खतरों से खाली नहीं है हिमालय क्षेत्र में टनलिंग

उत्तराखंड में सिल्कयारा टनल के एक हिस्से के ढह जाने के बाद राज्य में चल रहे विस्तृत निर्माण कार्य को लेकर एक बार फिर पर्यावरण बनाम विकास की बहस तेज़ हो गई है। पर्यावरणविदों और वैज्ञानिक समुदाय का कहना है कि राज्य के आधे से अधिक क्षेत्र में भूस्खलन का खतरा हमेशा बना रहता है, इसलिए अत्यधिक निर्माण कार्य के चिंताजनक परिणाम निकलेंगे ही। दूसरी ओर राज्य सरकार व विकास समर्थकों ने ताज़ा हादसे के लिए निर्माण कंपनी पर ‘लापरवाही’ का आरोप लगाते हुए निर्माण कार्यों को राज्य के विकास के लिए आवश्यक बताया है कि अगर विकास नहीं किया जायेगा तो राज्य की आर्थिक स्थिति कैसे बेहतर होगी? टनल के ढह जाने के कारणों को जानने के लिए राज्य सरकार ने डिजास्टर मिटीगेशन एंड मैनेजमेंट सेंटर (डी.एम.एम.सी.) के निदेशक पीयूष रौतेला के नेतृत्व में सात सदस्यों की विशेषज्ञ टीम का गठन किया है। गौरतलब है कि इस निर्माणाधीन टनल का एक हिस्सा 2019 में भी गिरा था, लेकिन उस समय हालात आज जैसे गंभीर नहीं थे व कोई मज़दूर भी उसमें नहीं फंसा था।
केंद्र के महत्वाकांक्षी चारधाम हर मौसम हाईवे प्रोजेक्ट के तहत ज़िला उत्तरकाशी में सिल्कयारा से पोलगांव तक एक टनल बनायी जा रही है, जिसकी लम्बाई 4.5 किमी. या 4531 मी. है। यह डबल-लेन टनल इस प्रोजेक्ट के तहत सबसे लम्बी टनल है और निर्माण मुकम्मल होने के बाद यह उत्तरकाशी से यमुनोत्री धाम के यात्रा समय को 26 किमी. कम कर देगी। सिल्कयारा की तरफ से टनल का 2.3 किमी. काम पूरा हो गया है जबकि पोलगांव की तरफ से 1.5 किमी. का काम पूरा हो गया है। टनल में लगभग 400 मी. का काम होना शेष रह गया है। बहरहाल, 12 नवम्बर 2023 की सुबह को सिल्कयारा तरफ के प्रवेश से लगभग 270 मी. के फासले पर टनल का एक हिस्सा ढह गया, जिसमें 40 मज़दूर फंस गये, जिनमें से अधिकांश झारखंड के मूल निवासी हैं। फंसे मज़दूरों को सुरक्षित बाहर निकालने के लिए नेशनल डिजास्टर रिस्पांस फोर्स (एन.डी.आर.एफ.), स्टेट डिजास्टर रिस्पांस फोर्स (एस.डी.आर.एफ.), इंडो-टिबेटन बॉर्डर पुलिस (आई.टी.बी.पी.) व बॉर्डर रोड्स आर्गेनाइजेशन (बी.आर.ओ.) के 150 से अधिक कर्मी दिन रात लगे हुए हैं। 
नई ड्रिल मशीनें व अन्य आधुनिक उपकरण भी राहत कार्य के लिए मंगवाये गये हैं, लेकिन इस लेख के लिखे जाने तक मज़दूरों के लिए बचाव मार्ग तैयार नहीं किया जा सका था। लगभग 20 मी. का ही मलबा हटाया जा सका था। हालांकि पाइप के ज़रिये फंसे मज़दूरों तक ऑक्सीजन व फूड पहुंचाया जा रहा है, लेकिन मैडीकल विशेषज्ञों का कहना है कि हर गुज़रते घंटे के साथ शारीरिक व मानसिक चुनौतियों का सामना कर रहे फंसे मज़दूरों के लिए खतरा बढ़ता जा रहा है। एस.डी.आर.एफ. के सचिव रंजीत सिन्हा के अनुसार हर संभव बेहतर प्रयास के बावजूद मज़दूरों तक पहुंचने में अभी समय लगेगा और अगर आवश्यकता पड़ी तो बाहर से संसाधन व तकनीकी सहायता मंगायी जायेगी। यह टनल 853 करोड़ रूपये के अनुमानित खर्च से बनायी जा रही है। इसका एक हिस्सा 2019 में भी गिर गया था, लेकिन उस समय हादसे को लेकर कोई शोर नहीं मचा था; क्योंकि उसमें कोई मज़दूर नहीं फंसा था। लेकिन इस वजह से निर्माण कार्य में देरी अवश्य हुई थी। 
