अंतरिक्ष में भी स्वच्छता अभियान चलाए जाने की आवश्यकता

विज्ञान और प्रौद्योगिकी के इस आधुनिक युग में अंतरिक्ष कचरा एक बड़ी समस्या है। विज्ञान और प्रौद्योगिकी के विकास के साथ ही अंतरिक्ष में लगातार इलैक्ट्रानिक कचरा बढ़ रहा है क्योंकि अंतरिक्ष उद्योग आज अत्यंत तेजी से बढ़ रहा है। आज विश्व का हरेक देश अंतरिक्ष के बारे में ज्यादा से ज्यादा जानने का इच्छुक है और इसी होड़ ने अंतरिक्ष कचरे को भी जन्म दिया है। अंतरिक्ष कचरा आज एक बड़ी व गम्भीर समस्या इसलिए है क्योंकि अंतरिक्ष में तैरता हुआ मलबा परिचालन उपग्रहों हेतु संभावित खतरा है क्योंकि इस तरह के मलबे से टकरा कर उपग्रह नष्ट हो सकते हैं। कहना गलत नहीं होगा कि अंतरिक्ष में एकत्रित हो रहा कचरा भविष्य में धरती पर रह रहे लोगों के साथ-साथ सक्रिय तमाम उपग्रहों, अंतरिक्ष यात्रियों और अंतरिक्ष स्टेशन के लिए भी बेहद घातक साबित हो सकता है।
इतना ही नहीं, इससे हमारी संचार व्यवस्था के भी प्रभावित होने का खतरा पैदा हो सकता है। अंतरिक्ष में तैरते कचरे से टकराने पर अंतरिक्ष यान और एक्टिव सैटेलाइट्स नष्ट हो सकते हैं। इसके साथ ही धरती पर इंटरनेट, जीपीएस, टेलीविज़न प्रसारण जैसी अनेक आवश्यक सेवाएं भी बाधित हो सकती हैं। वास्तव में अंतरिक्ष कचरे के बहुत से खतरे हैं और इस पर अंकुश लगाने की पहल की जानी आवश्यक है, क्योंकि धरती के पर्यावरण की भांति ही आज अंतरिक्ष का पर्यावरण भी गड़बड़ाता चला जा रहा है। मतलब यह है कि अंतरिक्ष पर्यावरण पर कचरे का प्रभाव लगातार बढ़ रहा है। जानकारी के अनुसार केसलर सिंड्रोम अंतरिक्ष में वस्तुओं और मलबे की अत्यधिक मात्रा को संदर्भित करता है। कुछ समय पहले 111 पेलोड और 105 अंतरिक्ष मलबे को पृथ्वी की परिक्रमा करने वाली भारतीय वस्तुओं के रूप में पहचाना गया है। वास्तव में मलबा अंतरिक्ष में ही परिक्रमा करता है और बाहरी अंतरिक्ष को तो प्रभावित कर ही सकता है, साथ ही साथ इससे भविष्य के अंतरिक्ष मिशनों के भी प्रभावित होने की संभावना है। 
अब यहां यह समझने की ज़रूरत है कि आखिर अन्तरिक्ष मलबा है क्या? अंतरिक्ष मलबा पृथ्वी की कक्षा में मानव द्वारा बनाई गई विभिन्न वस्तुओं को संदर्भित करता है जो अब किसी उपयोगी उद्देश्य की पूर्ति नहीं करतीं। अंतरिक्ष मलबे में प्रयोग किये गए रॉकेट, निष्क्रिय उपग्रह, अंतरिक्ष निकायों के टुकड़े और एंटी-सैटेलाइट सिस्टम (ए.सैट) से उत्पन्न मलबा शामिल होता है। जानकारी के अनुसार इस समय अंतरिक्ष में रूस के 7032, अमरीका के 5216, चीन के 3854, फ्रांस के 520, जापान के 117 और भारत के 114 सैटेलाइट्स और रॉकेट्स हैं। ये एक से 10 सेमी के बराबर करीब 5 लाख से भी ज्यादा स्पेस जंक हैं। अमरीकी अंतरिक्ष एजेंसी नासा के अनुसार लगभग 8,400 टन कचरा अंतरिक्ष में है जिसमें अधिकतर 18 हज़ार से लेकर 28 हज़ार माइल्स प्रति घंटे की रफ्तार से पृथ्वी की कक्षा में घूम रहा है। अगर एक भी ऑब्जेक्ट कहीं गिरा तो वहां भारी तबाही मचा सकता है।
