क्या राष्ट्र संघ का विकल्प बनेगा जी-20 ?

क्या मोदी के अब तक के रणनीति सम्पन्न फैसलों और उनके इन्फ्रास्ट्रक्चर को निर्धारित समय से पूर्व मूर्तरूप दे देने की विलक्षण प्रतिभा के चलते आप कल्पना कर सकते हैं कि कोविड की आड़ लेकर पिछली जी-20 की अध्यक्षता इंडोनेशिया को दे देना, राष्ट्राध्यक्षों के अधिवेशन से पहले विभिन्न मुद्दों पर देश के विभिन्न भागों में प्रतिनिधियों की बैठकें, जी-20 की बैठक के लिए भारत मंडपम जैसी विशाल और विश्वस्तरीय संरचना का निर्माण और उसका भव्य प्रदर्शन और अब यशोभूमि जैसे विश्व के सबसे विशाल सभागार को मूर्तरूप देना मात्र संयोग है, जी नहीं। यह संयोग नहीं हो सकता। याद कीजिये कार्यभार ग्रहण करते ही मोदी द्वारा जो चमत्कृत कर देने वाले फैसलों की श्रृंखला शुरू की गयी थी, वह अभी तक जारी है और यह जो ऊपर गिनाये गये कार्य हैं वे अकारण नहीं हैं। निश्चितरूप से इन कार्यों के पीछे राष्ट्रहित की कोई ऐसी परिकल्पना है जिसकी पृष्ठभूमि मोदी तैयार कर चुके हैं और अब उसे मूर्तरूप दे रहे हैं।
याद कीजिये मोदी ने देश को संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद की स्थायी सदस्यता के प्रयासों को कहां तक पहुंचा दिया है मगर नेहरु द्वारा चीन को खैरात में दी गयी स्थाई सदस्यता और वीटो के अधिकार भारत को मिलने में चीन सबसे बड़ा रोड़ा है मगर वह मोदी ही क्या जो ठान ले और हासिल न करे? इसके लिए उनके सार्थक प्रयास तो जारी हैं ही, वे जी-20 के माध्यम से उस पर अपनी पकड़ बनाने के बाद संरा का एक सशक्त विकल्प तैयार करने में लगे हैं। इसके लिए उन्होंने भारत की सर्वोच्चता के लिए जहां एक ओर जी-20 की सदस्यता वृद्धि का अभियान अफ्रीकी संघ को, जिसके 55 देश सदस्य है, को सदस्यता दिला कर एक झटके में जी-20 की सदस्यता में भारत समर्थक 55 सदस्यों की अभिवृद्धि कर ली है, वहीं भारत मंडपम के भव्य प्रदर्शन से विश्व के सबसे शक्तिशाली संगठन के सदस्यों के साथ दुनिया को दिखला दिया है कि भारत एक बड़े संगठन का न केवल मेजवान बन सकता है बल्कि उसका मुख्यालय भी अपने यहां बना सकता है और उसके मुखिया के लिए उसके पास नेतृत्व के लिए मोदी जैसा नेता भी है, जो रूस और यूक्रेन के युद्ध के बावजूद और पाकिस्तान का नाम लिए बगैर आतंकवाद पर उसके ‘लौहमित्र’ चीन को संयुक्त घोषणा-पत्र पर हस्ताक्षरों के लिए राजी करने में सक्षम है, जो भारत-यूरोप कारीडोर के लिए चीन को धता बताते हुए सबको राजी कर सकता है और उससे पाकिस्तान को अलग थलग कर सकता है। मेरा इतनी भूमिका बनाने का प्रयास केवल इसलिए है कि मोदी के दिमाग में कोई एक बड़ी परियोजना चल रही है। जिसकी भनक वे अपनी आदत के अनुसार किसी को भी नहीं लगने देते। मगर हम अंदाजा तो लगा ही सकते हैं। क्या मोदी जी-20 को वृहत रूप देकर संरा का प्रभावी विकल्प बनाने जा रहे हैं? शायद इसका उत्तर हां में दिया जा सकता है।