गौरतलब है कि फरवरी 2021 में उत्तराखंड के इतिहास का सबसे भयानक हादसा हुआ था। तपोवन-विष्णुगढ़ हाइडल प्रोजेक्ट के टनल में फ्लैश फ्लड के आने से 100 से अधिक मज़दूर फंसकर मर गये थे। राहत कार्य महीनों तक चलता रहा और पिछले साल तक हेड रेस टनल के अंदर से शव बरामद होते रहे। पिछले महीने लगभग 40 मज़दूर बाल-बाल बचे जब रुद्रप्रयाग ज़िले में ऋषिकेश-कर्णप्रयाग रेलवे प्रोजेक्ट की निर्माणाधीन टनल के अंदर आग लग गई थी। अधिकारियों के अनुसार यह घटना इसलिए हुई क्योंकि टनल के अंदर रखे एक केमिकल ने आग पकड़ ली थी। चारधाम हर मौसम हाईवे प्रोजेक्ट के संदर्भ में सुप्रीम कोर्ट ने विख्यात पर्यावरणविद रवि चोपड़ा के नेतृत्व में एक विशेषज्ञ पैनल का गठन किया था, जिसमें हिमालय के वैज्ञानिक व विशेषज्ञ भी शामिल थे। 
कुछ वर्ष पहले प्रोजेक्ट क्षेत्र के अपने सर्वे के दौरान इस पैनल ने कहा था कि नाजुक हिमालय क्षेत्र में भूस्खलन की आशंका हर समय बनी रहती है, इसलिए यहां टनलिंग खतरे से खाली नहीं है। हिमालय बचाओ अभियान, उत्तरकाशी के सुरेश भाई का कहना है, ‘हिमालय क्षेत्र में टनल प्रोजेक्ट्स पर पूर्ण प्रतिबंध होना चाहिए। इनसे पहाड़ अधिक कमज़ोर हो जाते हैं। सरकार को चाहिए कि हिमालय राज्य में जो टनल प्रोजेक्ट्स चल रहे हैं उन पर फिर से विचार करे।’ दरअसल, चिंता केवल टनलिंग को लेकर ही नहीं है। हर मौसम चारधाम रोड प्रोजेक्ट के तहत अप्रैल 2022 में 25 किमी. की सड़क को चौड़ा करने के लिए भगीरथी इको-सेंस्टिव ज़ोन (बीईएसज़ेड), उत्तरकाशी में देवदार के 6,000 पेड़ों को गिराया गया। गौमुख से उत्तरकाशी तक 4,179 वर्ग किमी. का बीईएसज़ेड, जिसमें 88 गांव आते हैं, का नाज़ुक गंगा-हिमालय बेसिन में विशेष महत्व है। इसमें हज़ारों पेड़ों को गिराने से पर्यावरण पर कुप्रभाव पड़ना लाज़मी है। इसलिए हिमालय क्षेत्र में कोई भी निर्माण प्रोजेक्ट बहुत सोच समझ व सावधानी चाहता है।
वाडिया इंस्टिट्यूट ऑ़फहिमालयन जियोलॉजी (डब्लयू.आई.एच.जी.) का 2021 का अध्ययन ‘अर्थ सिस्टम्स’ पत्रिका में प्रकाशित हुआ था, जिसमें उत्तरकाशी सहित उत्तराखंड के 51 प्रतिशत क्षेत्र में भूस्खलन की आशंका उच्च व अति उच्च बतायी गई है। इस आधार पर वैज्ञानिक निर्माणाधीन टनल के एक हिस्से के ढहने के संदर्भ में कह रहे हैं कि यह स्थिति रॉक्स के प्राकृतिक गठन, अपर्याप्त जियोलॉजिकल समझ या नियमों का पालन न करने की वजह से उत्पन्न हुई होगी। उनके अनुसार सिल्कयारा टनल ऐसे क्षेत्र में बनायी जा रही है जहां लाइमरॉक (सेडिमेंटरी रॉक) की भरमार है, फलस्वरूप टनल के बार-बार ढहने का खतरा बना रहेगा। जियोलॉजिस्ट एस.पी. सती का कहना है कि टनलिंग तभी प्रभावी होती है जब सभी प्रोटोकॉल्स का सख्ती से पालन किया जाये। सिल्कयारा टनल के ढहने के केवल दो प्रमुख कारण हैं। एक, कोई ब्लाइंड शियर ज़ोन हो जिसे पहले रिपोर्ट न किया गया हो, जहां अनेक घने रॉक फ्रैक्चर इस क्षेत्र से पास हो रहे किसी महत्वपूर्ण फ्रैक्चर जैसे श्रीनगर थ्रस्ट या स्थानीय बड़कोट थ्रस्ट के कारण अपनी जगह से हट गये हों। दूसरा यह कि टनलिंग के लिए इस्तेमाल किये गये विस्फोटकों से टनल ढह गई हो। 
हालांकि टनलिंग ग्लोबली अंतर्राष्ट्रीय सुरक्षा प्रोटोकॉल्स के साथ बहुत प्रभावी टेक्नोलॉजी है, लेकिन अधिक खर्च के कारण नियमों से समझौता कर लिया जाता है और विस्फोटकों का अधिक इस्तेमाल करने से इस किस्म की घटनाएं हो जाती हैं। सिल्कयारा-पोलगांव टनल के एक हिस्से के ढहने का असल कारण तो जांच रिपोर्ट में ही सामने आयेगा, लेकिन हिमालय क्षेत्र में निर्माणाधीन प्रोजेक्ट्स में जो बार-बार चिंताजनक हादसे हो रहे हैं उससे यह संकेत अवश्य मिलता है कि क्षेत्र चयन से लेकर निर्माण कार्य पूरा करने तक कहीं न कहीं लालच के तहत कोई लापरवाही अवश्य हो रही है। इसलिए सरकार को सुनिश्चित करना चाहिए कि सभी प्रोटोकॉल्स का सख्ती से पालन हो और पर्यावरण को भी ज्यादा नुकसान न पहुंचे।  
-इमेज रिफ्लेक्शन सेंटर