वर्ष बीत जाने के बाद


चाहे एक वर्ष बीत जाने के बाद पंजाब सरकार द्वारा इस समय की उपलब्धियों के बड़े दावे किए जा रहे हैं परन्तु देखने वाली बात यह होगी कि क्रियात्मक रूप में यह कितने साकार हुए हैं तथा इनका सामान्य जन-जीवन पर क्या प्रभाव पड़ा है? सरकार अपनी बड़ी उपलब्धियों में मुफ्त घरेलू बिजली देने तथा 500 से अधिक मोहल्ला क्लीनिक बनाने को गिना रही है। जहां तक घरेलू बिजली का संबंध है, हम समझते हैं कि इसने पंजाबियों की बढ़ रही मुफ़्तखोरी की मानसिकता में और भी वृद्धि कर दी है। किसी प्रदेश के पास अधिक बिजली उत्पादन हुआ हो, उसकी अर्थ-व्यवस्था का पलड़ा बेहद भारी हो तो वहां ऐसा फैसला कुछ ठीक भी लग सकता है परन्तु यदि प्रदेश की अर्थ-व्यवस्था पहले ही औंधे मुंह गिरी हो, यदि पावरकॉम पहले ही कमियों से जूझ रहा तथा ऋणी हो तो वहां ऐसे फैसले अनुत्पादक साबित होते हैं। इसके साथ ही एक जेब से पैसा निकाल कर दूसरी जेब भरने को समझदारी नहीं कहा जा सकता।
सरकार ने पॉवरकॉम को 9000 करोड़ रुपए देने हैं, 2600 करोड़ रुपये सरकारी विभागों ने बिलों के पावरकॉम को देने हैं। बिजली की मांग को पूरा करने के लिए वह लगातार ऋण ले रहा है। गर्मी का मौसम शुरू होते ही उसके माथे पर पसीना आना शुरू हो गया है। उद्योगपतियों तथा व्यापारियों को यह चिन्ता सताये जा रही है कि निगम ने अपना यह पूरा आर्थिक बोझ किसी न किसी तरह उनके कंधों पर ही लादना है। लगातार उनके संगठनों द्वारा इसके विरुद्ध स्वर उठने शुरू हो गए हैं। जेब खाली होगी तो बिजली उत्पादन के लिए कच्चा माल या बाहर से बिजली खरीदने के लिए पैसे कहां से आएंगे? इस संबंध में कुछ भी स्पष्ट नहीं किया जा रहा। गर्मियों में बिजली के कट लगने की सम्भावनाओं ने अभी से ही किसान वर्ग तथा जन-साधारण को चिन्ता में डाल दिया है। पैदा हुए ऐसे दृश्य में मुफ़्त बिजली देने के दावों को कितना उचित माना जा सकता है, का जवाब कम से कम -जन-साधारण के पास नहीं है।
मोहल्ला क्लीनिकों के निर्माण के बड़े-बड़े दावों का जन-जीवन पर कितना प्रभाव पड़ा है, इस योजना ने पहले से ही स्थापित स्वास्थ्य सेवाओं में कितनी गड़बड़ पैदा कर दी है, इस संबंध में पिछले समय में प्रकाशित विस्तृत रिपोर्टें सब कुछ स्पष्ट बयां कर रही हैं। जहां तक अमन-कानून की स्थिति का संबंध है, हम पुलिस विभाग के दावों पर किन्तु-परन्तु नहीं करते परन्तु समूचे रूप में आज इस पक्ष से प्रदेश की क्या स्थिति बन गई है, प्रतिदिन सामने आते तथ्य इसे स्वयं ही बयां कर रहे हैं। लूटपाट, चोरियां, हत्याओं का दौर  जारी है, फिरौतियों को लेकर छोटा समर्थ व्यक्ति भी डर के साये में जीने लगा है। हर तरफ अनुशासन की कमी दिखाई देने लगी है, जिसने समूचे समाज की चूलें हिला कर रख दी हैं सरकार के कुछ हज़ार नौकरियां देने के दावों की बात मानी जा सकती है परन्तु लगातार बढ़ती बेरोज़गारी के सामने यह दावे बौने होकर रह जाते हैं। जिस किसी भी युवक या अन्य वर्ग के व्यक्ति को अवसर मिलता है, वह यहां से पलायन करने में ही अपना भला समझने लगा है।
प्रदेश में औद्योगिक गतिविधियां मद्धम पड़ गई हैं। जबकि सभी पड़ोसी प्रदेश इससे धड़कते दिखाई देने लगे हैं। आर्थिक स्रोत पैदा करने के अपने दावों तथा वायदों से सरकार बुरी तरह पिछड़ गई है। यदि ऐसा न होता तो मौजूदा सरकार द्वारा भी प्रदेश के सिर पर ऋण की गठरी को और भारी करने का फैसला न लिया जाता। सरकारी तथा ़गैर-सरकारी कर्मचारियों से लेकर लोगों के अन्य वर्गों में भी उत्साहहीनता तथा दिशाहीनता का आलम बन गया है, जो प्रदेश के लिए बेहद हानिकारक है। आगामी समय में सरकार द्वारा बातों का हलुवा बनाने के स्थान पर इसकी बेहतरी के लिए क्रियात्मक रूप में ठोस कदम उठाए जाने चाहिएं।

—बरजिन्दर सिंह हमदर्द