दुर्भाग्यपूर्ण घटनाक्रम

पंजाब के राज्यपाल बनवारी लाल पुरोहित तथा प्रदेश के मुख्यमंत्री भगवंत मान के मध्य टकराव एक बार पुन: उभर कर सामने आ गया है। इस बार इसकी शुरुआत प्रदेश के मुख्यमंत्री द्वारा विगत रविवार नई दिल्ली के रामलीला मैदान में आम आदमी पार्टी की रैली को सम्बोधित करने के दौरान राज्यपाल के संबंध में की गईं टिप्पणियों से हुई। मुख्यमंत्री ने  चुनी हुई सरकारों के कामकाज में राज्यपालों द्वारा हस्तक्षेप करने की चर्चा करते हुए कहा कि हमारे राज्यपाल हमें विधानसभा अधिवेशन बुलाने की स्वीकृति नहीं दे रहे थे। इस कारण हमें सर्वोच्च न्यायालय में जाना पड़ा तथा सर्वोच्च न्यायालय ने आदेश दिया कि राज्यपाल को अधिवेशन बुलाना पड़ेगा। फिर राज्यपाल ने अपने भाषण में ‘मेरी’ सरकार शब्द का उपयोग करने से इन्कार कर दिया था परन्तु जब उन्होंने राज्यपाल को सर्वोच्च न्यायालय के फैसले का स्मरण करवाया तो वह ‘मेरी’ सरकार शब्द बोलने के लिए तैयार हो गये।
इस पर अगले ही दिन अपनी प्रतिक्रिया प्रकट करते प्रदेश के राज्यपाल श्री बनवारी लाल पुरोहित ने सर्वोच्च न्यायालय के फैसले का उल्लेख करते हुए कहा कि सर्वोच्च न्यायालय ने प्रदेश के मुख्यमंत्री को यह कहा था कि उनके द्वारा लिखे गए पत्रों का मुख्यमंत्री को जवाब देना पड़ेगा परन्तु उन्होंने आज तक मेरे द्वारा लिखे गये 10 पत्रों का जवाब नहीं दिया। ऐसा करके मुख्यमंत्री संविधान का उल्लंघन कर रहे हैं। मुख्यमंत्री द्वारा राज्यपाल के भाषण दौरान ‘मेरी’ सरकार शब्द का उपयोग न करने के दोष संबंधी उन्होंने कहा कि मैंने इससे इन्कार नहीं किया था। इस संबंध में सरकार रिकार्ड पेश कर सकती है। इसकी प्रतिक्रिया-स्वरूप मुख्यमंत्री ने विधानसभा के रिकार्ड का वीडियो ट्वीटर पर जारी करके अपने आरोप की पुष्टि की कि विधानसभा में बजट अधिवेशन के दौरान उन्होंने विपक्षी दल के एक नेता के ज़ोर देने पर ‘मेरी’ सरकार शब्द उपयोग करने के स्थान पर अकेले ‘सरकार’ शब्द का ही उपयोग किया था। इसके अलावा भी मुख्यमंत्री ने एक बयान में यह कहा है कि मौजूदा केन्द्रीय निज़ाम के अन्तर्गत ‘सिलैक्ट’ किये गये व्यक्ति ‘इलैक्ट’ किये गये व्यक्तियों के मामलों में हस्तक्षेप कर रहे हैं।
पंजाब के अधिकारों के सन्दर्भ में देखें तो यह घटनाक्रम बेहद दुर्भाग्यपूर्ण है। प्रदेश के राज्यपाल तथा मुख्यमंत्री के मध्य एक बार फिर खुली बयानबाज़ी आरम्भ नहीं होनी चाहिए। जब यह मामला बजट अधिवेशन से पूर्व सर्वोच्च न्यायालय में  गया था तो उस समय सर्वोच्च न्यायालय ने बेहद संतुलित फैसला देकर इस विवाद का समाधान कर दिया था। सर्वोच्च न्यायालय ने स्पष्ट शब्दों में कहा था कि प्रदेश के राज्यपाल मंत्रिमंडल की इच्छा के विरुद्ध जाकर विधानसभा अधिवेशन बुलाने से इन्कार नहीं कर सकते तथा दूसरी ओर मुख्यमंत्री को भी यह निर्देश दिया गया था कि वह महत्त्वपूर्ण मुद्दों पर प्रदेश के राज्यपाल की ओर से पत्रों के माध्यम से मांगी गई जानकारी देने के लिए प्रतिबद्ध हैं। इसलिए उन्हें राज्यपाल के लिखे हुये पत्रों को दृष्टिविगत नहीं करना चाहिए। इसके साथ ही सर्वोच्च न्यायालय ने राज्यपाल तथा मुख्यमंत्री दोनों को अपने-अपने पदों का मान-सम्मान बनाये रखने के लिए भी कहा था, परन्तु इसके बाद भी प्रदेश के मुख्यमंत्री द्वारा राज्यपाल की ओर से लिखे गये 10 पत्रों का जवाब न देने को उचित नहीं कहा जा सकता। ऐसा करके उन्होंने सर्वोच्च न्यायालय के ़फैसले तथा संवैधानिक व्यवस्था का उल्लंघन किया है।
इससे भी आगे जाते हुये मुख्यमंत्री ने  राज्यपाल के साथ अपने मतभेदों को दिल्ली रामलीला मैदान में हुई ‘आप’ की रैली के दौरान जैसे पुन: उछाला है, वह भी बेहद खेदजनक था। इसके बाद राज्यपाल की प्रतिक्रिया का आना भी स्वाभाविक ही था, परन्तु पंजाब के हित तथा राज्यपाल एवं मुख्यमंत्री दोनों के प्रतिष्ठाजनक पद इस बात की मांग करते हैं कि दोनों शख्सियतें अपने मतभेदों को खत्म करें तथा दोनों मिल कर पंजाब के लोगों के हितों के लिए काम करें। संविधान में राज्यपाल तथा मुख्यमंत्री के पदों तथा अधिकारों का स्पष्ट रूप में विभाजन किया गया है, इसलिए किसी भी पक्ष को एक-दूसरे के अधिकार क्षेत्र में हस्तक्षेप करने से गुरेज करना चाहिए। इससे ही प्रदेश में सरकार तथा उसकी प्रशासनिक व्यवस्था उचित ढंग से काम कर सकती है।