बड़ी समस्या बने हुए हैं आवारा कुत्ते 

 

देश में कुत्तों द्वारा लोगों को काटने की खबरें आती ही रहती हैं जो बहुत चिन्ताजनक हैं। वैसे देश भर में कुत्तों को काटने की समस्या कोई नई नहीं है, लेकिन अब तो लगता है कि जैसे सारी हदें पार हो रही हैं। सरकारें व प्रशासन भी इस मामले में अधिक गंभीर दिखाई नहीं दे रहा। एक खबर हैदराबाद से आई थी कि होम डिलीवरी से खाना घर देने गए एक लड़के के पीछे पालतू कुत्ता ऐसे लपका कि वह लड़का मारे डर के छत की ओर भागा तथा तीसरी मंजिल से कूद गया। हैदराबाद में ही अभी एक-दो दिन पहले कुत्ते के काटने का ताज़ मामला सामने आया है। दूसरा किस्सा भी कोई कम मार्मिक नहीं है। गुजरात के सूरत शहर की हसनपुरा सोसाइटी में घर के बाहर खेल रही बच्ची को आवारा कुत्ते ने बड़ी बुरी तरह से काट लिया था। इसी तरह गाज़ियाबाद की एक और दर्दनाक खबर है जिसमें लिफ्ट में एक महिला अपने पालतू कुत्ते को ले जा रही थी। कुत्ते ने लिफ्ट में मौजूद एक बच्चे को काट लिया। दर्द से कराहते बच्चे को संभालने की बजाय महिला लिफ्ट में चुपचाप खड़ी रही। क्या आप इस बात पर यकीन करेंगे कि पिटबुल नाम का कुत्ते पर 41 देशों में पाबंदी लगी हो, इसके अलावा कई देशों में तो पिटबुल प्रजाति के कुत्ते को रिहायशी इलाकों में पालने पर भी प्रतिबंध है, क्योंकि विशेषज्ञों के मुताबिक इस प्रजाति के कुत्ते किसी व्यक्ति या जानवर को अपने कब्जे में लेने के बाद अपने जबड़ों को लॉक कर लेते हैं। सोचिए, लखनऊ में एक अस्सी वर्षीय महिला अपने ही पिटबुल को गच्ची पर घुमा रही थी कि अचानक चेन टूट गई और कुत्ते ने अपनी मालकिन को अपना शिकार बना लिया। ऐसा काटा कि उक्त महिला की मौत हो गई। ऐसे कई केस होने के बावजूद भारत के कुछ शहरों में पिटबुल के पालने पर पाबंदी की खबरें भी आ रही हैं।
सर्वज्ञात है कि देश में आवारा कुत्ते अक्सर झुंड में रहते हैं और रात के समय राहगीरों को काट लेते हैं। ऐसा अन्य कारणों से तो होता ही है लेकिन यह भी देखा गया है कि कुत्ते भूख के कारण किसी को भी नोंचने, काटने पर उतर आते हैं। जान लेना बेहद ज़रूरी है कि कुत्तों के काटने से रेबीज़ जिसे हिन्दी में जलांतक रोग कहते हैं, के होने की पूरी संभावना होती है। इससे व्यक्ति की मौत लगभग तय होती है। कुछ वर्ष पहले तक पागल या आवारा कुत्ते के काटने के बाद कई इंजेक्शन पेट में लगाए जाते थे, लेकिन वर्तमान में एक या तीन टीकों से रेबीज़ बीमारी की संभावना को लगभग समाप्त कर दिया गया है। नई दिल्ली की एक अधिकारिक मेडिकल रिपोर्ट तो यहां तक कहती है कि वहां विभिन्न हिस्सों में प्रतिदिन अढ़ाई सौ से तीन सौ लोगों को आवारा या पागल कुत्ते काट रहे हैं। जानकारी के अनुसार पूरे विश्व में रेबीज़ से जितनी मौतें होती हैं उनका 36 फीसदी अकेले भारत में  होती हैं। विश्व स्वास्थ्य संगठन के आँकड़ों के अनुसार लगभग 15 लाख लोगों को हर साल जानवर काट लेते हैं। इनमें 90 फीसदी मामले आवारा और पालतू कुत्तों के काटने के होते हैं। भारत में रेबीज़ से हर साल लगभग 20,000 लोगों की मौत हो जाती है।
पशु चिकित्सकों की माने तो बारिश के मौसम में कुत्ते के काटने के केस बढ़ जाते हैं। सीलन वाला मौसम कुत्तों को बीमार कर देता है, जिससे कुत्तों में त्वचा संक्रमण व अन्य वायरल बीमारियां हो जाती हैं। अत: इस समय कुत्ते ज्यादा आक्रामक हो जाते हैं।   अगर रेबीज़ से संक्रमित जानवर किसी की गर्दन या सिर के आसपास काट लेता है तो लक्षण तेजी से उभरने लगते हैं क्योंकि रेबीज़ के वायरस इस तरह बहुत ही जल्दी व्यक्ति के दिमाग तक पहुंच जाते हैं। आम तौर पर यह माना जाता है कि रेबीज़ कुत्तों के काटने से ही होता है परन्तु कुत्तों के अलावा बिल्ली, चूहे, बंदर, रीछ, भेड़िया, चमगादड़ आदि के काटने से भी यह रोग हो सकता है। रेबीज़ फैलाने वाला वायरस जूनोटिक बहुत खतरनाक होता है। इसमें इन्कैफोलाइटिस जैसा द्रव होता है। यह अक्सर रेबीज़ जानवरों की लार में पाया जाता है। ऐसे जानवर आपको काटने के अलावा सिर्फ  चाट भी लें, तो भी कटी-फटी त्वचा से यह शरीर में प्रवेश कर जाता है। शरीर में दाखिल होते ही यह मनुष्य के टिशुयों को प्रभावित करने लगता है। तेज़ी से इसके कीटाणु कई गुणा बढ़ते हैं। रक्त वाहिनियों के अलावा यह मास पेशियों में दाखिल होकर दिमाग तक अपनी पहुंच बना लेता है। काटने के दस दिन बाद से कई सालों तक यह कभी भी व्यक्ति को अपनी चपेट में ले लेता है। कुत्तों की नसबंदी पर भारत में करोड़ों रुपये खर्च किए जाते हैं परन्तु स्थिति में खास सुधार नहीं हुआ। -मो. 78982-74643