दुर्भाग्यशाली है अ़फगान महिला !

लगभग दो वर्ष पूर्व अगस्त, 2021 में जब तालिबान ने पुन: अ़फगानिस्तान पर कब्ज़ा कर लिया था तो उस समय जितने भी पुरुष, महिलाएं तथा बच्चे जैसे भी ढंग-तरीके से वहां से निकल सकते थे, वे निकल गये। इसके इलावा लाखों ही अन्य लोग वहां से भागने के यत्नों में थे परन्तु पैदा हुये हालात ने उनके लिए बाहर के दरवाज़े बंद कर दिये तथा उस समय भी तथा आज भी वहां रहते लाखों ही लोग अपनी किस्मत को कोस रहे हैं। उस समय उन्हें तालिबान की वर्ष 1995 से 2001 तक की सत्ता याद थी, जब इन छ: वर्षों में  जम कर मानवाधिकारों का हनन हुआ। हर विरोधी स्वर को दबा दिया गया। सरेआम लोगों को फांसी दी गई। कोड़े मारे गये तथा उनमें से अधिकतर को गोलियों से भी भून दिया गया। नि:संदेह वह ऐसा काला दौर था, जिससे उन्हें 20 वर्ष तक निजात मिली रही परन्तु 2021 में तालिबान के पुन: देश की सत्ता पर काबिज़ होने के कारण लाखों ही लोग आज वहां नरक भोग रहे हैं।
इस देश के विश्व भर से कटे होने के कारण वहां भूख तथा ़गरीबी का राज है। सैकड़ों ही बच्चों के प्रतिदिन मरने के समाचार प्रकाशित होते हैं परन्तु वास्तव में बच्चों की मौतें सरकारी आंकड़ों से भी कहीं अधिक हो रही हैं। संयुक्त राष्ट्र सहित जो भी संगठन वहां राहत कार्यों में जुटे हुये हैं, सरकार उन्हें भी निरुत्साहित करने में कोई कमी नहीं छोड़ रही। लगभग 44 वर्ष पूर्व वर्ष 1979 में उस समय सोवियत यूनियन ने अ़फगानिस्तान में अपनी सेना भेज कर अपने समविचारक पार्टी की सरकार स्थापित की थी। उसके बाद बड़े देशों का हस्तक्षेप वहां बढ़ता गया। अमरीका तथा उसके साथियों ने अ़फगानिस्तान के पड़ोसी देश पाकिस्तान की सहायता से सोवियत सैनिकों को निकालने के लिए पूरा ज़ोर लगाया। हर तरह के आतंकी संगठन वहां सक्रिय किये गये। इस लड़ाई में इस देश का पूरी तरह विनाश हो गया। वर्ष 2001 में ओसामा-बिन-लादेन द्वारा अ़फगानिस्तान की धरती से जब अमरीका के व्यापारिक टावरों पर विमानों का अपहरण करके हमला करवाया गया तो अमरीकी सेनाओं के हस्तक्षेप से तालिबान सरकार को उखाड़ दिया गया। इसके बाद 2 दशकों तक यहां गृह युद्ध वाले हालात बने रहे परन्तु इन 20 वर्षों में अमरीकी सहायता से वहां बनी सरकारों ने वहां रहते करोड़ों लोगों को सुख की सांस ज़रूर दिलाई। जन-साधारण को खुल कर विचरण की आज़ादी मिली। महिलाओं को सांस लेने का अवसर मिला, परन्तु आज वह समय लोगों को स्वप्न जैसा प्रतीत होता है। पिछले दो वर्षों से धार्मिकता एवं सदाचार का चोला पहन कर विचरण कर रही तालिबान सरकार ने लोगों का जीना दुश्वार कर दिया है। इस अमल में महिलाएं पूरी तरह प्रताड़ित की जा रही हैं। यहां तक कि बच्चियों को भी विचरण की इज़ाज़त नहीं दी जा रही। लड़कियों के स्कूल एक तरह से बंद कर दिये गये हैं। जो कुछ भय तथा ़खौफ के माहौल में चलते भी हैं, वे शिक्षण संस्थान भी हालात के अनुसार सिसकते दिखाई दे रहे हैं। इस क्रम में ही विगत दिवस वहां लड़कियों के भिन्न-भिन्न प्राइमरी स्कूलों में बड़ी संख्या में छात्राओं को ज़हर दिये जाने के भयावह समाचार मिले हैं। तालिबानी सरकार ने लड़कियों के उच्च शिक्षण संस्थान पहले ही बंद करने की घोषणा कर दी थी परन्तु कुछ शर्तों सहित बच्चों को छठी कक्षा तक शिक्षा हासिल करने की इजाज़त दी गई थी। इन स्कूलों पर भी अब ़खतरे के बादल मंडराने लगे हैं।
तालिबान ने आते ही महिलाओं के काम करने पर पाबंदी लगा दी थी। उन पर बुर्का पहन कर तथा किसी पुरुष को साथ लेकर ही बाहर निकलने की शर्त लगाई गई। यहां तक कि मानव सेवा में लगी संस्थाओं में भी महिलाओं के काम करने पर रोक लगा दी गई है। काबुल तथा अन्य शहरों में संयुक्त राष्ट्र द्वारा राहत कार्यों के लिए जो अ़फगानी स्टाफ तैनात था, उसमें  से भी महिलाओं को हटा दिया गया है। यहां तक कि उनके रैस्टोरैंटों, जिम तथा पार्कों में जाने पर भी पाबन्दी लगा दी गई है। महिलाओं के लिए ऐसी स्थिति किसी नरक से कम नहीं कही जा सकती, परन्तु आज जहां अ़फगानिस्तान की महिला बेबस दिखाई दे रही है, वहीं विश्व भर के देश भी घटित होती ऐसी त्रासदी को देखते हुए बेबस हुए दिखाई देते हैं। ऐसी बेबसी और कितना लम्बा समय बनी रहेगी, इस संबंध में स्पष्टता से अभी कुछ भी नहीं कहा जा सकता। इस समय तो बंदूक की नोक पर तालिबान अ़फगान लोगों को भेड़-बकरियों की भांति हांकते नज़र आ रहे हैं।

—बरजिन्दर सिंह हमदर्द