनवरी, 1950 में इस लिखित संविधान के आधार पर भारत को गणतंत्र घोषित गया। इस संविधान के आधार पर देश के सभी बालिग नागरिकों की भागीदारी के साथ लोकतांत्रिक ढंग से बनी सरकार समूचा कामकाज़ चलाती है। संविधान के अनुसार केन्द्र में संसद तथा प्रदेशों में विधानसभाएं होती हैं। इसके साथ ही न्यायपालिका को भी पूरी तरह स्वतंत्र रखने का संकल्प लिया गया था ताकि समूची राजनीतिक व्यवस्था को उत्तरदायी बनाया जा सके, उसमें एक अनुशासन बना कर रखा जा सके। समय तथा हालात के अनुसार उठते मामलों को सम्बोधित होने के लिए संसद को नए कानून बनाने के साथ-साथ संवैधानिक संशोधनों का भी अधिकार दिया गया था। 
अब तक संसद द्वारा अनेक ही संविधान की धाराओं में अनेक ही संशोधन किये गये हैं। इसी कारण संविधान की मूल भावना कायम रह सकी है। परन्तु इसके साथ ही धर्म-निरपेक्षता, लोकतंत्र तथा सभी नागरिकों को एक जैसा अधिकार देने के मूल तथ्य भी इसकी प्रस्तावना में दर्ज किये गये हैं। पिछले समय में अलग-अलग पार्टियां संविधान के इस दायरे में रह कर ही अपनी सरकारें चलाती रही हैं। देश की स्वतंत्रता के बाद लम्बी अवधि तक कांग्रेस ही सरकार तथा राजनीति पर छाई रही। उसके बाद अलग-अलग प्रदेशों तथा केन्द्र में अलग-अलग पार्टियों के आपसी गठबंधनों के साथ भी सरकारें बनीं। आज केन्द्र में चाहे भाजपा की सरकार बनी हुई है परन्तु भाजपा को स्वतंत्रता के बाद इस स्थान पर पहुंचने के लिए कड़ा संघर्ष करना पड़ा। चाहे प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व में चल रही केन्द्र सरकार ने अलग-अलग समय पर सार्वजनिक योजनाओं को भी सफल बनाने का प्रयास किया है। खाद्य एवं  आर्थिक मामलों में पिछली सरकारों की योजनाओं को भी नये रूप में लागू किया गया है परन्तु इस पार्टी तथा इसकी सरकार द्वारा अपने लम्बे समय से अपनाए सिद्धांतों को लागू करने के किये जा रहे प्रयासों से समय-समय पर बड़े विवाद भी सामने आते रहे तथा विशेष रूप से इस सरकार पर धर्म-निरपेक्षता तथा लोकतंत्र को कमज़ोर करने के आरोप भी लगते रहे हैं। इस कारण सवाल भी उठते रहे हैं।
परन्तु इस समय के दौरान अन्तर्राष्ट्रीय मंच पर भारत ने अपना एक विशेष स्थान बनाने में भी सफलता हासिल की है, जिसका ज़िक्र राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने इस गणतंत्र दिवस की पूर्व संध्या पर राष्ट्र को सम्बोधित करते हुए किया है। भारत के लिए यह भी विशेष रूप से गर्व की बात है कि इस वर्ष यह जी-20 देशों की अध्यक्षता करते हुए अनेक समारोहों का आयोजन कर रहा है जिसमें विश्व को दरपेश ज्वलंत मामलों संबंधी विचार-विमर्श होगा तथा उनके समाधान ढूंढने का भी प्रयास किया जाएगा। इस समय बड़ा मसला पृथ्वी का बढ़ रहा तापमान है, जिससे पृथ्वी का समूचा स्वरूप ही बदलता जा रहा है। जी-20 देशों के समूह की विश्व भर में कुल जनसंख्या दो-तिहाई है तथा इसका कुल घरेलू उत्पाद 85 प्रतिशत के लगभग है।
भारत द्वारा इस संगठन के मंच के माध्यम से जहां सौर ऊर्जा को आगे बढ़ाने के प्रस्ताव पेश किए जाएंगे, वहीं 2030 तक अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर मोटा अनाज जिसमें बाजरा तथा अन्य कई प्रकार की दालें शामिल हैं, का उत्पादन बढ़ाने की भी अपील तथा योजनाबंदी पेश की जाएगी। राष्ट्रपति ने पृथ्वी का तापमान कम करने हेतु सौर ऊर्जा का उपयोग बढ़ाने की ज़रूरत पर अधिमान दिया है। उनके अनुसार इसके लिए बिजली से चलने वाले वाहनों के उत्पादन को प्रमुखता देने की आवश्यकता होगी। इसके साथ ही उन्होंने राष्ट्र निर्माण के लिए मतदाताओं को भी अपनी ज़िम्मेदारी निभाने की अपील की है। मतदाताओं के साथ-साथ चुनाव आयोग, राजनीतिक पार्टियों, संगठनों तथा मीडिया को भी अपने कर्त्तव्यों का पालना करने का आह्वान किया है। ऐसा करने से ही संविधान की मूल धारा तथा भावना की पहरेदारी की जा सकेगी।


—बरजिन्दर सिंह हमदर्द