भारत को प्रति व्यक्ति आय बढ़ाने की ज़रूरत

भारत की आर्थिकता सकल घरेलू उत्पाद (जी.डी.पी.) के पक्ष से विश्व की 5वें स्थान की सबसे बड़ी आर्थिकता बन चुकी है तथा प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के अनुसार उनके तीसरे कार्यकाल अभिप्राय 2024 से 2029 तक यह तीसरे स्थान पर होगी। आंकड़ों की जादूगरी भी कमाल की होती है। कई बार तो इनका अन्तर समझ में नहीं आता क्योंकि जो आंकड़े पेश किये जा रहे होते हैं, वे 10 प्रतिशत सही होते हैं। उन पर उंगली तक नहीं उठाई जा सकती। अर्थ-शास्त्र तथा गणित उनसे निकाले परिणामों को किसी भी तरह ़गलत करार नहीं दे सकता, परन्तु वास्तविकता कई बार फिर भी बहुत अलग होती है। जावेद अख़्तर के शब्दों में :
कुछ बातों के मतलब हैं 
और कुछ मतलब की बातें,
जो यह ़फर्क समझ लेगा,
 वो दीवाना होगा।
यह सच है कि नरेन्द्र मोदी के दूसरे कार्यकाल में भारत का जी.डी.पी. 3.75 ट्रिलियन अमरीकी डॉलर पर पहुंच गया है। भारत यू.के. से विश्व की 5वीं सबसे बड़ी आर्थिकता का पदक छीन कर स्वयं 5वीं सबसे बड़ी आर्थिकता की कुर्सी पर विराजमान हो गया है। यह सच भी है और दुनिया इसे मानती भी है, परन्तु आश्चर्य तो यह है कि विश्व की 5वीं सबसे बड़ी आर्थिकता बन जाने के बावजूद भारत में इतनी बेरोज़गारी और ़गरीबी क्यों है? क्यों देश के 80 करोड़ लोगों को मुफ़्त की अनाज योजनाओं के सहारे जीना पड़ रहा है।
26 जुलाई को प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने दिल्ली में एक भाषण के दौरान 2029 तक भारत के विश्व की तीसरी सबसे बड़ी आर्थिकता बनने की जो भविष्यवाणी की है, हम उससे सहमत हैं। यह सम्भव है चाहे 2024 के लोकसभा चुनावों में नरेन्द्र मोदी की पार्टी जीते या कोई अन्य परन्तु यदि कोई बड़ी रुकावट जैसे कोई भारी प्राकृतिक आपदा या कोई बड़ा युद्ध न लड़ना पड़ा तो भारत मौजूदा गति से स्वयं ही विश्व की तीसरी सबसे बड़ी आर्थिकता वाला देश बन जायेगा। क्यों? कैसे? वह इसलिए कि भारत की सबसे बड़ी जनसंख्या तथा बढ़ती महंगाई भारत की अर्थ-व्यवस्था को बड़ा करने में सहायक कारण हैं। इसमें कोई सन्देह नहीं कि भारत विकास कर रहा है, इसके जी.डी.पी. में वृद्धि हो रही है।
परन्तु क्या भारत के जी.डी.पी. आधारित आंकड़ों से विश्व की तीसरी सबसे बड़ी अर्थ-व्यवस्था बन जाने से, सचमुच ही भारतवासी विश्व के तीसरे सबसे अधिक खुशहाल लोग बन जायेंगे? नहीं, बिल्कुल नहीं क्योंकि जी.डी.पी. के आकार के लिहाज़ से बड़ी आर्थिकता होना किसी देश के निवासियों की अमीरी तथा ़गरीबी की तर्जमानी नहीं करता तथा न ही देश की वास्तविक अर्थ-व्यवस्था की तस्वीर ही पेश करता है।
इस स्थिति को समझने के लिए जी.डी.पी. के आंकड़ों का ही एक और पैमाना भी देखना आवश्यक है। इस समय सबसे बड़ी अर्थ-व्यवस्था वाले 10 देशों में अमरीका का जी.डी.पी. 26.85 खरब डॉलर है, चीन का जी.डी.पी. 19.37 खरब डॉलर, जापान का 4.41 खरब डॉलर, जर्मनी का 4.31 खरब डॉलर, भारत का 3.74 खरब डॉलर, यू.के. का 3.16 खरब डॉलर, कनाडा का 2.09 तथा ब्राज़ील का जी.डी.पी. 2.08 खरब  डॉलर है, परन्तु इसके विपरीत अमरीका का पर कैपिटा (प्रति व्यक्ति) जी.डी.पी. विश्व में प्रथम स्थान पर नहीं, यह 7वें स्थान पर है। अमरीका में प्रति सदस्य जी.डी.पी. में छोटा-सा देश लग्ज़मबर्ग 1,32,372 डॉलर के साथ उससे कहीं आगे है। दिल्ली जितना छोटे-से देश सिंगापुर का प्रति व्यक्ति जी.डी.पी. अमरीका से भी अधिक है। यह 91100 डॉलर प्रति व्यक्ति है।
