आतंकियों के सीमा पार नेटवर्क को ध्वस्त किये जाने की ज़रूरत

विश्व पटल पर यह बात साबित हो चुकी है कि पाकिस्तान भले ही दाने-दाने को मोहताज हो गया हो लेकिन सरहद पर वह अपनी आतंकी गतिविधियों से बाज नहीं आ रहा। जम्मू-कश्मीर के अनंतनाग जिले में आतंकवादियों से मुठभेड़ में कर्नल मनप्रीत सिंह, मेजर आशीष और डीएसपी हुमायूं भट्ट की वीरगति बताती है कि आतंकवादियों से मुकाबले के दौरान जहां खुफिया तंत्र को दुरस्त करने की जरूरत है, वहीं रणनीति को अधिक धारदार व पुख्ता बनाया जाए। इस दौरान एक सैनिक भी शहीद हुआ। सेना के दोनों अधिकारी आतंकवाद विरोधी इकाई का नेतृत्व करने वाले अनुभवी व सेना पदक का सम्मान पाने वाले थे। ज़ाहिर है कि यह आप्रेशन खुफिया सूचनाओं पर आधारित था, लेकिन कहीं न कहीं रणनीति के क्रियान्वयन में चूक हुई है। पहले सूचना दी गई थी कि आतंकियों ने जंगल में अपना ठिकाना बना रखा है, लेकिन उन्होंने पहले ही घात लगाकर सुरक्षा बलों की संयुक्त टीम को निशाना बना लिया। इसी चूक के चलते ही हमारे सैन्य अधिकारी व जवान आतंकवादियों के जाल में फंस गये। नि:संदेह भविष्य में आतंकवाद विरोधी अभियानों के लिए मानक संचालन प्रक्रियाओं के क्रियान्वयन में अधिक सतर्कता की जरूरत होगी। इस घटना से जम्मू-कश्मीर में लोकतांत्रिक प्रक्रिया को पटरी पर लाने की कोशिशों को झटका लगेगा। केन्द्र सरकार को एक बार ऐसा अभियान चलाना होगा जिससे सरहद के इस ओर मौजूद आतंकियों के समर्थक एवं घुसपैठ कर रहे और कर चुके आतंकियों की एक साथ धरपकड़ कर उन्हें अंजाम तक पहुंचाया जाए।
वक्त आ गया है कि भारत इस पर फिर से विचार करे कि सीमा पार आतंकियों के जो अड्डे चल रहे हैं, उन्हें कैसे नष्ट किया जाए? भारत द्वारा सर्जिकल और एयर स्ट्राइक करने के बाद भी पाकिस्तान सबक नहीं सीख सका। वह केवल आतंकियों को प्रशिक्षण ही नहीं दे रहा, बल्कि जो आतंकी कश्मीर में सक्रिय हैं, उन्हें ड्रोन के माध्यम से हथियार भी उपलब्ध करा रहा है। इसके अलावा वह दुष्प्रचार का सहारा लेकर कश्मीरी युवाओं को आतंक की राह पर चलने के लिए उकसाने का काम भी कर रहा है। पाकिस्तान कश्मीर को अशांत करने में इसीलिए फिर से जुट गया है, क्योंकि वह फाइनेंशियल एक्शन टास्क फोर्स यानी एफएटीएफ  की ग्रे सूची से बाहर आ गया है। भारत को विश्व समुदाय को इसके लिए फिर से सहमत करना होगा कि पाकिस्तान को नए सिरे से इस अंतर्राष्ट्रीय संस्था की निगरानी में लाया जाए। यह शुभ संकेत नहीं हैं कि जम्मू-कश्मीर में पाकिस्तान से आए आतंकियों की गतिविधियां बढ़ रही हैं। उड़ी से पहले राजौरी में दो आतंकी मारे गए थे। इसके अलावा अनंतनाग के जंगलों में मुठभेड़ हुई। राजौरी में भी आतंकियों से मुठभेड़़ में सुरक्षा बलों को क्षति उठानी पड़ी थी। आतंक विरोधी अभियानों को और अधिक सावधानी से संचालित करने की आवश्यकता है, ताकि हमारे जवानों को क्षति न उठानी पड़े। सावधानी बरतने की आवश्यकता इसलिए भी बढ़ गई है, क्योंकि आतंकी अपने तौर-तरीके बदल रहे हैं और छिपने के नए ठिकाने भी बना रहे हैं। अनंतनाग की मुठभेड़ से यही पता चलता है कि वहां छिपे आतंकी कितनी तैयारी से आए थे। सीमा पर चौकसी बढ़ाने के साथ-साथ इस बात पर भी ध्यान देना होगा कि कश्मीर में आतंकियों के जो समर्थक हैं, उन पर शिकंजा कैसे कसा जाए? आतंकी अपनी गतिविधियों को अंजाम देने में इसीलिए सफल हो जाते हैं, क्योंकि उनके समर्थक उन्हें संरक्षण व सहयोग देते हैं।
नि:संदेह पिछले कुछ समय से घाटी में आतंकी घटनाओं में कमी अवश्य आई है, लेकिन अभी भी आतंकी नेटवर्क को पूरी तरह धवस्त करने की ज़रूरत है। कुछ समय पहले कुलगाम में हुई एक मुठभेड़ में भी सेना के तीन जवान शहीद हुए थे। दरअसल, इलाके में आतंकवादियों की मौजूदगी के बाद ही सैन्य कार्रवाई शुरू की गई थी। इससे पहले मई में राजौरी में सैनिकों पर व पुंछ में सेना के ट्रक पर भी हमला हुआ था। यद्यपि पहले के मुकाबले में आतंकी हमलों की वारदातें कम हुई हैं, लेकिन ताज़ा घटनाएं बताती हैं कि सेना के अभियान में अधिक सतर्कता बरतने की ज़रूरत  है। 
 दूसरी ओर सीमा पार से संचालित आतंकियों के नेटवर्क को पूरी तरह ध्वस्त करने की भी ज़रूरत है। वैसे यह भी हकीकत है कि अब सीमा पार से आने वाले आतंकियों को स्थानीय आबादी का पहले जैसा सहयोग सहजता से नहीं मिल पा रहा है जिस कारण आतंकवादी पहाड़ियों पर ठिकाना बना रहे हैं, जिनका मुकाबला करने में सेना को चुनौती का सामना करना पड़ रहा है। आतंकी कार्रवाइयों को विफल करने के लिये प्रमाणिक खुफिया सूचनाएं जुटाने और सेना व पुलिस में बेहतर तालमेल बनाये जाने की ज़रूरत है, तभी पाक प्रायोजित आतंकवाद पर नकेल कसी जा सकेगी। साथ ही आतंकवादियों के साथ मुठभेड़ के दौरान अपने जवानों को बचाने के लिये आधुनिक तकनीक व ड्रोन आदि का इस्तेमाल करना भी अब ज़रूरी हो गया है।