सिख गुरुद्वारा एक्ट में संशोधन का विवाद सिख पंथ से किए गए वायदों पर कायम रहें सरकारें

मान सरकार द्वारा 20, जून, 2023 को विधानसभा के बुलाये गये विशेष अधिवेशन में सिख गुरुद्वारा एक्ट-1925 में धारा 125-ए शामिल करके किये गये संशोधन के विरुद्ध सिख पंथ में तीव्र रोष पैदा हुआ है। देश-विदेश से सिख संस्थाओं तथा उनके नेताओं द्वारा इसके विरुद्ध अपनी प्रतिक्रिया व्यक्त की जा रही है। मान सरकार ने सिख गुरुद्वारा एक्ट में यह संशोधन यह उद्देश्य बता कर किया है कि वह श्री हरिमंदिर साहिब से होने वाले गुरबाणी कीर्तन का प्रसारण सभी टी.वी. चैनलों तथा अन्य मीडिया प्लेटफार्मों द्वारा मुफ्त चाहती है तथा इस संबंध में पी.टी.सी. चैनल का एकाधिकार खत्म करवाना चाहती है। किसी एक चैनल का गुरबाणी कीर्तन के प्रसारण पर एकाधिकार न रहे, इस पर सिख पंथ तथा पंजाब के ज्यादातर लोगों को कोई ज्यादा आपत्ति नहीं हो सकती परन्तु सिख पंथ में बड़ी आपत्ति इस बात को लेकर पाई जा रही है कि यदि किसी भी सरकार को शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबन्धक कमेटी से आवश्यक विचार-विमर्श किये बिना ही सिख गुरुद्वारा एक्ट में संशोधन करने की इजाज़त दी जाती है तो इससे एक बहुत ़गलत तरह की परम्परा स्थापित हो जाएगी। आगामी समय में कोई भी प्रदेश सरकार या केन्द्र सरकार जब चाहे सिख गुरुद्वारा एक्ट में अपनी इच्छानुसार संशोधन कर सकेगी। कल को कोई भी सरकार शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबन्धक कमेटी में सरकार के प्रतिनिधि नियुक्त करवाने हेतु सिख गुरुद्वारा एक्ट में संशोधन कर सकती है। कोई अन्य सरकार इस उद्देश्य के लिए गुरुद्वारा एक्ट में संशोधन कर सकती है कि इसमें सहजधारियों को भी वोट देने का अधिकार होना चाहिए। शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबन्धक कमेटी किस तरह की धार्मिक गतिविधियां करे, किस तरह की न करे तथा राजनीतिक घटनाक्रम पर कोई प्रतिक्रिया व्यक्त करे अथवा न करे, यहां तक कि सरकार के विरुद्ध आन्दोलन कर रहे लोगों को लंगर सप्लाई करे या न करे, इस तरह के बहुत-से प्रतिबंध भी गुरुद्वारा एक्ट में संशोधन करके, आगामी समय में सरकारें शिरोमणि कमेटी पर लगा सकती हैं। यदि उन्हें अपनी इच्छानुसार सिख गुरुद्वारा एक्ट में संशोधन करने की आज्ञा दी गई तो शिरोमणि कमेटी की स्वायत्तता पूरी तरह खत्म हो जायेगी। आगामी समय में शिरोमणि कमेटी तख़्त श्री पटना साहिब तथा तख़्त श्री हुज़ूर साहिब का प्रबंध चलाने वाले बोर्डों की तरह हो जाएगी। इसलिए सिख पंथ के ज्यादातर क्षेत्र यह महसूस करते हैं कि मान सरकार द्वारा गुरुद्वारा एक्ट में किये गये उपरोक्त संशोधन को स्वीकार नहीं किया जाना चाहिए। सर्वोच्च न्यायालय के प्रसिद्ध वकील तथा सिख चिन्तक स. हरविन्दर सिंह फूलका ने भी उपरोक्त सभी आशंकाओं के संबंध में चंडीगढ़ में प्रैस कान्फ्रैंस करके सिख पंथ को विस्तारपूर्वक बताया है और सचेत भी किया है।
यदि शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबन्धक कमेटी के इतिहास को देखा जाये तो स्पष्ट रूप से यह बात उभरती है कि किसी भी सरकार ने शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबन्धक कमेटी की सहमति के बिना सिख गुरुद्वारा एक्ट-1925 में कभी कोई संशोधन नहीं किया। इस संबंध में 1959 का मास्टर तारा सिंह-नेहरू पैक्ट भी एक प्रसिद्ध उदाहरण है। उस समय पंजाब के शक्तिशाली मुख्यमंत्री स. प्रताप सिंह कैरों ने शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबन्धक कमेटी से मास्टर तारा सिंह का प्रभाव खत्म करने के लिए पैप्सू से कुछ और सदस्य शिरोमणि कमेटी में नियुक्त करवाने के लिए गुरुद्वारा एक्ट में