अपने दुश्मनों को कभी भी माफ न करने वाले मोदी ने, अपने सद्प्रयासों के चलते अकड़ दिखाने वाले पाकिस्तान को तो आर्थिक रूप से तबाह कर ही दिया है। अब चीन को भी आर्थिक रूप से कमजोर करने का अभियान तेज़ी से चला कर भारत को तीसरी आर्थिक शक्ति बनाने के मार्ग पर तेज़ी से चला दिया है। मोदी अपनी हर चाल शतरंज के माहिर खिलाड़ी की तरह चलने में सानी नहीं रखते। पचपन देशों के अफ्रीकी महासंघ के साथ यूरोपियन यूनियन अपने 28 स्थायी सदस्यों के साथ 12 संलग्न अर्थात कुल चालीस देशों का प्रतिनिधित्व करता है। इस तरह इसके कुल सदस्यों की संख्या 115 बनती है और दर्जन भर देश इसकी सदस्यता पाने को कतार में लगे हैं। नई दिल्ली अधिवेशन की रिकार्ड सफलता से प्रभावित अब कम से कम 25 देश और आ सकते हैं। इस तरह भारत के प्रभावक्षेत्र से संलग्नित बहुत जल्दी ही, यह 150 देशों का संगठन बन जायेगा। जो विश्व के 75 प्रतिशत भू-भाग और लगभग इतनी ही विश्वपूंजी का प्रतिनिधित्व करेगा। अगर सचिवालय की ज़रूरत पड़ी तो भारत अपने देश में इन्फ्रास्ट्रक्चर तैयार कर ही चुका है।  
जी-20 विश्व की अधिकांश सबसे बड़ी अर्थव्यवस्थाओं के वित्त मंत्रालयों से बना है जिसमें औद्योगिक और विकासशील दोनों देश शामिल हैं, यह सकल विश्व उत्पाद का लगभग 80 प्रतिशत, अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार का 75 प्रतिशत, वैश्विक जनसंख्या का तृतीयांश और विश्व के भूमि क्षेत्र का 60 प्रतिशत से अधिक भाग है। जी-20 की स्थापना 1999 में एशियाई वित्तीय संकट के बाद वित्त मंत्रियों और केन्द्रीय बैंक के नियंत्रकों हेतु वैश्विक आर्थिक और वित्तीय मुद्दों पर चर्चा हेतु एक मंच के रूप में हुई थी। 2008 के पश्चात, जी-20 शिखर सम्मेलन को प्रतिवर्ष न्यूनतम एक बार क्रमिक अध्यक्षता में आयोजित किया जाता है, जिसमें प्रत्येक सदस्य के शासन प्रमुख या राष्ट्र प्रमुख, वित्त मंत्री, विदेश मंत्री और अन्य उच्च पदस्थ अधिकारी शामिल होते हैं, यूरोपीय संघ का प्रतिनिधित्व यूरोपीय आयोग और यूरोपीय केन्द्रीय बैंक द्वारा किया जाता है। अन्य देशों, अन्तर्राष्ट्रीय संगठनों और गैर-सरकारी संगठनों को शिखर सम्मेलन में सहभागिता हेतु आमंत्रित किया जाता है।
2007-2009 के वित्तीय संकट के काल में जी-20 को राष्ट्रध्शासन प्रमुख के स्तर तक उन्नत किया गया था, और 2009 में इसे ‘अन्तर्राष्ट्रीय आर्थिक सहयोग हेतु प्रमुख मंच’ के रूप में नामित किया गया था। 18वें जी-20 नई दिल्ली शिखर सम्मेलन, 2023 में भारतीय प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने घोषणा की थी कि अफ्रीकी संघ को जी-20 के सदस्य के रूप में शामिल किया गया है जिससे यह 21 सदस्यीय बन गया है।
अफ्रीकी संघ 55 अफ्रीकी देशों का एक संघ है। यह संघ 2001 में स्थापित किया गया था। अफ्रीकी संघ (एयू) एक महाद्वीपीय संघ है जिसमें अफ्रीका महाद्वीप के 55 देश शामिल हैं, जिसमें अफ्रीका में स्थित यूरोपीय शासन के अधीन रहे विभिन्न क्षेत्र हैं। अगर मोदी की परिकल्पना संरा का सशक्त विकल्प तैयार करना है तो वे अपने प्रयासों में कल्पनातीत रूप से सफल हुए हैं और इसके माध्यम से वे निश्चित रूप से भारत को विश्वगुरु और विश्व नेता बनाने में सफल होंगे।