कर्नाटक में कांग्रेस की जीत कैसे हुई ?

कर्नाटक में कांग्रेस ने भाजपा को हरा कर जीत का ध्वज फहरा दिया है। कांग्रेस की इस जीत का श्रेय कर्नाटक विधानसभा चुनावों से पहले कैडर को उत्साहित तथा सक्रिय करने के लिए राहुल गांधी की ‘भारत जोड़ो यात्रा’, सिद्धारमैया की जन-अपील, डी.के. शिवकुमार के संगठनात्मक कौशल, पार्टी अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे के नेतृत्व तथा कर्नाटक के प्रभारी ए.आई.सी.सी. महासचिव रणदीप सिंह सुरजेवाला की ईमानदार कुशलता को जाता है।
 अत्यधिक ज़रूरी जीत कई कारकों पर निर्भर करती है, जैसे कि कांग्रेस ने अपने चुनाव अभियान का विकेन्द्रीयकरण किया, प्रदेश के नेताओं पर विश्वास जताया, राष्ट्रीय नेताओं को स्वयं को प्रदेश के नेताओं पर थोपने के बिना सलाहकार के रूप में काम किया। पार्टी के लिए कांग्रेस एक सामाजिक न्यायिक व्यवस्था को मज़बूत करने का प्रयास कर रही है। यह राहुल गांधी हैं, जिन्होंने  कोलार में जाति आधारित जनगणना का समर्थन किया। कांग्रेस को कर्नाटक में विशेष रूप से रखा गया था, जिसके तीन वरिष्ठ नेता पिछड़ी जातियों के सतरंगी गठबंधन का प्रतिनिधित्व करते थे। सिद्धारमैया कुरूबा, मल्लिकार्जुन खड़गे दलित तथा डे.के. शिवकुमार वोकालिगा हैं। पार्टी अध्यक्ष के रूप में खड़गे की नियुक्ति तथा इससे पहले चरणजीत सिंह चन्नी (दलित) को पंजाब के मुख्यमंत्री के रूप में नियुक्त करने का उद्देश्य दलित समुदाय का विश्वास जीतना है। सिद्धारमैया कर्नाटक के आगामी मुख्यमंत्री बन गए हैं। कांग्रेस के पास अब तीन ओ.बी.सी. नेता (अन्य दो अशोक गहलोत तथा भूपेश बघेल हैं) मुख्यमंत्री के रूप में होंगे। इस दौरान के.सी. वेणुगोपाल का कार्यकाल समाप्त हो गया है तथा मल्लिकार्जुन खड़गे शीघ्र ही अपनी नई टीम नियुक्त करेंगे। सुरजेवाला को कोई महत्त्वपूर्ण काम मिल सकता है।
नज़रें तेलंगाना पर
कर्नाटक में भाजपा को हराने के बाद, कांग्रेस ने अब अपना पूरा ध्यान तेलंगाना पर केन्द्रित कर लिया है। पार्टी का प्रदेश नेतृत्व चाहता है कि कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी प्रदेश का दौरा करें, जहां 6 महीनों में विधानसभा चुनाव होने हैं। इसी संबंध में तेलंगाना के सरूरनगर क्षेत्र में उनकी ओर से 9 मई को की गई बैठक एक विशेष महत्त्व रखती है, क्योंकि यह वही क्षेत्र है, जिसने एक बार उनकी दादी एवं स्वर्गीय प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी को संसद में भेजा था, जब वह मुश्किल दौर से गुज़र रही थीं। इन्दिरा गांधी ने 1980 में मेडक लोकसभा सीट पर जीत हासिल की थी। अब तेलंगाना कांग्रेस के सभी नेताओं की प्रियंका को सिर्फ एक ही अपील है कि तेलंगाना का दौरा अवश्य करें, क्योंकि वह सही तथा सकारात्मक सोच रखती हैं। दिल्ली तथा हैदराबाद दोनों में कांग्रेस नेताओं के एक वर्ग को लगता है कि पार्टी में अपने गौरव को पुन: जीवित करने के लिए शिवकुमार जैसे चेहरे की ज़रूरत है।
