जारी है पराली जलाने का सिलसिला

पंजाब में पराली की आग ने एक बार फिर प्रदेश के लोगों को काले-विषाक्त धुएं की चपेट में लेकर सांस और दमे जैसे रोगों के कगार पर ला खड़ा किया है। जैसे-जैसे प्रदेश के खेतों में धान की कटाई का मौसम पूर्णता की ओर बढ़ रहा है, शेष बचे अवशेषों जिसे पराली कहा जाता है, को जलाने की प्रक्रिया और घटनाओं में भी तेज़ी आती जा रही है। प्रत्येक नये दिन पराली जलाने वालों की संख्या पिछले दिन की तुलना में दोगुना तक बढ़ जाती है। यह भी, कि ऐसी घटनाएं पिछले वर्ष की संख्या से अधिक आंकी जाती हैं। इसका अभिप्राय यह भी निकलता है कि न तो सरकार की ओर से इस समस्या पर अंकुश लगाये जाने की कोई नई और बड़ी कोशिश की जाती है, और न ही धान उत्पादक किसानों के कानों पर ही कोई जूं रेंगते प्रतीत होती है। यहां तक कि किसान सरकारों से मशीनरी और वित्तीय सहायता ले लेने के बावजूद, पराली को आग लगाये जाने को ही अधिमान देते हैं। इसी प्रकार सरकारें भी भिन्न-भिन्न प्रकार की घोषणाएं करके ही अपने कर्त्तव्य की इतिश्री समझ लेती हैं। लिहाज़ा दोनों ओर की यथा-स्थिति भावना से पंजाब के वातावरण पर प्रदूषण के बादल निरन्तर घने होते जा रहे हैं। इस कारण पंजाब में वायु की गुणवत्ता का स्तर तो निम्नतम हुआ ही है, प्रदेश में पराली के धुएं से  सांस के रोगों के बढ़ने का भी पता चला है। खेतों में आग लगाये जाने के कारण मिट्टी की उत्पादकता के निरन्तर प्रभावित होते जाने के ़खतरों का संकेत भी कई बार कृषि एवं मौसम वैज्ञानिकों ने दिया है। पराली की आग ने प्रदेश के मौसमों को भी प्रभावित किया है, और गर्मी की रुत्त की अवधि भी बढ़ती चली गई है। कई किसानों ने पराली के सदुपयोग के अनेक तरीके सुझाये भी, किन्तु सरकारों की अक्षमता के कारण अक्सर ऐसे प्रयास आधे-अधूरे ही रह जाते हैं। 
मौजूदा समय में प्रदेश में पराली के धुएं ने दिल्ली और आस-पास के मुआशिरे और जन-समुदाय को भी प्रभावित किया है। दिल्ली में वायु-प्रदूषण की समस्या चिरकाल से चली आ रही है। तथापि, पंजाब में पराली जलाये जाने वाले दिनों में दिल्ली की हवा में प्रदूषण का संकट प्रत्येक वर्ष गम्भीर हो जाता है। पंजाब और दिल्ली के बीच के सम्पर्क प्रदेश हरियाणा द्वारा घोषित किये जाते आंकड़ों के अनुसार बेशक इस प्रदेश में इस बार पराली जलाये जाने के आंकड़े पिछले वर्ष से कम दर्ज किये गये हैं, किन्तु पराली जलाये जाने की घटनाएं हरियाणा में भी निरन्तर और पूर्ववत हुई हैं, तथा इससे दिल्ली की हवाओं में विषाक्त धुएं के प्रदूषण के घनत्व में और वृद्धि हुई है। नि:संदेह दिल्ली में वायु-प्रदूषण की समस्या चिरकाल से है, लेकिन पंजाब और हरियाणा इस समस्या को बढ़ाते हैं, इसमें भी कोई दो राय नहीं। यहां भी एक अतिरिक्त तथ्य है कि हरियाणा ने नासा की तस्वीरों का हवाला देकर, पंजाब पर आरोप लगाया है कि पंजाब में जलने वाली पराली के कारण ही, हरियाणा और दिल्ली में वायु प्रदूषण गम्भीर हुआ है।
