नहरी व्यवस्था को पुन: बहाल करने की ज़रूरत

पंजाब में बढ़ते शहरीकरण और विकास के निरन्तर आगे बढ़ते कदमों ने एक ओर जहां भूमि के नीचे वाले पानी को लेकर मानवीय चिन्ताओं में इज़ाफा किया है, वहीं कृषि भूमि की सिंचाई के लिए उपलब्ध होते पानी की बर्बादी के नये द्वार भी खोले हैं। देश और खास तौर पर पंजाब प्रदेश की कृषि भूमि की सिंचाई आदि काल से वर्षा और नहरी पानी पर निर्भर रही है। इसके लिए पुराने समय में वर्षा के पानी को सुरक्षित और संरक्षित करने के लिए कुंओं, तालाबों, जौहड़ों, सरोवरों आदि की संस्कृति सदैव प्रफुल्लित होती रही। इस संस्कृति को राजाश्रय और प्रजा-आश्रय दोनों प्राप्त होते रहे। इसके अतिरिक्त नहरी पानी की उपलब्धता के लिए मुगलों और अंग्रेज़ों के शासन के दौरान भी भरपूर यत्न होते रहे। इस हेतु नदियों से नहरें निकाले जाने, और फिर नहरी पानी को खालों एवं सूओं के ज़रिये खेतों तक पहुंचाये जाने की व्यवस्था सरकारों और प्रशासन की ओर से की जाती रही। यह व्यवस्था देश को स्वतंत्रता प्राप्त होने के बाद भी जारी रही। पंजाब में आज़ादी हासिल करने के बाद का एक दौर ऐसा भी रहा, कि प्राय: प्रत्येक बड़े-छोटे शहर की सीमाओं पर स्थित गांवों और उनके खेतों तक नहरी पानी की रसाई होती थी। इसके लिए खालों एवं सूओं का जाल बिछा होता था। स्थिति यह भी थी कि अनेक क्षेत्रों में पशुओं के लिए और  मनुष्य के लिए भी पेयजल की आपूर्ति भी इसी ज़रिये से होती थी।
किन्तु धीरे-धीरे एक ओर विकास एवं उन्नति का दैत्य कुंओं, सरोवरों, तालाबों की संस्कृति को निगलता चला गया, दूसरी ओर वोटों की राजनीति के तहत राजनीतिक दलों और उनकी सरकारों द्वारा ग्रामीण क्षेत्रों में मुफ्त बिजली-पानी दिये जाने से किसानों की अधिकाधिक निर्भरता भूमिगत पानी की निकासी हेतु बिजली के ट्यूबवैलों पर होती चली गई। इसका नतीजा यह निकला कि धरती के नीचे वाला पानी अधिकाधिक दूर होते चला गया। नि:सन्देह इस स्थिति ने पंजाब की सम्पूर्ण भूमि की उर्वरता को नष्ट करके इसे बंजर होते जाने के कगार तक पहुंच दिया है। पंजाब में आम आदमी पार्टी की सरकार की पूरे प्रदेश में सभी के लिए मुफ्त बिजली की घोषणा ने तो घाव को नासूर बनाने जैसा काम किया है। इससे शहरों और ग्रामीण क्षेत्रों, दोनों जगह भूमिगत पानी की निकासी और बर्बादी का आलम तेज़ी से बढ़ा है।  बहुत स्वाभाविक है कि ‘पड़े जब से लाले, तो ़खुदा याद आया’ के अनुसार विशेषज्ञों और वैज्ञानिकों ने एक बार फिर से एक ओर जहां ट्यूबवैलों पर निर्भरता घटाने पर ज़ोर दिया है, वहीं कुंओं, तालाबों, सरोवरों को पुनर्जीवित करने हेतु भी सुझाव दिया। इसके लिए जब सर्र्वेक्षण किया गया, तो बड़ी भयावह स्थितियां सामने आई हैं।  पंजाब में एक समय 47,025 नहरी खालों की शिनाख्त राजस्व  विभाग में दर्ज होती थी, किन्तु आज इस आंकड़े में से 16 हज़ार, 892 खाले नक्शे और भूमि, दोनों से गायब हो गये हैं। शहरी आबादी से जुड़े खालों और सूओं पर तो लोगों ने अवैध कब्ज़े कर लिये हैं। रही-सही कसर स्वयं सरकार के अपने विभागों ने वहां पर सड़कें आदि बना कर पूरी कर दी है। नतीजतन भूमिगत पानी की अनुपलब्धता और गहराई के धरातल पर प्रदेश के 117 ब्लाक ‘डार्क ज़ोन’ में चले गये हैं। केवल 17 ज़ोन ही ऐसे रह गये हैं जिन्हें कुछ सीमा तक सुरक्षित माना जा सकता है। पंजाब में प्रति वर्ष 10.95 बिलियन क्यूबिक मीटर पानी अधिक निकाले जाने से प्रदेश की धरती निरन्तर रेगिस्तान बनने की ओर पग-पग बढ़ती जा रही है।
इस सर्वेक्षण के अनुसार पंजाब में लगभग एक सौ लाख एकड़ का रकबा कृषि कार्यों के अन्तर्गत आता है। नहरी विभाग की व्यवस्था के मुताबिक इसमें से 78.76 लाख एकड़ कृषि को सिंचाई हेतु नहरी पानी दिया जा सकता है, किन्तु वक्त की त्रासदी यह है कि केवल 38.78 लाख एकड़ भूमि पर ही नहरी पानी से सिंचाई हो सकती है। यह भी कि प्रदेश के कुल सवा लाख नहरी खालों में लगभग 60 हज़ार खाले ही पक्के हैं। शेष में अधिकतर आखिरी खेत तक पानी पहुंच ही नहीं पाता। पंजाब में भी यह एक भयावह पक्ष है कि पिछली सदी के सातवें दशक में 60 प्रतिशत कृषि रकबे की सिंचाई नहरी पानी से होती थी। तब प्रदेश में कुल 1.92 लाख ट्यूबवैल थे, किन्तु आज यहां ट्यूबवैलों की संख्या लगभग 14.50 लाख हो गई है, और नहरी एवं वर्षा जल के संरक्षित पानी से सिंचाई का रकबा निरन्तर कम होता गया है।
हम समझते हैं कि नि:सन्देह यह स्थिति बेहद भयावह है, और कि इसमें सुधार हो पाने की सम्भावना भी आज दूर-दूर तक निकट भविष्य में कहीं दिखाई नहीं देती। पंजाब की धरती को यदि बंजर और सहरा होते जाने से बचाना है, तो प्रदेश में पानी के युक्ति-संगत उपयोग हेतु समुचित और समयानुकूल रणनीति को अपनाना होगा। इस के लिए यदि ग्रामीण धरातल पर नहरी पानी से कृषि सिंचाई का रुझान बढ़ सके, तो प्रत्येक सम्भव यत्न किये जाने चाहिएं। जन-साधारण के तौर पर भी, पानी को व्यर्थ जाने से रोकने के लिए जानकारी देने के उपाय करने होंगे। सिंचाई हेतु ट्यूबवैलों पर निर्भरता घटाना और वर्षा के पानी को संरक्षित करने जैसे उपाय करना भी लाज़िमी होना चाहिए। ऐसे संयुक्त उपाय और यत्न ही पंजाब की भावी पीढ़ियों और प्रदेश की धरती पर उपकार करने जैसे सिद्ध होंगे।