 नासा के अनुसार अंतरिक्ष में इस समय 20 हज़ार से भी ज्यादा छोटे-बड़े उपकरण कचरा बन चुके हैं और पृथ्वी की निचली कक्षा में चक्कर लगा रहे हैं। नासा के अनुसार भारत के 206 टुकड़े हैं। इनमें 89 टुकड़े पेलोड और 117 टुकड़े रॉकेट के हैं। जर्मन डेटाबेस कम्पनी स्टेटिस्टा ने उन देशों की एक सूची जारी की है जो अंतरिक्ष में सबसे ज्यादा कचरा पैदा करने के लिए ज़िम्मेदार हैं। इस सूची के अनुसार अंतरिक्ष में सबसे ज्यादा कचरा फैलाने में रूस नम्बर वन पर है। दूसरे नंबर पर अमरीका है। अमरीका के बाद चीन का नम्बर है। जापान और फ्रांस क्रमश: चौथे और पांचवें नम्बर पर हैं। भारत का नाम इस सूची में छठे नम्बर पर है। सूची में यूरोपीय अंतरिक्ष एजेंसी सातवें नम्बर पर है। ब्रिटेन भी इस सूची में 8वें नम्बर पर शामिल है। अमरीकी अंतरिक्ष एजेंसी नासा के अनुसार अंतरिक्ष मलबे को ट्रैक करने की क्षमता में सुधार से परिचालन उपग्रहों और मानव अंतरिक्ष मिशनों के जोखिमों को कम करने में मदद मिल सकती है। अंतरिक्ष कचरा खतरनाक इसलिए है क्योंकि इससे ओज़ोन परत को भी नुकसान पहुंच रहा है। यह मलबा जब वापस वायुमंडल में प्रवेश करता है तो यह जलकर हानिकारक रसायन उत्सर्जित करके ओज़ोन परत को नुकसान पहुंचता है। 
2001 में कोलम्बिया स्पेस शटल की दुर्घटना में भारतीय मूल की कल्पना चावला समेत सात अन्य अंतरिक्ष यात्रियों की जान चली गई थी। हालांकि इस दुर्घटना के अलग-अलग कारण बताए जाते हैं, लेकिन कुछ रिपोर्टों में यह भी आशंका जताई गई थी कि अंतरिक्ष में तैरते एक टुकड़े से टकराने की वजह से यह भीषण त्रासदी हुई थी। बहरहाल, संयुक्त राष्ट्र ने अंतरिक्ष मलबे को कम करने के साथ ही बाह्य अंतरिक्ष गतिविधियों की दीर्घकालिक स्थिरता के लिये दिशा-निर्देश विकसित करने हेतु बाह्य अंतरिक्ष के शांतिपूर्ण उपयोग पर समिति की स्थापना की है।
 यूरोपीय अंतरिक्ष एजेंसी ने अंतरिक्ष मलबे की मात्रा को कम करने और सतत् अंतरिक्ष गतिविधियों को बढ़ावा देने के उद्देश्य से स्वच्छ अंतरिक्ष पहल शुरू की है। आज जिस तरह से सभी देश धड़ाधड़ अपने विभिन्न अंतरिक्ष कार्यक्रमों को अंजाम दे रहे हैं, उस तरह तो अंतरिक्ष में भीड़ और भी बढ़ेगी और यह भी स्पष्ट है कि इससे दुर्घटनाओं की आशंकाएं भी बढ़ेंगी। अत: अंतरिक्ष में भी धरती की तरह ही स्वच्छता अभियान चलाए जाने की आवश्यकता है अन्यथा आने वाले समय में यह समस्या बहुत ही विकराल रूप धारण कर सकती है। (अदिति)