संशोधन करने का यत्न किया था। इसका उस समय सिख पंथ ने तीव्र विरोध किया था। मास्टर तारा सिंह ने इस संबंध में दिल्ली में रोष मार्च करने की भी घोषणा की थी परन्तु उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया था। इसके बाद भी बड़ी संख्या में सिख भाईचारे के लोग दिल्ली में एकत्रित हुये तथा उन्होंने मास्टर तारा सिंह की तस्वीर उठा कर रोष मार्च किया। इसके उपरांत ही पंडित जवाहर लाल नेहरू ने मास्टर तारा सिंह के साथ लिखित समझौता किया, जिसमें स्पष्ट रूप से यह दर्ज किया गया है कि सिख गुरुद्वारा एक्ट में शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबन्धक कमेटी की सहमति के बिना कभी भी कोई संशोधन नहीं किया जाएगा। 1990 में संयुक्त मोर्चा की प्रधानमंत्री देवगौड़ा के नेतृत्व वाली केन्द्र सरकार ने शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबन्धक कमेटी में महिलाओं को अधिक प्रतिनिधित्व देने हेतु गुरुद्वारा एक्ट में संशोधन करने की बात की थी, तब भी श्री देवगौड़ा ने स्पष्ट रूप से कहा था कि वह शिरोमणि कमेटी को विश्वास में लेकर ही कोई ऐसा फैसला कर सकते हैं। प्रसिद्ध राजनीतिक नेता बलवंत सिंह रामूवालिया के अनुसार देवगौड़ा के नेतृत्व वाली केन्द्र सरकार ने उस समय शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबन्धक कमेटी के प्रधान जत्थेदार गुरचरण सिंह टोहरा के साथ इस संबंध में बातचीत करके शिरोमणि कमेटी की सहमति हासिल की थी तथा इसी आधार पर ही उपरोक्त संशोधन हुआ था।
उपरोक्त दो उदाहरणों से भी यदि थोड़ा-सा पीछे जायें तो देश की आज़ादी के संघर्ष दौरान भी कांग्रेस के बड़े नेताओं ने देश की ओर से सिखों के साथ बहुत-से वायदे किये थे, जिनका सरकारों द्वारा आज भी सम्मान करना बनता है। महात्मा गांधी ने सिखों को कहा था कि वे आज़ादी के संघर्ष में कांग्रेस का साथ दें। कांग्रेस कोई ऐसा संविधान स्वीकार नहीं करेगी, जो सिखों को सन्तुष्ट न करता हो। इस संबंध में महात्मा गांधी की गुरुद्वारा सीसगंज दिल्ली में सिख प्रतिनिधियों के साथ एक बैठक भी हुई थी, जिसमें महात्मा गांधी ने कहा था, 'I ask you to accept my word and the Resolution of the Congress that it will not betray a single individual much less a community. Let God be the witness of the bond that binds me and the Congress with you (the Sikhs)'. When pressed further, Gandhi said that, ‘Sikhs would be justified in drawing their swords out of their scabbards as Guru Gobind Singh had asked them to, if Congress would renege on its Commitment.' (Mohandas Karamchand Gandhi young India, March 19, 1931)
इसी प्रकार पंडित जवाहर लाल नेहरू ने भी स्वतंत्रता के संघर्ष के समय सिखों को यह आश्वासन दिलाया था कि स्वतंत्र भारत में उनका मान-सम्मान कायम रखा जाएगा तथा उन्हें इस बात पर भी कोई आपत्ति नहीं होगी कि यदि उत्तर भारत में एक ऐसा क्षेत्र स्थापित किया जाए, जहां कि सिख भी आज़ादी का आनंद ले सकें।
Jawahar Lal Nehru the first PM of India, promised the Sikhs, ‘The brave Sikhs of Punjab are entitled to special considerations. I see nothing wrong in an area set up in the North of India wherein, the Sikhs can also experience the glow of freedom’ (Jawahar Lal Nehru, Lahore Bulletin, Jan 9, 1930) 
