क्या राहुल की ‘भारत जोड़ो यात्रा’ का चुनावों पर प्रभाव पड़ेगा ?

 

‘भरत जोड़ो यात्रा’ ने कांग्रेस नेता राहुल गांधी को एक नये जन-नेता तथा 2024 में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के समक्ष चुनौती के रूप में पेश किया है। राहुल की यात्रा ने पुराने राजनीतिक नेताओं जैसे कि आज़ादी से पहले नेता मोहनदास कर्मचंद गांधी, जिन्होंने 1930 में ब्रिटिश शासन का विरोध करने के लिए एक लम्बे मार्च का नेतृत्व किया था, द्वारा पैदल ही ग्रामीण क्षेत्रों की यात्रा करने की परम्परा की नकल की। राहुल  का राजनीतिक कद बढ़ा है तथा एक मानवीय, लोकतांत्रिक तथा समावेशी विकल्प पेश करता है। राहुल गांधी ने ‘भारत जोड़ो यात्रा’ के दौरान 14 बार मीडिया के साथ बातचीत करके अपने राजनीतिक उत्तरदायित्व को मज़बूत किया है। वह किसी भी सवाल से परहेज़ नहीं करते थे तथा अक्सर मीडिया के साथ बातचीत में अपनी खास मुस्कराहट का प्रदर्शन करते थे। 
हालांकि, गांधी ने स्पष्ट रूप से इन्कार किया है कि उनकी यात्रा का राजनीतिक या पार्टी के साथ कुछ लेना-देना है। शुरू से ही वह इसके एकीकरण के विषय पर अडिग रहे हैं तथा कहा है कि यह सिर्फ ऩफरत तथा अखंडता के समय में प्रेम, भाइचारे तथा एकता की पुष्टि करने हेतु था। जनता की नज़रों में राहुल की धर्म-निरपेक्ष छवि ने महिलाओं, युवाओं, मध्यम वर्ग, मुसलमानों, पिछड़ी जातियों के लोगों तथा समाज के हज़ारों कमज़ोर वर्गों का ध्यान अपने तरफ आकर्षित किया है। आर.जे.डी., जे.एम.एम., एन.सी, पी.डी.पी., एन.सी.पी., डी.एम.के., आई.यू.एम.एल., सी.पी.आई, सी.पी.आई.एम., शिव सेना (समाजवादी), वामपंथी, धर्म निरपेक्ष विपक्षी पार्टियां 2024 के लिए राहुल गांधी का समर्थन कर रही हैं, यहां तक कि बिहार के मुख्यमंत्री नितीश कुमार ने भी कहा है कि यदि कांग्रेस नेता राहुल गांधी 2024 में विपक्ष के प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार बनें तो उन्हें कोई आपत्ति नहीं है। 
हालांकि नितीश कुमार ने कहा कि यह बेहतर होगा कि सभी पार्टियों द्वारा एक फैसला लिया जाए। राहुल गांधी जो कांग्रेस का चेहरा हैं, के लिए अच्छा है, उन्हें भी पार्टी की सहायता करनी चाहिए। कांग्रेस को केन्द्र तथा प्रदेशों में लगातार चुनावी झटकों के बाद पुनर्जीवित करने की ज़रूरत है, जैसे कि दल-बदल, आपसी झगड़ा, गुटबंदी तथा सत्ता के कद के नुकसान स्वरूप देखा गया है परन्तु क्या राहुल गांधी की नई छवि या अवतार कायम रहता है, जा रह सकता है, यह सुनिश्चित रूप से उनकी दृढ़ता तथा राजनीति पर निर्भर करेगा।
संघमित्रा मौर्या द्वारा पिता का बचाव
रामचरित मानस पर टिप्पणी के लिए समाजवादी पार्टी एम.एल.सी. तथा उत्तर प्रदेश के पूर्व मंत्री स्वामी प्रसाद मौर्या के खिलाफ एफ.आई.आर. दर्ज होने के बाद, उनकी बेटी तथा भाजपा सांसद संघमित्रा मौर्या ने उनके समर्थन में दृढ़ता के साथ सामने आते हुए कहा कि हिन्दू धार्मिक ग्रंथ संबंधी उनके पिता द्वारा उठाये गए नुकतों पर एक स्वस्थ तथा सार्थक चर्चा होनी चाहिए। अनुमान है कि संघमित्रा मौर्या 2024 के आम चुनावों से पहले समाजवादी पार्टी में शामिल हो सकती है तथा बदायू से चुनाव लड़ सकती है। परन्तु संघमित्रा मौर्या ने ज़ोर देकर कहा था कि उनका पेशेवर तथा निजी जीवन अलग-अलग है तथा वह भाजपा में बनी रहेंगी।
अडानी मामले पर जांच की मांग
कांग्रेस तथा अन्य विपक्षी पार्टियों ने वीरवार को अडानी समूह मामले की साझी संसदीय कमेटी या सर्वोच्च न्यायालय के नेतृत्व में जांच की मांग की। इससे पहले कांग्रेस, डी.एम.के., टी.एम.सी., एस.पी., जे.डी. (यू.), शिव सेना, सी.पी.आई. (एम.), सी.पी.आई., एन.सी.पी., आई.यू.एम.एल., एन.सी., ‘आप’ तथा केरल कांग्रेस के नेताओं ने संसद में बैठक की तथा दोनों सदनों में इस मुद्दे को उठाने का फैसला किया। खड़गे सहित कई विपक्षी पार्टी के सदस्यों ने अडानी मुद्दे पर चर्चा के लिए संसद में नोटिस भी दिया, परन्तु उन्हें सभापति ने खारिज कर दिया।
जाति आधारित जनगणना पर विपक्षी गुट एकजुट
बिहार सरकार द्वारा प्रदेश-व्यापी जाति जनगणना शुरू करने के बाद, विपक्षी दल उसी तज़र् पर 2024 के लोकसभा चुनावों से पहले मतदाताओं को लुभाने हेतु जाति आधारित जनगणना करवाने की मांग कर रहे हैं। इसे लेकर समाजवादी पार्टी प्रमुख अखिलेश यादव अब उत्तर प्रदेश में राजनीतिक ज़मीन तैयार कर रहे हैं। वह जाति जनगणना के मुद्दे पर ध्यान केन्द्रित कर रहे हैं।
 अखिलेश ने आरोप लगाया कि भाजपा दलितों तथा पिछड़े वर्गों के विरुद्ध है तथा जाति आधारित जनगणना करवाने से डरती है। मध्य प्रदेश में कांग्रेस तथा समाजवादी पार्टी ने अन्य पिछड़े वर्गों (ओ.बी.सी.) के मतदाताओं को लुभाने के लिए सरकार से जाति आधारित जनगणना की मांग की है। इस दौरान वाई.एस.आर. कांग्रेस ने केन्द्र द्वारा बुलाई गई सर्वसाझी बैठक में राष्ट्र-व्यापी जाति आधारित आर्थिक जनगणना की मांग की है। आंध्र प्रदेश में सत्ताधारी दल जे.डी. (यू.) तथा आर.जे.डी. की पसंद में शामिल हो गया है, दोनों ने जाति आधारित जनगणना की मांग की है। टी.आर.एस., टी.एम.सी. तथा बी.जे.डी. सहित अन्य पार्टियों ने भी मांग का समर्थन किया है। (आई.पी.ए.)