 ‘भारत जोड़ो यात्रा’ का दूसरा पड़ाव
सूत्रों के अनुसार कांग्रेस इस वर्ष सितम्बर में एक और ‘भारत जोड़ो यात्रा’ की योजना बना रही है। राहुल गांधी के नेतृत्व वाली ‘भारत जोड़ो यात्रा’ का दूसरा पड़ाव, इस बार पूर्व से पश्चिम की ओर होगा, जिसके तहत इस पद यात्रा की अरुणाचल प्रदेश के पासीघाट से शुरू होने की सम्भावना है, जोकि सम्भावित रूप से गुजरात के पोरबंदर में समाप्त होगी। पार्टी यात्रा के लिए विस्तारपूर्वक रूट प्लान तैयार कर रही है। कांग्रेस सूत्रों के अनुसार, कन्याकुमारी से श्रीनगर तक के अपने पहले पड़ाव की तरह यह पद यात्रा भारत को एकजुट करने तथा पार्टी कैडर को मज़बूत करने पर केन्द्रित होगी। यात्रा बेरोज़गारी तथा बढ़ती महंगाई के मुद्दों के विरुद्ध जन-मत बनाने का भी प्रयास करेगी। कांग्रेस ‘ऩफरत तथा फूट डालो राजनीति तथा हमारी राजनीतिक प्रणाली के अति-केन्द्रीयकरण’ के रूप में दावा करती है। 
ममता, अखिलेश की कांग्रेस के प्रति राय बदली
जबसे कांग्रेस ने कर्नाटक में भाजपा को हराया है, कई कांग्रेस विरोधियों की राय पार्टी के प्रति बदली है। बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी तथा समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष अखिलेश यादव ने घोषणा की है कि वह 2024 के लोकसभा चुनावों में उन क्षेत्रों में कांग्रेस का समर्थन करने के लिए तैयार हैं, जहां सबसे पुरानी पार्टी को भरपूर समर्थन प्राप्त है। हालांकि ममता को यह भी उम्मीद है कि कांग्रेस को अन्य क्षेत्रीय राजनीतिक पार्टियों का भी समर्थन हासिल करना चाहिए। इस दौरान एन.सी.पी. प्रमुख शरद पवार ने अगले वर्ष के लोकसभा चुनावों के लिए रणनीतिक योजना के कई मुद्दों पर चर्चा करने के लिए 17 मई को मुम्बई के यशवंतराव चौहान केन्द्र में एक बैठक की तथा उन्होंने कहा कि अब समय आ गया है कि विरोधी पार्टियां कम से कम एक संयुक्त कार्यक्रम के तहत एकजुट हों। 
दूसरी तरफ बिहार के मुख्यमंत्री नितीश कुमार देश के अलग-अलग भागों में जा कर कई प्रदेशों के विरोधी नेताओं को भाजपा के विरुद्ध एक मंच पर एकजुट करने के लिए कड़ी मेहनत कर रहे हैं। मुख्यमंत्री नितीश कुमार ने 2024 से पहले विरोधी दलों को एकजुट करने के लिए चल रहे प्रयासों के तहत एन.सी.पी. प्रमुख शरद पवार, शिवसेना (यू.बी.टी.) नेता उद्धव ठाकरे, झारखंड के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन, उड़ीसा के मुख्यमंत्री नवीन पटनायक, दिल्ली के आम आदमी पार्टी के मुख्यमंत्री अरविन्द केजरीवाल, पश्चिमी बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी तथा समाजवादी पार्टी के प्रमुख अखिलेश यादव के साथ अलग-अलग विशेष बैठकें की हैं। यह भी समाचार हैं कि अकाली दल भाजपा के साथ गठबंधन करने की योजना बना रहा है, जबकि बीजू जनता दल 2024 में स्वतंत्र रूप से लोकसभा चुनाव लड़ेगा।
(आई.पी.ए.)