दूसरे नम्बर की अर्थ-व्यवस्था चीन का प्रति व्यक्ति जी.डी.पी. में विश्व में 64वें स्थान पर है, जो 13721 डॉलर प्रति व्यक्ति है। सकल घरेलू उत्पाद में 5वें स्थान की आर्थिकता भारत, प्रति व्यक्ति जी.डी.पी. में विश्व में 139वें नम्बर पर है। भारत का प्रति व्यक्ति जी.डी.पी. सिर्फ 2601 डॉलर है। इस लिहाज़ से तो हम भूटान (प्रति व्यक्ति जी.डी.पी. 3497 डॉलर) तथा श्रीलंका (प्रति व्यक्ति जी.डी.पी. 3362 डॉलर) से भी पीछे हैं। हां, हमें संतोष हो सकता है कि हम पाकिस्तान से काफी ऊपर हैं और बंगलादेश हमसे कुछ पीछे है। 
आज भी भारत की वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने भारत के आर्थिक विकास के कई आंकड़े पेश किये हैं। वे झूठ नहीं हैं परन्तु वे सिर्फ एकतरफा तस्वीर पेश करते हैं। निर्मला सीतारमण द्वारा दिये गये आंकड़े यह भी बताते हैं कि भारत सरकार पर 31 मार्च, 2014 को 58.6 लाख करोड़ का ऋण था जो 31 मार्च, 2023 को 155.60 लाख करोड़ हो गया। 
निर्मला सीतारमण का यह दावा बिल्कुल ठीक है कि भारत की तरक्की या विकास दर शानदार है, परन्तु भारतीयों की तरक्की व विकास दर शानदार नहीं है। हमें प्रति व्यक्ति आय बढ़ाने की ओर ध्यान देने की ज़रूरत है, मुफ्तखोरी तथा ग्रांटों की ओर नहीं। हमें एकता में अनेकता पर चलते हुए अमन-शांति की आवश्यकता है। मणिपुर, हरियाणा तथा कश्मीर जैसी स्थितियां हमारे असल विकास में बाधा हैं। आंतरिक तनाव देश के विकास में बाधा ही बनता है। हम प्रति व्यक्ति जीडीपी तथा निजी आय में विश्व के पहले 10 देशों में शामिल हों, तभी भारतवासी खुशहाल जीवन व्यतीत कर सकेंगे। 
महसूस भी हो जाये तो होता नहीं बयां 
नाज़ुक सा है फर्क गुनाह-ओ-सवाब में। 
(नरेश कुमार शाद)
चीन के साथ बढ़ता व्यापार घाटा
इस बीच उल्लेखनीय बात यह भी है कि भारत सरकार चीन के साथ व्यापार घाटा (अर्थात जो हम चीन को बेचते हैं और जो खरीदते हैं, उसके बीच का अंतर) कम करने का पूरा यत्न कर रही है। फिर भी यह घाटा बेहिसाब व बेलगाम ढंग से बढ़ता जा रहा है। 2020-21 में यह घाटा 3.25 लाख करोड़ रुपये था। वर्ष 2021-22 में यह 5.46 लाख करोड़ रुपये हो गया परन्तु 2022-23 में तो यह 6.68 लाख करोड़ रुपये तक पहुंच गया है। यह एक प्रकार से दो वर्षों में ही दोगुणा हो गया। 
ढेसी हो सकते हैं यू.के. के अगले मंत्री 
इस समय ब्रिटेन के प्रधानमंत्री ऋषि सुनक भारतीय मूल के हैं। यह हमारे लिए गर्व की बात है, परन्तु ब्रिटेन के आगामी चुनाव 2024 में होने की सम्भावना है चाहे इनके लिए अंतिम तिथि 24 जनवरी, 2025 तक हो सकती है। हवा में जिस प्रकार की ‘सरगोशियां’ हैं, उनके अनुसार इस बार ब्रिटेन में लेबर पार्टी के जीतने की सम्भावनाएं दिखाई दे रही हैं। इस बार के चुनाव पंजाबियों तथा विशेषकर सिखों के लिए बहुत महत्वपूर्ण हैं, क्योंकि चाहे इस समय दो सिख तनमनजीत सिंह ढेसी तथा एस.डी. प्रीत कौर लेबर पार्टी के सांसद हैं। एक और पंजाबी वरिन्दर शर्मा भी लम्बे समय से सांसद बनते आ रहे हैं परन्तु इस बार आधा दर्जन और सिखों तथा पंजाबियों को लेबर पार्टी की टिकट मिलनी लगभग तय है। इनके जीतने से यह एक नया रिकार्ड होगा और कनाडा के बाद ब्रिटेन में भी सिखों का राष्ट्रीय राजनीति में बोलबाला होगा।  यदि तनमनजीत सिंह ढेसी तथा लेबर पार्टी दोनों ही आम चुनाव में विजेता रहे तो तनमनजीत सिंह ढेसी का ब्रिटेन का केन्द्रीय मंत्री बनना लगभग तय है, क्योंकि इस समय वह ब्रिटेन में विपक्ष की ओर से बनाई गई शैडो कैबिनेट में रेलवे मंत्री हैं और ब्रिटेन की परम्परा है कि जब विपक्षी दल सत्ता में आता है तो उसकी ओर से नियुक्त शैडो मंत्री को ही सरकार में उसी विभाग का मंत्री बना दिया जाता है। 
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