राष्ट्रीय राजनीति को प्रभावित करेंगे पांच विधानसभाओं के चुनाव परिणाम

मसला जब भी चिरागों का उठा,
़फैसला सिर्फ हवा करती है।
परवीन शाकिर का यह शे’अर स्वयं में कई अर्थ समेटे बैठा है, परन्तु क्योंकि हमने बात करनी है इस समय हो रहे पांच विधानसभाओं के चुनाव परिणामों के प्रभाव की, इसलिए इस शे’अर का यहां प्रत्यक्ष प्रभाव यह है कि इन चुनावों में कौन जीतेगा, कौन हारेगा, इसका फैसला तो लोग ही करेंगे, परन्तु लोगों में चुनावों से पहले ही किसी एक राजनीतिक पार्टी के पक्ष या विरोध में एक हवा-सी चलने लग पड़ती है। यदि चुनावों के दिन यह हवा अन्धेरी बन जाये तो इसका परिणाम पंजाब में तथा दिल्ली में आम आदमी पार्टी को मिले बहुमत जैसा होता है परन्तु यदि यह हवा मद्धम हो या किसी के पक्ष में न बने तो कई बार किसी भी पार्टी को बहुमत नहीं मिलता।
़खैर, 3 दिसम्बर को पांच विधानसभाओं, मध्य प्रदेश, राजस्थान, छत्तीसगढ़, तेलंगाना एवं मिज़ोरम के चुनाव परिणाम आ जाएंगे। चाहे इन चुनावों को 2024 को लोकसभा चुनावों का सैमीफाइनल भी कहा जा रहा है परन्तु इन प्रदेशों के प्रांतीय चुनावों के बाद 2019 के लोकसभा चुनावों में भाजपा ने जैसी जीत प्राप्त की थी, उससे प्रतीत नहीं होता कि इन विधानसभाओं के परिणामों ने लोकसभा चुनावों के परिणामों पर कोई प्रभाव डाला था। परन्तु वास्तविकता यह है कि विधानसभा के चुनाव परिणामों के बाद जम्मू-कश्मीर में घटित घटनाओं तथा बालाकोट एयर स्ट्राइक के बाद ‘दुश्मन के घर में घुस कर मारेंगे’ के घटनाक्रम ने राष्ट्रवाद भावना इतनी उभार दी थी कि अन्य किसी बात का कोई प्रभाव ही नहीं रहा था। इस बार भविष्य के गर्भ में क्या लिखा है, किसी को पता नहीं क्योंकि 3 दिसम्बर को पांच विधानसभाओं के चुनाव परिणामों के बाद लोकसभा चुनावों में 4-5 मास का समय ही होगा। इन 4-5 मास में क्या घटित होता है तथा उसका हवा पर क्या प्रभाव पड़ता है, किसो को पता नहीं। परन्तु फिर भी जो भी हो, इस बात से तो इन्कार नहीं किया जा सकता कि यदि कोई असाधारण घटना नहीं घटित होती तो इन विधानसभा चुनावों के परिणाम भिन्न-भिन्न क्षेत्रों में काफी प्रभावपूर्ण होंगे।
सबसे बड़ा प्रभाव तो ये कांग्रेस पार्टी तथा ‘इंडिया’ (आई.एन.डी.आई.ए.) गठबंधन की राजनीति पर ही डालेंगे। यदि इन चुनावों में कांग्रेस मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ तथा राजस्थान तीनों में ही विजयी रहती है या कम से कम इन तीनों में से दो पर जीत प्राप्त करती है तो ‘इंडिया’ गठबंधन में कांग्रेस की स्थिति मज़बूत हो जायेगी तथा राहुल गांधी का रुतबा भी बढ़ेगा। भाजपा के संबंध में स्पष्ट है कि उसका पूरा ज़ोर भी इन तीनों प्रदेशों पर ही लगा हुआ है। उसे पता है कि मिज़ोरम तथा तेलंगाना में वह बहुत बड़ी जीत प्राप्त नहीं कर सकती। मौजूदा समय में जो समाचार मिल रहे हैं, उनके अनुसार मध्य प्रदेश तथा छत्तीसगढ़ में कांग्रेस का हाथ ऊपर को जाता प्रतीत होता है, जबकि राजस्थान में मुकाबला कड़ा बताया जा रहा है, परन्तु ये सभी अनुमान ही हैं, वास्तविकता तो परिणाम आने पर ही सामने आयेगी, परन्तु एक बात स्पष्ट है कि यदि भाजपा इन पांचों विधानसभा चुनावों में हार जाती है तो उसके लिए 2024 का रास्ता ज़रूर कठिन हो जायेगा।
इन चुनावों के परिणाम यह भी स्पष्ट करेंगे कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की अपील का प्रभाव बदस्तूर जारी है या कम हो रहा है, क्योंकि भाजपा ये चुनाव प्रधानमंत्री के नाम पर ही लड़ रही है। इन चुनावों में मुफ्त की गारंटियों संबंधी भी फैसला होगा। यदि इन चुनावों में मुफ्त की सुविधाएं देने वाली पार्टियां स्पष्ट बहुमत ले गईं तो ऐसी घोषणाओं का प्रभाव तथा ज़रूरत 2024 के लोकसभा चुनावों में और बढ़ेगी। तेलंगाना तथा मिज़ोरम के चुनाव परिणाम एक और रुझान ही स्पष्ट करेंगे कि, क्या मणिपुर जैसे हालात मतदाताओं पर कोई प्रभाव डालते हैं या नहीं? इन चुनाव परिणामों का सबसे अधिक प्रभाव उत्तर भारत तथा हिन्दी भाषी प्रदेशों में अधिक प्रतीत होगा खासकर दिल्ली, हरियाणा, बिहार, उत्तर प्रदेश में इनका प्रभाव पड़ेगा। पंजाब की राजनीति पर भी इन चुनाव परिणामों का अधिक प्रभाव पड़ेगा। सबसे बड़ी बात यह देखने वाली होगी कि यदि इन विधानसभा चुनावों में भाजपा हार जाती है तो वह फिर से नव-राष्ट्रवाद उभारने के लिए क्या रवैया अपनाती है? क्या इसका पड़ोसी देशों खासकर पाकिस्तान से रिश्तों पर विपरीत प्रभाव पड़ेगा? परन्तु स्मरण रहे :
ज़मीं की कैसी वकालत हो, फिर नहीं चलती,
जब आसमां से कोई ़फैसला उतरता है।
(वसीम बरेलवी)
पंजाब पर क्या होगा प्रभाव?
