पूरे विश्व में बड़ी समस्या है ़गरीबी

दुनियाभर में फैली ़गरीबी के निराकरण के लिए ही संयुक्त राष्ट्र ने साल 1992 में हर साल 17 अक्तूबर को विश्व स्तर पर गरीबी उन्मूलन दिवस के रूप में मनाने की घोषणा की थी। अंतर्राष्ट्रीय आंदोलन एटीडी फोर्थ वर्ल्ड के संस्थापक जोसेफ रेसिंस्की की मृत्यु के चार साल बाद संयुक्त राष्ट्र ने आधिकारिक तौर पर इस दिवस को मनाने की घोषणा की थी। जोसफ रेसिंस्की ने पेरिस में लगाये गये ़गरीबी उन्मूलन अभियान के मूल स्मारक पत्थर पर उत्कीर्ण पाठ में जहां भी पुरुषों और महिलाओं को अत्यधिक ़गरीबी में रहने की निंदा करते हुए इसे मानवाधिकारों का उल्लंघन कहा और यह सुनिश्चित करने के लिए एक साथ आना कि इन अधिकारों का सम्मान किया जाए, हमारा गंभीर कर्तव्य है।
़गरीबी पहले भी अभिशाप थी लेकिन दुनिया में विकास की ऊंचाइयों को छूते हुए इस संकट का और अधिक गहराया जाना चिन्तनीय एवं विडम्बनापूर्ण है। ़गरीबी केवल भारत की ही नहीं, बल्कि दुनिया की एक बड़ी समस्या है। ़गरीबी एक गंभीर बीमारी है, किसी भी देश के लिए ़गरीबी एक बदनुमा दाग है। जब किसी राष्ट्र के लोगों को रहने को मकान, जीवन निर्वाह के लिये ज़रूरी भोजन, कपड़े, दवाइयां आदि जैसी चीजों की कमी महसूस होती है, तो वह राष्ट्र ़गरीब राष्ट्र की श्रेणी में आता है। इस ़गरीबी से मुक्ति के लिये सरकारें व्यापक प्रयत्न करती हैं। जिन रास्तों पर चल कर एवं जिन योजनाओं को लागू करते हुए हम देश में समतामूलक संतुलित समाज निर्माण की आशा करते हैं, वे योजनाएं विषम और विष भरी होने के कारण सभी कुछ अभिनय लगता है, छलावा लगता है, भ्रम एवं फरेब लगता है। सब नकली, धोखा, गोलमाल, विषमता भरा। 
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने लोक राज्य, स्वराज्य, सुराज्य, राम राज्य के सुनहरे स्वप्न को आकार देते हुए स्वल्प समय में ़गरीबी के कलंक को मिटाने हेतु सार्थक प्रयत्न किये हैं। फिर भी ़गरीबी कायम है क्योंकि यहां तो लगभग सभी राजनीति दल एवं लोकतंत्र का नारा देने वाले सब अपना-अपना साम्राज्य खड़ा करने में लगे हैं। विश्व की सारी संपदा, सारे संसाधन ़गरीबी को मिटाने में लगते तो आज स्थिति बहुत भिन्न होती, किन्तु बीच में सत्ता की लालसा एवं विश्व पर साम्राज्य स्थापित करने की महत्वाकांक्षाओं ने व्यवधान खड़े कर दिये। इसी कारण जो संपदा मानव को सुखी, संतुलित या सामान्य बनाने की दिशा में नहीं लगी, वह संहारक अस्त्रों के निर्माण, आतंकवाद एवं रूस-यूक्रेन, एवं इज़रायल-हमास जैसे युद्धों में लगी है और लग रही है। एक राष्ट्र दूसरे राष्ट्र को भयभीत रखने में अपनी ऊर्जा खपा रहा है, न कि गरीबी को दूर करने में।
आज का भौतिक दिमाग कहता है कि घर के बाहर और घर के अन्दर जो है, बस वही जीवन है, लेकिन राजनीतिक दिमाग मानता है कि जहां भी ़गरीब है, वहीं राजनीति के लिये जीवन है, क्योंकि राजनीति को उसी से जीवन ऊर्जा मिलती है। यही कारण है कि भारत में आज़ादी के अमृतकाल में पहुंचने के बाद भी ़गरीबी कम होने के बजाय बढ़ती जा रही है, जितनी ़गरीबी बढ़ती है, उतनी ही राजनीतिक ज़मीन मज़बूती होती है, क्योंकि सत्ता पर काबिज होने का मार्ग ़गरीबी के रास्ते से ही आता है। बहुत बड़ी योजनाएं इसी ़गरीबी को खत्म करने के लिये बनती रही हैं और आज भी बन रही हैं। गरीब ते खत्म होते गये, परन्तु गरीबी आज भी कायम है।  
सरकारी योजनाओं की विसंगतियां ही हैं कि गांवों में जीवन ठहर-सा गया है। बीमार, अशिक्षित, विपन्न मनुष्य मानो अपने-आप को ढो रहा है। शहर सीमेन्ट और सरिये का जंगल हो गये हैं। मशीन बने सब भाग रहे हैं। मालूम नहीं खुद आगे जाने के लिए या दूसरों को पीछे छोड़ने के लिए। 


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