उत्तर-पूर्व के तीन प्रदेशों के चुनाव परिणाम

खिला कमल और मुरझाया विपक्ष

गत दिवस उत्तर-पूर्व के तीन प्रदेशों के विधानसभा चुनावों के परिणाम आए, जिनके अनुसार त्रिपुरा तथा नागालैंड में भाजपा गठबंधन पुन: सरकार बनाने में सफल रहा है। मेघालय में नैशनल पीपल्स पार्टी 26 सीटें जीत कर सबसे बड़ी 
पार्टी के रूप में उभरी है, परन्तु वह सरकार बनाने के आंकड़े से पांच सीटें दूर रही। हालांकि भाजपा ने कोनराड के. संगमा के नेतृत्व वाली इस पार्टी को समर्थन देने का फैसला किया है। इन प्रदेशों में जीत के बाद भाजपा को भविष्य में अन्य प्रदेशों के विधानसभा चुनावों में जीत के लिए भी उत्साह मिलेगा। उधर कांग्रेस को इन प्रदेशों में मिली हार से बड़ा झटका लगा है, क्योंकि उसे उम्मीद थी कि राहुल गांधी की ‘भारत जोड़ो यात्रा’ को मिले भारी समर्थन तथा मल्लिकार्जुन खड़गे को पार्टी का नया अध्यक्ष बनाए जाने का प्रभाव उत्तर-पूर्व प्रदेशों के चुनावों में भी देखने को मिलेगा, परन्तु ऐसा नहीं हो सका। 
इस साल 9 विधानसभाओं के चुनाव होने हैं। इसलिए इन पहले तीन विधानसभा चुनावों पर हर चुनावी पंडित की नज़र इसलिए गड़ी थी कि देखें मतदाताओं का मूड क्या है? क्योंकि उत्तर-पूर्व के इन छोटे-छोटे प्रदेशों के राजनीतिक रूझान से भले सटीक अंदाज़ा न लगे लेकिन तस्वीर की एक झलक तो मिल ही जाती है। जिस तरह से इस बार इन चुनावों को गंभीरता से लिया गया था, उससे भी साफ  था कि राजनीतिक पार्टियां यह जानने के लिए उत्सुक थीं कि आखिर आम चुनावों के ठीक एक साल पहले इन तीन विधानसभा चुनावों से कैसी शुरुआत होती है? वैसे एग्जिट पोल बता रहे थे कि त्रिपुरा और नागलैंड में भाजपा सरकार बना सकती है और मेघालय में वह बेहतर स्थिति में जा सकती है, लेकिन स्वतंत्र रूप से चुनावी पंडित यह मानते हुए हिचकिचा रहे थे, लेकिन एग्जिट पोल सही साबित हुए हैं। भाजपा ने वाकई उत्तर-पूर्व के चुनावों में अनुमान से ज्यादा जीत हासिल करके विपक्ष को झटका दिया है। इस झटके में यह संदेश भी मिला है कि साल 2024 में वाकई उसे हराने के लिए विपक्ष को बहुत मेहनत करनी पड़ेगी।
वैसे इन तीन राज्यों के चुनावों परिणामों में अगर भाजपा के लिए सचमुच कोई बड़ी परीक्षा थी, तो वह त्रिपुरा ही था। क्योंकि त्रिपुरा में उसे साल 2018 में अप्रत्याशित जीत हासिल हुई थी। महज दो साल पहले बिप्लव कुमार देव त्रिपुरा में भाजपा के मिशन लेकर गये थे और 20 सालों से बरगद की तरह अपनी जड़े जमाए बेहद प्रतिष्ठित माणिक सरकार को उखाड़ फेंका था। साल 2018 के विधानसभा चुनावों में भाजपा  को अप्रत्याशित जीत मिली थी । प्रदेश की 60 सीटों में से उसने 43 सीटें जीती। जहां अब के पहले उसे एक से डेढ़ फीसदी मत मिला करता था, वहीं 2018 में 50.5 फीसदी मत मिला। जो वामपंथी गठबंधन त्रिपुरा में अजेय माना जाता था, वह ताश के पत्तों के महल की तरह भरभराकर ढह गया। वामपंथी गठबंधन को महज 16 सीटें मिलीं। बाद में एक बची सीट भी भाजपा के खाते में गई थी। त्रिपुरा में भारतीय जनता पार्टी की यह अप्रत्याशित जीत इस बार दांव पर लगी थी। आम राजनेताओं से लेकर तमाम चुनावी पंडित तक यह जानने को उत्सुक थे कि क्या 2018 में प्रदेश के मतदाताओं ने यूं टेस्ट बदलने के लिए भाजपा को चुन लिया था या फिर यह सजग बदलाव था? कहना न होगा कि ज्यादातर का मानना टेस्ट बदलना ही था और जिस तरह से त्रिपरा मोथा पार्टी ने ऐन चुनावों के अपनी ज़ोरदार मौजूदगी दिखायी थी, उससे लग रहा था कि भाजपा इस नेटिजन समूह और मजबूत वामपंथी गठबंधन के दो पाटों में पिस जाएगी या उसका असली रणनीतिक कौशल दिखेगा।