पंजाब में पराली को आग लगाये जाने की प्रवृत्ति बहुत पहले से रही है, किन्तु मौजूदा भगवंत मान के नेतृत्व वाली ‘आप’ सरकार के पिछले दो वर्ष के शासन काल में इन घटनाओं की संख्या में लगातार इज़ाफा हुआ है। एक-एक दिन में सैकड़ों की संख्या में खेतों में पराली के अवशेषों को आग लगाई जा रही है। दशहरे से एक दिन पूर्व प्रदेश में कुल ऐसी 152 घटनाएं दर्ज की गई थीं, जबकि दशहरे वाले दिन जहां एक ओर प्रदेश में हज़ारों की संख्या में रावण, कुम्भकर्ण और मेघनाद के पुतलों को जलाये जाने से आकाश में धुएं के गुबार बने, वहीं किसानों ने भी पराली जलाए जाने में इस दिन बड़ी तेज़ी लाई, और इस एक दिन में 360 जगहों पर खेतों में अग्नि के नज़ारे दिखे। इससे अगले दिन तो पंजाब भर में पराली जलाये जाने के अब तक के सभी रिकार्ड टूट गये जबकि एक ही दिन में ऐसे 589 मामले दर्ज किये गये। यह संख्या दो वर्ष पूर्व की इस एक दिन की तादाद से 260  अधिक है। इस स्थिति का एक त्रासद पक्ष यह भी है कि पराली की आग से सर्वाधिक प्रभावित ज़िलों में माझा के अमृतसर और तरनतारन के बाद मुख्यमंत्री के अपने गृह क्षेत्र मालवा के सर्वाधिक इलाके शामिल हैं। पराली जलाये जाने से सम्बद्ध विभाग बेशक कई प्रकार के दावे कर रहे हैं, किन्तु सैटेलाईट निरीक्षण के बाद घोषित आंकड़े आईने में तस्वीर बन कर उभर आते हैं।
समय-समय पर सरकारें इस समस्या से निजात पाने के लिए यत्न करती रही हैं। अतीत में भी जहां सरकारों की ओर से पराली को अन्य तरह के कामों में प्रयोग में लाए जाने हेतु जहां किसानों को मशीनरी उपलब्ध कराई जाती रही है, वहीं मशीनरी की खरीद हेतु नकद धन-राशि के तौर पर वित्तीय सहायता भी दी जाती रही है, किन्तु सरकारों की ऐसी योजनाओं को बहुत कम बूर पड़ते दिखाई दिया है। सरकारों की ओर से कई बार पराली को आग लगाने वाले किसानों के विरुद्ध केस भी दर्ज किये गये हैं, और कई बार किसानों को जुर्माने का दण्ड भी लगाया गया है, किन्तु यह क्रिया भी अक्सर शलगमों से मिट्टी झाड़ने जैसी सिद्ध हुई है। हम समझते हैं कि यह समस्या बहुत बड़ी है, और इसके समाधान हेतु भी बड़ा फलक चाहिए। सरकार को इसे टुकड़ों में नहीं, स्थायी रूप से हल किये जाने की कोशिश करनी चाहिए। सिर्फ घोषणाओं से यह समस्या हल नहीं होगी अपितु सरकार को इसके लिए पूरी ईमानदारी एवं प्रतिबद्धता के साथ कार्य करने की आवश्यकता होगी। वैज्ञानिकों एवं मौसम विशेषज्ञों के साथ सांझे तौर पर मिल कर इसका कोई दूसरा बड़ा विकल्प ढूंढा जाना चाहिए। सरकारें इसके लिए किसान नेताओं के साथ वार्तालाप करके भी कोई समाधान तलाश कर सकती हैं। किसानों को भी धरती मां की पुकार को अन्तर्मन से सुनने और पंजाब के व्यापक हितों के दृष्टिगत पराली को जलाये जाने के विकल्पों पर निर्भरता बढ़ानी होगी।  हम समझते हैं कि सभी पक्षों और वर्गों के सांझे सहयोग एवं यत्नों से ही पराली की आग की समस्या के इस जिन्न को बोतल में डॉट-बन्द किया जा सकता है।