फिर पैदा न होने दिया जाए अतीक जैसा कोई माफिया

 

पिछले दिनों उत्तर प्रदेश के कुख्यात माफिया डॉन अतीक अहमद के पुत्र असद और उसके दोस्त का मुठभेड़ में मारा जाना और उसके बाद पुलिस हिरासत में अस्पताल के सामने अतीक अहमद की उसके भाई अशरफ  सहित की गई हत्या की घटनाओं ने सबको हैरान कर दिया। बेशक अतीक अहमद के मारे जाने के साथ ही दहशत के एक युग का अंत हुआ है। किसने सोचा होगा कि प्रयागराज में तांगा चलाने वाले शख्स का बेटा देखते-देखते अपराध की दुनिया में खौफ  का पर्याय बन जाएगा। वह जिसकी सम्पत्ति पर चाहेगा कब्जा जमा लेगा। अगर कोई उसे अपनी सम्पत्ति देने में आनाकानी करेगा तो वह उसका या उसके पारिवारिक सदस्यों का अपहरण करवा लेगा। किसी की हत्या करवा देना उसके लिए मामूली बात थी। 
पर अफसोस इस बात को लेकर होता है कि अतीक अहमद को मुलायम सिंह यादव और फिर अखिलेश यादव का लगातार और खुला समर्थन मिलता रहा। कोई भी इन्सान अपराध की दुनिया में अतीक अहमद तब ही बनता है जब उसे किसी रसूखदार का राजनीतिक प्रश्रय हासिल होता है। अतीक अहमद को यह राजनीतिक प्रश्रय मिला जिसके कारण वह कानून को अपने हाथ में लेता रहा। अतीक अहमद की अब कुछ फोन पर की गई वे वार्ताएं सामने आई हैं जो वह फिरौती या फिर किसी की सम्पत्ति को कब्जाने के लिए किया करता था। 
इन वार्ताओं से पता चलता है कि वह फिरौती की रकम पूरे अधिकार के साथ मांगा करता था। उसके हुक्म को न मानने वालों को गंभीर परिणाम भुगतने के बारे में भी कड़क आवाज़ में बता दिया करता था। जनतंत्र का यह दुर्भाग्य ही है कि इस तरह का शख्स पांच बार उत्तर प्रदेश की विधानसभा का सदस्य रहा। वह लोकसभा की उस फूलपुर सीट से सांसद रहा जहां से कभी पंडित जवाहरलाल नेहरू चुनाव लड़ा करते थे। इसी अतीक अहमद के वोट से 2008 में केंद्र में संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन (यूपीए) की सरकार बची थी। उस वक्त तत्कालीन सरकार और अमरीका के साथ उसके परमाणु समझौते पर संकट के बादल मंडरा रहे थे, तब अतीक अहमद ने संप्रग सरकार बचाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। उस वक्त अतीक अहमद समाजवादी पार्टी का सांसद था। उस समय परमाणु समझौते के विरोध में संप्रग सरकार को बाहर से समर्थन दे रहे वामदलों ने अपने हाथ खींच लिए थे। ऐसे में विपक्ष तत्कालीन मनमोहन सिंह सरकार के खिलाफ  अविश्वास प्रस्ताव ले आया था। उस वक्त अतीक अहमद सहित छह अपराधी सांसदों को विश्वास प्रस्ताव पर वोटिंग से 48 घंटे पहले विभिन्न जेलों से छोड़ा गया था ताकि वे संप्रग सरकार के पक्ष में मतदान कर सकें।
हालांकि यह सवाल भी उठा कि आखिर पुलिस की सुरक्षा में अतीक कैसे मारा गया? यह सवाल उठाने वाले यह कैसे भूल जाते हैं कि उमेश पाल को जब अतीक के बेटे ने मारा था तब वह भी पुलिस की सुरक्षा में था। पहले असद और उसके दोस्त के मुठभेड़ में मारे जाने और फिर अतीक अहमद और उसके भाई की हत्या के बाद कुछेक नेता अतीक अहमद को खूंखार अपराधी नहीं मान रहे। अब तो यही कहना सही है कि अतीक जैसा कोई माफिया फिर पैदा न होने दिया जाए।