पंजाब की राजनीति इस समय बहुत ही अस्पष्ट हालत में है। चाहे ‘आप’ के पास 92 विधायकों का असीम बहुमत है, परन्तु पार्टी अभी भी अपने पांवों पर खड़ी दिखाई नहीं दे रही। सरकार कई बार फैसले लेकर यू-टर्न भी लेती दिखाई देती है, परन्तु इसके बावजूद विपक्षी दलों की हालत भी कोई अच्छी नहीं है। कभी कांग्रेसी तथा अकाली नेता भाजपा की ओर भागते हैं और कभी ‘घर वापसी’ भी करते हैं। कई बार तो यह प्रभाव भी बनता है कि चाहे सभी नहीं परन्तु बहुत-से कांग्रेसी तो ई.डी. तथा विजीलैंस के डर से ही भाजपा में जाते हैं। कुछ के बारे में चर्चा है कि वे अपने केस ठीक करवा कर लौट भी आए हैं। एक चर्चा तो पुन: ज़ोर से सुनाई दे रही है कि एक नेता ने अपना हिसाब-किताब ही ठीक नहीं करवाया, अपितु अपने विरोधी, जो ‘आप’ में था, के खिलाफ कार्रवाई भी शुरू करवा गया, परन्तु दूसरी ओर पंजाब विजीलैंस ने पंजाब के पूर्व वित्त मंत्री मनप्रीत सिंह बादल का पीछा तो उनके भाजपा में शामिल होने के बाद भी नहीं छोड़ा। खैर, हम बात कर रहे थे पांच विधानसभा के चुनाव परिमाणों के पंजाब पर पड़ने वाले प्रत्यक्ष प्रभाव की। भिन्न-भिन्न नेताओं से की गई बातचीत से यह प्रभाव बनता है कि यदि इन पांच विधानसभा चुनावों में भाजपा विजयी रही और पंजाब में भाजपा की स्थिति सुधरने की सम्भावनाएं दिखाई दीं तो कांग्रेस से बड़ी संख्या में नेता एक बार फिर भाजपा की ओर प्रवास करेंगे, परन्तु इसके विपरीत यदि भाजपा हारी और कांग्रेस की स्थिति में सुधार हुआ तो भाजपा में गए कई कांग्रेसी नेता घर वापसी के बारे में सोचेंगे। यही स्थिति अकाली दल से गए कई नेताओं की भी हो सकती है। 
काश, इन उलझनों से गुज़र जाऊं,
मैं इधर जाऊं आ उधर जाऊं। 
(शकील बदायूनी)
अकाली-भाजपा समझौते की अभी सम्भावना नहीं
चाहे यह चर्चा अभी भी दिन-रात चलती रहती है कि अकाली दल बादल तथा भारतीय जनता पार्टी के बीच समझौते की कोई गुप्त बातचीत चल रही है, परन्तु हमारी जानकारी के अनुसार अभी ऐसी कोई बात नहीं है, परन्तु यदि भाजपा पांच विधानसभा चुनावों में हारती है तो भाजपा का अकाली दल के साथ गठबंधन करने पर विचार करना उसकी विवशता बन सकता है, क्योंकि हार की स्थिति में भाजपा के लिए उत्तर भारत में अपनी मज़बूती के वृत्तांत का सृजन करने के लिए अकाली दल के साथ समझौता करना चिंतात्मक मजबूरी का संदेश दे सकता है। दूसरे, इससे दिल्ली, पंजाब, हरियाणा, राजस्थान तथा उत्तर प्रदेश में रहते सिख तथा पंजाबी मतदाताओं का झुकाव भाजपा की ओर हो सकता है। इस बीच एक चर्चा और भी है कि यदि अकाली-भाजपा समझौते की कोई बात चलती है तो बसपा-अकाली समझौते पर इसका क्या प्रभाव पड़ेगा,यह भी विचार करने वाली बात होगी। हमारी जानकारी के अनुसार इसका अंतिम निर्णय तो बसपा प्रमुख कुमारी मायावती ही लेंगी, परन्तु अकाली दल हर हालत में भाजपा के साथ बातचीत होने की स्थिति में भी बसपा को या कम से कम पंजाब बसपा के नेताओं को अपने साथ रखने को अधिमान देगा। 
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