अत: उक्त दिये गये उदाहरणों तथा ऐतिहासिक पृष्ठ-भूमि के संदर्भ में स्पष्ट तौर पर यह कहा जा सकता है कि मान सरकार को शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी के साथ विचार-विमर्श किये बिना सिख गुरुद्वारा एक्ट में कोई भी संशोधन नहीं करना चाहिए था। यदि सरकार श्री हरिमंदिर साहिब से गुरबाणी कीर्तन का खुला प्रसारण चाहती थी तो इस संबंध में उसे शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी के साथ सम्पर्क करके इस मामले का कोई समाधान निकालना चाहिए था। वैसे भी भारत जैसे धर्म-निरपेक्ष देश में किसी भी सरकार को किसी भी समुदाय के धार्मिक मामलों में सम्बद्ध समुदाय की सहमति के बिना कोई भी हस्तक्षेप नहीं करना चाहिए। मान सरकार को यह बात भी अच्छी तरह समझ लेनी चाहिए कि आनंदपुर साहिब के प्रस्ताव के माध्यम से स्वायत्तता की मांग करने वाली कौम शिरोमणि कमेटी की स्वायत्तता समाप्त करने का अधिकार हरगिज़ उनकी सरकार को नहीं देगी। विदेशी ताकतें इस समय भी सिख समुदाय को देश की मुख्य धारा से अलग करने के लिए सक्रिय हैं। मान सरकार के इस फैसले से भी सिख समुदाय में अलगाववाद की भावनाएं और अधिक बढ़ सकती हैं। इस सरकार को इस खतरे का भी एहसास करना चाहिए। 
अब सवालों का सवाल यह है कि जब मान सरकार ने सिख गुरुद्वारा एक्ट में संशोधन कर ही दिया है तो इस संबंधी शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी का दृष्टिकोण क्या हो? हमारे इस संबंधी कुछ सुझाव निम्नलिखित अनुसार हैं :
1. शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी का सोमवार को अमृतसर में हो रहा अधिवेशन एक प्रस्ताव पारित करके मान सरकार द्वारा सिख गुरुद्वारा एक्ट में किये गये संशोधन को पूरी तरह रद्द करे तथा मान सरकार से यह विधेयक वापस लेने की मांग भी करे। इसके साथ ही यह भी चेतावनी दे कि भविष्य में भी कोई सरकार शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी की सहमति के बिना सिख गुरद्वारा एक्ट में कोई भी संशोधन करने की हिमाकत न करे। यदि कोई भी सरकार ऐसा करेगी तो शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी तथा समूह सिख पंथ इसका कड़ा विरोध करेगा। 
2. शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी स्पष्ट तौर पर यह घोषणा भी करे कि सिख धर्म के प्रचार-प्रसार तथा गुरबाणी के प्रसारण के लिए वह स्वयं अपना सैटेलाइट चैनल स्थापित करेगी। 
3. क्योंकि सैटेलाइट चलाने के लिए केन्द्र सरकार के सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय से स्वीकृति लेनी पड़ती है और इस कार्य के लिए समय लग सकता है, अत: तब तक के समय के लिए शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी गुरबाणी कीर्तन के प्रसारण के लिए अपना यू-ट्यूब चैनल चलाने का फैसला करे तथा उसकी फीड अलग-अलग चैनलों तथा मीडिया प्लेटफार्मों को दी जाए, परन्तु इस उद्देश्य के लिए शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी द्वारा भिन्न-भिन्न चैनलों से हल्फिया बयान लेकर शर्तें तथा नियम लागू करवाए जाएं, कि सम्बद्ध चैनल गुरबाणी के प्रसारण के समय सिख धर्म की मर्यादा को कायम रखेंगे। उन पर लचर सामग्री का प्रसारण नहीं होगा। 
वर्तमान परिस्थितियों में शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी से ऐसे साहसिक एवं स्पष्ट फैसलों की सिख पंथ आशा करता है। सिख पंथ का बड़ा भाग यह भी महसूस करता है कि आज मान सरकार द्वारा गुरुद्वारा एक्ट में संशोधन के माध्यम से शिरोमणि कमेटी में हस्तक्षेप करने से जो हालात बने हैं, उनके लिए शिरोमणि कमेटी की ढीली कारगुज़ारी भी ज़िम्मेदार है। शिरोमणि कमेटी को गुरबाणी कीर्तन के प्रसारण के लिए बहुत पहले अपना स्वयं का चैनल बना लेना चाहिए था, क्योंकि सिख पंथ में काफी समय से यह मांग उठने लग पड़ी थी। अभी भी देश-विदेश में सिख संगत बड़ी जिज्ञासा से यह देख रही है कि शिरोमणि कमेटी दरपेश चुनौतियों के प्रसंग में समय के कितना समकक्ष होकर आगे आती है।