कहना होगा कि भाजपा इस परीक्षा में सफल रही। हालांकि उसे पिछली बार की 43 सीटों के मुकाबले इस बार 33 सीटें ही मिली हैं। लेकिन यह भाजपा की एक बड़ी जीत ही कही जायेगी। कम्युनिस्ट गठबंधन ने एक बार फिर से सत्ता गंवा दी है। उसे पिछली बार जहां 16 सीटें मिली थीं, वहीं इस बार कांग्रेस के साथ गठबंधन बनाने के बाद भी 14 सीटें ही मिल सकी हैं। जिस त्रिपरा मोथा पार्टी को किंगमेकर माना जा रहा था ,वह अपना वजूद भर स्थापित कर सकी। उसे 13 सीटें ही मिल सकी हैं। इस तरह देखा जाए तो भाजपा उत्तर-पूर्व के अपने सबसे कठिन गढ़ में सफल रही है। उसे जहां लगभग 40 फीसदी मत मिले हैं, वहीं तीन कम्युनिस्ट पार्टियों (सीपीआई, सीपीएम और सीपीआईएमएल) को कुल मिलाकर 25 फीसदी और कांग्रेस को करीब 8.7 फीसदी मत मिले हैं। इसका मतलब यह है कि कांग्रेस और सभी वामपंथी पार्टियां मिलकर भी भाजपा के बराबर मत नहीं हासिल कर सकीं। इससे यह नतीजा निकालना गलत नहीं होगा कि त्रिपुरा में भाजपा को पिछली बार धुप्पल में सत्ता नहीं मिली थी बल्कि मतदाताओं ने सोच समझकर उसे चुना था।
अगर बात नागालैंड की करें तो यहां भाजपा को भले महज 12 सीटें ली हों जो कि उसे पिछली बार मिली सीटों के बराबर ही हैं, लेकिन अगर भाजपा गठबंधन की बात करें तो उसे इन चुनावों में 60 में से 37 सीटें मिल गई हैं। नागालैंड के 16 जिलों में 27 फरवरी, 2023 को करीब 86 फीसदी वोटिंग हुई थी, जो कि पिछली बार हुई वोटिंग से 10 फीसदी ज्यादा थी। 10 फरवरी, 2023 को एक विधानसभा क्षेत्र से भाजपा उम्मीदवार कजेतो किननी निर्विरोध चुने गये। जबकि नेशनलिस्ट डेमोक्रेटिक प्रोग्रेसिव पार्टी यानी एनडीपीपी ने 25 सीटें जीती है। नागालैंड में अभी भी एनडीपीपी की ही सरकार है। यह पार्टी 2017 में अस्तित्व में आयी थी और तब 18 सीटें जीती थीं। इस बार इसकी सीटों में 7 का इजाफा हो रहा है। इस तरह भाजपा नागालैंड में भी सत्ता में अपने गठबंधन के जरिये पहले की तरह बनी रहेगी। नागालैंड में सबसे ज्यादा दुर्गति कांग्रेस की हुई है, जिसे 2018 में एक भी सीट नहीं मिली थी और इस बार भी उसका दूर तक कहीं कोई नामो निशान नहीं है।
अगर बात मेघालय के चुनाव परिणामों की करें तो यहां नेशनल पीपुल्स पार्टी का डंका बजा है। 27 फरवरी, 2023 को मेघालय की 60 में 59 सीटों पर मतदान हुआ था और 85.27 फीसदी वोट पड़े थे। एक सीट सेबियोंग पर चुनाव टाल दिया गया था, क्योंकि यहां यूडीपी के उम्मीदवार एचडीआर लिंगदोह का निधन हो गया था। इस बार मेघालय में पिछली बार के मुकाबले करीब 18 फीसदी ज्यादा वोट पड़े थे। इस बार एमपीपी के 57, कांग्रेस और भाजपा के सभी सीटों में और टीएमसी ने 56 सीटों पर अपने उम्मीदवार उतारे थे। कांग्रेस ने 2018 में मेघालय में सबसे ज्यादा 21 सीटें जीती थीं, लेकिन इस बार वह महज 5 सीटों तक सिमट गई है। भाजपा को पिछली बार दो सीटें मिली थीं, जबकि उसने 47 सीटों में मुकाबला किया था। ये दोनो सीटें भी उसे पहली बार मिली थीं। इस बार भी भाजपा को यहां दो सीटें ही मिली हैं। हालांकि 60 उम्मीदवार को उतारकर और 59 उम्मीदवारों के मुकाबले के बाद यह कोई संतोषजनक कारगुज़ारी नहीं हैं। फिर भी कांग्रेस की जिस तरह से दुर्गति हुई है, उसको देखते हुए तो यह न केवल यह स्थिति बेहतर है बल्कि एनपीपी के कोनराड संगमा भाजपा के हेमंत विसवा शर्मा के सम्पर्क में हैं, इसलिए भाजपा मेघालय की सरकार में भी भागीदार अवश्य बनेगी।
इस तरह देखा जाए तो इस साल जिन नौ विधानसभाओं के चुनाव होने हैं, उनमें से पहले तीन विधानसभा चुनावों में भाजपा की कारगुज़ारी कांग्रेस के मुकाबले बेहतर रही है। यह अगले चुनावों के जीतने की गारंटी तो नहीं है लेकिन इससे आत्मविश्वास तो मिलता ही है। इससे एक बात यह भी साबित होती है कि भाजपा की उत्तर-पूर्व में अच्छी पैठ बन चुकी है।
-इमेज रिफ्लेक्शन सेंटर