पंथ तथा पंजाब की बदनामी करवा गया ‘आप्रेशन अमृतपाल’

18 मार्च से पंजाब सरकार तथा केन्द्र सरकार द्वारा संयुक्त रूप से आरम्भ किया गया ‘आप्रेशन अमृतपाल’ 23 अप्रैल को सरकारों के दृष्टिकोण के अनुसार अमृतपाल सिंह की गांव रोडे (मोगा) के एक गुरुद्वारा साहिब से हुई गिरफ्तारी से पूर्ण हो गया, परन्तु इस पूरे घटनाक्रम का पंजाबियों तथा खास तौर पर सिख समुदाय पर गहरा प्रभाव पड़ा है। जो कुछ भी इस समय के दौरान घटित हुआ है, उसकी पहली ज़िम्मेदारी अमृतपाल सिंह तथा उसके साथियों पर आती है तथा इसकी दूसरी ज़िम्मेदारी पंजाब सरकार तथा केन्द्र पर आती है।
अमृतपाल सिंह दुबई में अपने परिवार का ट्रांस्पोर्ट का कामकाज छोड़ कर विगत वर्ष पंजाब आया था तथा श्री आनंदपुर साहिब में तख्त श्री केसगढ़ साहिब से अमृत ग्रहण कर सिखी स्वरूप धारण किया तथा पंजाब के युवाओं में अमृत का संचार करके उन्हें सिखी के साथ जोड़ने तथा नशों से दूर रखने का प्रण ले कर दीप सिद्धू द्वारा बनाये गये संगठन ‘वारिस पंजाब दे’ का नेतृत्व सम्भाला था। इस संबंधी संत जरनैल सिंह जी के गांव रोडे में 27 सितम्बर, 2022 को उनकी दस्तारबंदी भी हुई थी। इस उद्देश्य के लिए उन्होंने पंजाब के अनेक शहरों तथा गांवों का दौरा किया तथा अपनी इस लामबंदी को ‘़खालसा वहीर यात्रा’ का नाम दिया। नि:सन्देह नौजवान बड़ी संख्या में उनके आस-पास एकत्र हुए, परन्तु उन्होंने अपने इन कार्यों को युवाओं को नशों से दूर करने तथा अमृत संचार करने तक ही सीमित नहीं रखा, अपितु इसके साथ-साथ उन्होंने युवाओं के सामने ़खालिस्तान बनाने तथा सिख पंथ को आज़ादी दिलाने का मुद्दा भी रखना शुरू कर दिया। समय-समय पर इस उद्देश्य के लिए उन्होंने भड़काऊ भाषण दिये, हर समय वह धमकियां देने वाली शैली में भी बातचीत करते दिखाई दिये। इसके साथ उनकी पंजाब में भिन्न-भिन्न वर्गों द्वारा आलोचना होना भी शुरू हो गई थी। स्वयं को सिखी मर्यादा में परिपक्व दिखाने के लिए उन्होंने गुरुद्वारों के दीवान हाल में पीछे की ओर बुजुर्गों तथा विकलांग संगत के लिए रखी कुर्सियों तथा बैंचों को सिख मर्यादा के विरुद्ध करार देते हुए निशाना बनाना शुरू कर दिया। कपूरथला के एक गुरुद्वारा साहिब में तथा उसके बाद जालन्धर के एक गुरुद्वारा साहिब में उन्होंने तथा उनके साथियों ने जब्री बैंच तथा कुर्सियां बाहर निकाले और उन्हें अग्नि भेंट कर दिया। उनकी तथा उनके साथियों की इस कार्रवाई का सिख संगत ने बेहद बुरा मनाया। जालन्धर के गुरुद्वारा साहिब की कमेटी ने तो इस संबंध में पुलिस के पास शिकायत भी दर्ज करवाई थी परन्तु पुलिस ने शिकायत दर्ज करने से ही इन्कार कर दिया था। बाद में भी इस संबंधी कोई कार्रवाई नहीं की गई। इससे अमृतपाल सिंह तथा उसके साथियों के कानून हाथ में लेने संबंधी हौसले बढ़ गये। इस समय के दौरान अमृतपाल सिंह के कुछ साथियों ने रोपड़ ज़िले के एक गुरसिख युवक वरिन्दर सिंह का अपहरण करके उसके साथ मारपीट की। इस संबंध में उसने अजनाला थाने में मामला दर्ज करवा दिया तथा इस मामले में अमृतपाल सिंह के एक साथी लवप्रीत सिंह त़ूफान को पुलिस ने गिरफ्तार कर लिया। अमृतपाल सिंह ने लवप्रीत सिंह की गिरफ्तारी को प्रतिष्ठा का सवाल बना लिया तथा अपने गांव जल्लूपुर खेड़ा में सोशल मीडिया द्वारा कई दिनों तक अपने समर्थकों को इकट्ठा करके 23 फरवरी को अजनाला थाने पर हमला कर दिया। उस समय हुई हिंसक झड़पों में एक एस.