लोकतंत्र की मज़बूत कड़ी

मोदी सरकार द्वारा संसद का विशेष सत्र बुलाये जाने की घोषणा के बाद इस संबंध में कई अनुमान लगाये जाते रहे थे। विशेष रूप से इस बात को लेकर उत्सुकता थी कि सरकार विशेष सत्र में कौन-से बिल पेश करने की तैयारी करके बैठी है।  इसका कारण यह था कि सरकार द्वारा इस विशेष सत्र के एजेंडे को स्पष्ट नहीं किया गया था। इस संबंध में ज्यादातर विपक्षी पार्टियों ने सरकार द्वारा अपनाये गये रवैये पर आपत्ति व्यक्त की थी तथा यह भी कहा था कि इस विशेष सत्र में पेश किये जाने वाले बिलों संबंधी सरकार द्वारा विस्तारपूर्वक बताया है ताकि अन्य पार्टियां एवं सांसद इस संबंध में अपनी पूरी तैयारी कर सकें। बाद में सरकार द्वारा इस संबंधी जो विस्तार दिया गया था, वह भी आधा-अधूरा ही था। फिर भी अब संसद के इस सत्र के पहले दो दिनों की कार्रवाई सक्रियता भरपूर तथा उत्सुकता वाली रही है। 
अंग्रेज़ों द्वारा निर्माण किए गए 96 वर्ष पुराने संसद भवन से आधुनिक सुविधाओं वाले नये संसद भवन में जाने को एक अहम घटनाक्रम माना जा सकता है। पुराने संसद भवन ने ब्रिटिश शासन के समय में अनेक घटनाक्रमों को देखा है। भगत सिंह तथा उनके साथी बटुकेश्वर दत्त द्वारा इस भवन के असैम्बली हाल में ही धमाके किये गये थे, जो जानलेवा नहीं था परन्तु जिनसे समूचा देश दहल गया था। इसी भवन ने देश को मिली आज़ादी के घटनाक्रम को देखा, संविधान की तैयारी तथा इसकी स्थापना होते हुये देखी तथा उसके बाद निरन्तर अहम राजनीतिक घटनाक्रमों को घटित होते भी देखा है। ऐसे ऐतिहासिक भवन को छोड़ते समय, दिल में भावुकता का प्रवेश करना स्वाभाविक है।
नये संसद भवन में पहले ही दिन सरकार द्वारा महिला आरक्षण बिल पेश करना भी एक अहम कदम माना जा सकता है। केन्द्रीय मंत्रिमंडल की स्वीकृति के बाद इसे लोकसभा में पेश किया गया, जिसके पारित होने की इस बार अधिक सम्भावना है। चाहे कुछ पार्टियां अन्य पिछड़े वर्गों की महिलाओं के लिए भी आरक्षण की मांग कर रही हैं, परन्तु इसका स़फर बहुत लम्बा रहा है। इसे देवगौड़ा के नेतृत्व में संयुक्त मोर्चे की सरकार द्वारा 1996 में लोकसभा में पेश किया गया था। उसके बाद  राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (राजग) की अटल बिहारी वाजपेयी के नेतृत्व वाली सरकार ने भी इसे 1998 में लोकसभा में पेश किया था। मनमोहन सिंह के नेतृत्व वाले संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन (यू.पी.ए.) सरकार द्वारा भी वर्ष 2008 में इसे राज्यसभा में पेश करके पारित करवाया गया था, परन्तु किसी न किसी कारणवश यह लोकसभा में पारित न हो सका तथा कानून का रूप न ले सका।
इसमें बड़ा अवरोध आरक्षण में आरक्षण किये जाने की मांग को लेकर पड़ता रहा है। कुछ पार्टियां अनुसूचित जातियों एवं अनुसूचित जन-जातियों के लिए इस आरक्षण में ही आरक्षण की मांग कर रही थीं। राजीव गांधी के प्रधानमंत्री होते हुये मई, 1989 में महिलाओं को चुनी हुई इकाइयों में आरक्षण देने की बात चली थी। उसके बाद नरसिम्हा राव की सरकार द्वारा संवैधानिक संशोधन करके यह कानून बनाया गया था जिसके तहत पंचायतों तथा नगर पालिकाओं में 33 प्रतिशत महिलाओं के लिए आरक्षण दे दिया गया था। उसके बाद लाखों ही महिलाओं ने इन संस्थाओं में प्रतिनिधत्व प्राप्त करके अपना योगदान डाला है। नि:संदेह आगामी समय में संसद में ऐसा प्रतिनिधित्व महिलाओं के विश्वास को दृढ़ करने में सहायक होगा। इसी तरह देश के लोकतांत्रिक इतिहास में यह एक और ऐसी मज़बूत कड़ी जुड़ जायेगी, जो इसकी मज़बूती की साक्षी बन सकेगी।

—बरजिन्दर सिंह हमदर्द


 

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