उत्पादन बढ़ाने के लिए गुणवत्ता वाले बीजों की ज़रूरत

 

चाहे पंजाब में सामान्य वर्षों के दौरान गत दो वर्षों को छोड़ कर मौसम खराब होने तथा अधिक गर्मी पड़ने के कारण प्रति हैक्टेयर उत्पादन में कमी आई थी, परन्तु अब यह 50 क्ंिवटल प्रति एकड़ तक पहुंच गया है और उत्पादन गत दो वर्षों को छोड़ कर 180 लाख टन के आस-पास पहुंच चुका है। केन्द्रीय अन्न भंडार में पंजाब के गेहूं का योगदान 31 प्रतिशत तक था। चावल का योगदान भी केन्द्रीय भंडार में 21 प्रतिशत तक हो गया है, परन्तु भविष्य में अनाज की ज़रूरत के दृष्टिगत इसे और बढ़ाने की आवश्यकता है। गेहूं की काश्त तो प्रत्येक छोटा और बड़ा किसान करता है। डी.बी.डब्ल्यू.-303, डी.बी.डब्ल्यू.-187, डी.बी.डब्ल्यू.-222, डी.बी.डब्ल्यू.-327, डी.बी.डब्ल्यू.-332, एच.डी.-3086, एच.डी.-3226 तथा पी.बी.डब्ल्यू.-826 जैसी अधिक उत्पादन देने वाली किस्में विकसति होने तथा इन किस्मों का किसानों द्वारा व्यापक स्तर पर अपनाए जाने से और ज़्यादा पैदावार लेने हेतु बीज की गुणवत्ता और उत्पादन बढ़ाने में सहायक हो सकती है। उन्नत तथा दीर्घकालिक कृषि के लिए बीज की गुणवत्ता बड़ी अहम है। सब्ज़ इन्कलाब के दौरान बीज प्रद्योगिकी की भी अनाज के उत्पादन में अहम भूमिका रही है। चाहे कीमियाई खाद तथा कीटनाशक भी उत्पादन बढ़ाने में सहायक हुए हैं, परन्तु प्रत्येक सामग्री का नम्बर बीज के बाद आता है। 
गुणवत्ता वाला बीज वह है, जो किसानों के लिए फसल को अधिक लाभदायक बना कर उत्पादन बढ़ा दे। गुणवत्ता वाला बीज इस्तेमाल करने से फसल का विकास, उपजाऊ शक्ति और इसकी खेत में स्थिरता बढ़ती है। वैसे तो किसान अब बीज, जो अनुसंधान संस्थाओं द्वारा पैदा किया गया होता है, किसान मेलों तथा बीज वितरण तथा प्रशिक्षण शिविरों से ले लेते हैं, परन्तु उन्हें वहां से अपनी ज़रूरत के अनुसार पूरा बीज नहीं मिलता और जो दूरवर्ती गांवों के किसान हैं, वे इन मेलों में पहुंच नहीं पाते। मंडी में बीज के डीलर एवं विक्रेता भी किसानों को शुद्ध बीज देने में काफी योगदान डालते हैं। चाहे उनमें से कुछ ऐसे भी हैं, जो नकली तथा घटिया बीज देकर किसानों का शेषण करते हैं। निजी क्षेत्र के कई कच्चे व्यापारी तथा विक्रेता (जो बीज प्रद्योगिकी में मुहारत नहीं रखते) लाभ उठाने के लिए अस्तित्व में आ गए हैं। गुणवत्ता वाला बीज पैदा करने में लागत अधिक आती है और इसे पैदा करने तथा किसानों तक पहुंचाने के लिए बड़ी सुरक्षा एवं सम्भाल की ज़रूरत होती है, जो आम विक्रेता के बस की बात नहीं। 
मंडी में अधिकतर ‘ट्रुथफुली लेबल्ड’ (टी.एल.) किस्म का बीज इन विक्रेताओं द्वारा बेचा जाता है। इस प्रकार के बीज का किसी प्रमाणित एजेंसी द्वारा सत्यापन नहीं होता। यह ‘टी.एल.’ श्रेणी का बीज उत्पादन के चेन की अंतिम शृंखला है। सबसे ऊपर ‘न्यूक्लस’ बीज होता है, जिसे उस किस्म का ब्रीडर अपनी सीधी निगरानी में पौधों से चयन करके तैयार करता है और यह बीज शत-प्रतिशत शुद्ध होता है। फिर ब्रीडरों की निगरानी में ही ‘ब्रीडर’ किस्म की श्रेणी का बीज तैयार किया जाता है। इसकी शुद्धता भी पूरी होती है। इससे फिर ‘फाऊंडेशन’ किस्म का बीज तैयार होता है, जिसे प्रगतिशील बीज उत्पादक, प्रमाणित एजेंसियां, सरकारी फार्म तथा निजी क्षेत्र के व्यापारी, उत्पादक कम्पनियां इस्तेमाल करके ‘सर्टीफाइड’ किस्म का बीज तैयार करते हैं। इसकी सर्टीफिकेशन पंजाब राज्य बीज प्रमाणन अथारिटी द्वारा की जाती है। आम तौर पर कृषि करने वाले किसान तो तस्दीकशुदा बीज ही खरीदते हैं, परन्तु जिन किसानों को सर्टीफाइड व फाऊंडेशन बीज उपलब्ध नहीं होते, वे ‘टी.एल.’ किस्म के बीज इस्तेमाल करते हैं। दूरवर्ती गांवों के अधिकतर किसान तो अपना ही बीज इस्तेमाल करते हैं या फिर साथी किसानों व रिश्तेदारों से अपने गांवों से ही ले लेते हैं। ऐसा बीज बीमारी-मुक्त नहीं होता और इसकी फसल बीमारियों का शिकार होकर कम उत्पादन देती है। किसानों को तस्दीकशुदा बीज ही इस्तेमाल करने चाहिएं या फिर अनुसंधान संस्थाओं द्वारा पैदा किए गए बीज लेकर इस्तेमाल में लाने चाहिएं। आजकल किसान मेले हो रहे हैं और किसान भारी संख्या में बीज तथा ज्ञान लेने के लिए मेलों तथा कैम्पों में पहुंच रहे हैं, चाहे उन्हें इन मेलों में ज़रूरत के अनुसार पूरी मात्रा में बीज नहीं मिलता। 
पनसीड केन्द्र के खाद्य सुरक्षा कार्यक्रम के तहत किसानों को सब्सिडी पर बीज उपलब्ध करती है। यह बीज आम तौर पर उत्पादकों से पैदा करवाया जाता है। पनसीड को विश्वसनीय उत्पादकों का चयन करना चाहिए, ताकि किसानों को गुणवत्ता वाला बीज मिल सके।