पी. तथा अनेक पुलिस कर्मचारी घायल हो गये थे। ऐसा करते समय वे पालकी साहिब में श्री गुरु ग्रंथ साहिब की सवारी भी ले गये। इस दौरान अमृतपाल सिंह के साथियों की पुलिस के साथ हुई झड़पों की देश भर के टी.वी. चैनलों ने लाइव कवरेज की तथा देश-विदेश में सिख समुदाय के विरुद्ध तीव्र प्रचार करते हुये यह दिखाया गया कि ़खालिस्तानियों ने अजनाला थाने पर कब्ज़ा कर लिया है। इससे देश-विदेश में सिख समुदाय की बदनामी हुई तथा देश-विदेश में रह रहे पंजाबी तथा सिख समुदाय के लोग बेहद चिंतित भी हुये कि आखिर पंजाब में हो क्या रहा है? पंजाब में भिन्न-भिन्न राजनीतिक पार्टियों ने इसके बाद प्रदेश सरकार से मांग करनी शुरू कर दी थी कि अमृतपाल सिंह तथा उसके साथियों के विरुद्ध उचित कार्रवाई की जाये, परन्तु 23 फरवरी को घटित इस घटनाक्रम के बाद पंजाब सरकार तथा उसकी पुलिस लगभग एक मास तक ़खामोश रही तथा उनकी ओर से कोई कार्रवाई नहीं की गई।
इस दौरान प्रदेश के मुख्यमंत्री भगवंत मान की दिल्ली में देश के गृह मंत्री अमित शाह के साथ एक मुलाकात हुई तथा उन्होंने प्रदेश में अमन-कानून की स्थिति को ठीक करने के उद्देश्य से केन्द्र सरकार से सी.आर.पी.एफ. की 18 पुलिस कम्पनियां मंगवाईं, जिन्हेें केन्द्र सरकार ने शीघ्र पंजाब भेजने का फैसला ले लिया। 
इस बात की भारी सम्भावना है कि मुख्यमंत्री भगवंत मान की अमित शाह के साथ हुई इस बैठक के दौरान ही ‘आप्रेशन अमृतपाल’ की रूप-रेखा तैयार की गई थी तथा इस उद्देश्य के लिए ही मुख्यमंत्री ने अमित शाह से सी.आर.पी.एफ. की 18 कम्पनियों की मांग की थी। इसके उपरांत 18 मार्च को पंजाब पुलिस हरकत में आई तथा उसने अमृतपाल सिंह तथा उसके साथियों को पकड़ने के लिए प्रदेश में इंटरनेट सेवा बंद करके व्यापक स्तर पर कार्रवाई  शुरू कर दी। अमृतपाल सिंह तथा उसके साथियों को गिरफ्तार करने के लिए पुलिस ने कार्रवाई तब आरम्भ की जब वे जल्लूपुर खेड़ा (अमृतसर) से मुक्तसर को ‘़खालसा वहीर यात्रा’ का दूसरा पड़ाव आरम्भ करने के लिए रवाना हुये थे। पुलिस द्वारा शुरू की गई बड़ी कार्रवाई में अमृतपाल सिंह के अधिकतर साथी गिरफ्तार हो गये तथा 300-400 अन्य युवाओं, जिन्हें पुलिस अमृतपाल सिंह का नज़दीकी समझती थी, को भी गिरफ्तार किया गया। चाहे बाद में बेकसूर युवाओं को गिरफ्तार करने के विरुद्ध आवाज़ उठने तथा जत्थेदार श्री अकाल तख्त साहिब द्वारा अल्टीमेटम देने के कारण 248 के लगभग युवाओं को रिहा भी कर दिया गया परन्तु अमृतपाल सिंह तथा उसका एक साथी पपलप्रीत सिंह जालन्धर के शाहकोट क्षेत्र से चकमा देकर पुलिस की गिरफ्त में आने से बच गये तथा फिर उनके कभी पटियाला, कभी कुरुक्षेत्र, कभी उत्तराखंड तथा कभी पुन: होशियारपुर ज़िले के गांवों में आने के समाचार आते रहे। इस दौरान अमृतपाल सिंह के समर्थक जोगा सिंह तथा पपलप्रीत सिंह पुलिस की गिरफ्त में आ गये परन्तु अमृतपाल सिंह फिर भी पुलिस की पकड़ से बाहर रहा। 
अंतत: 23 अप्रैल को गांव रोडे (मोगा) के एक गुरुद्वारा साहिब के बाहर से पुलिस ने उसे हिरासत में ले लिया। इस संबंध में पंजाब सरकार तथा पुलिस यह दावा कर रहे हैं कि उन्होंने गुरुद्वारा साहिब को घेर लिया था तथा अमृतपाल सिंह के समक्ष जब बाहर निकलने का कोई रास्ता न रहा तो उसने स्वयं को पुलिस के हवाले कर दिया, परन्तु तथ्य तथा सबूत यह दर्शाते हैं कि अमृतपाल सिंह ने सोच-समझ कर संत जरनैल सिंह की याद में बने गांव रोडे के गुरुद्वारा साहिब से आत्म-समर्पण किया है तथा इसी स्थल से ही 29 सितम्बर, 2022 को अमृतपाल सिंह की ‘वारिस पंजाब दे’ के प्रमुख के तौर पर दस्तारबंदी हुई थी। पुलिस के समक्ष आत्म-समर्पण करने से पूर्व अमृतपाल सिंह ने गुरुद्वारा साहिब में वीडियो बना कर अपनी ओर से गिरफ्तारी देने संबंधी भी अपने समर्थकों को बताया तथा उस समय गुरुद्वारा साहिब के बाहर बड़ी संख्या में पुलिस तैनात नहीं थी। इससे साबित होता है कि अमृतपाल सिंह ने स्वयं आत्म-समर्पण किया तथा इस संबंधी किसी न किसी व्यक्ति द्वारा पुलिस को पहले ही सूचित भी कर दिया गया था। इसी कारण ही उन्हें हिरासत में लेने के बाद शीघ्र बठिंडा के हवाई अड्डे पर ले जाया गया तथा वहां से उन्हें डिब्रूगढ़ (असम) ले जाने के लिए भारतीय सेना का विमान पहले ही तैयार खड़ा था। इससे यह भी साबित होता है कि पंजाब पुलिस ने अमृतपाल सिंह के आत्म-समर्पण करने संबंधी केन्द्रीय एजेंसियों को भी पहले से ही जानकारी दी हुई थी तथा पंजाब एवं केन्द्र की एजेंसियां आपसी तालमेल के साथ काम कर रही थीं। इसी कारण ही हमने इस लेख के शुरू में ज़िक्र किया है कि अमृतपाल सिंह तथा उनके साथियों को गिरफ्तार करने के लिए जो ‘आप्रेशन अमृतपाल’ किया गया, वह केन्द्र तथा प्रदेश सरकार का संयुक्त आप्रेशन था।
इस संबंध में पंजाब सरकार तथा केन्द्र सरकार की भांति ही कुछ अन्य लोगों का भी यह पक्ष हो सकता है कि केन्द्र तथा प्रदेश सरकार ने अमृतपाल सिंह तथा उनके साथियों जो अमन-कानून के लिए चुनौती बने हुए थे तथा देश-विरोधी गतिविधियां कर रहे थे, को यदि एक संयुक्त आप्रेशन द्वारा गिरफ्तार करने में सफलता हासिल कर ली है, तो इसमें आपत्ति वाली बात क्या है?  हमारे विचार के अनुसार इसमें एतराज वाली सबसे बड़ी बात यह है कि अमृतपाल सिंह तथा उसके साथियों ने जब शुरू से ही स्वेच्छाचारी गतिविधियां करना शुरू की थीं, खास तौर पर जब उसने गुरुद्वारा साहिब से कुर्सियां तथा बैंचों को बाहर निकाल कर फैंकना शुरू किया था, तथा इस संबंधी जालन्धर की गुरुद्वारा कमेटी द्वारा पुलिस के पास शिकायत भी दर्ज करवाई थी, तो उसी समय उसके विरुद्ध कार्रवाई किया जाना बनता था।
 (शेष कल)