विश्व के समक्ष डीपफेक व साइबर अपराध बड़ी चुनौती

देश-दुनिया के सामने डीपफेक और साइबर अपराध आज के समय बड़ी चुनौती है। इसके सामने एक बेबसी दिख रही है। इस बेबसी का मुख्य कारण यह है कि यह वह टेक्नोलॉजी है, जो आम लोगों के हाथों तक आ गई है। पहले ऐसी टेक्नोलॉजी का इस्तेमाल साइबर अपराधी किया करते थे। इस तरह आधुनिक तकनीक से जहां एक तरफ  लोगों को आर्थिक हानि उठानी पड़ है तो वहीं इससे प्रतिष्ठा और मान-मर्यादा बनाए रखने का संकट उत्पन्न हो रहा है। सरकारें भले ही लाख दावा करें, लेकिन सरकार के पास इससे निपटने के लिए समुचित व्यवस्था नहीं है। तात्पर्य यह कि सरकार एक तरफ  तो आधुनिक तकनीक को बढ़ावा देने के लिए आन लाइन भुगतान पर ज़ोर दे रही है, लेकिन इनके दुरुपयोग को रोकने या इसका गलत इस्तेमाल होने पर इसकी जांच के लिए विशेषज्ञ टीमों की भर्ती या कोई विशेष अभियान सरकार द्वारा नहीं चलाया जा रहा है। 
पुलिस सेवा या फिर सर्तकता या तकनीकी विभागों में पिछले लम्बे अरसे से तकनीकी शिक्षा विशेषज्ञों, बीसीए, एमसीए या फिर कम्प्यूटर शिक्षा के विशेषज्ञता रखने वाले संवर्ग की कोई विशेष भर्ती कर ऐसा कोई सैल नहीं बनाया गया जिससे इस तरह के अपराधों पर रोक लगाई जा सके। इसका परिणाम यह है कि देश में प्रतिदिन साइबर अपराधी आम और खास आदमी को निशाना बनाकर उसकी कमाई हड़प रहे हैं और वह साइबर थाने के चक्कर लगा रहा है। अब एक नया अभिशाप डीपफेक सामने आ गया है जो आपकी मर्यादा का हनन कर रहा है। हालांकि इस पर देश के प्रधानमंत्री भी बड़ी चिन्ता जता चुके है। आईटी मंत्री कड़े कानून की वकालत कर रहे हैं, लेकिन सबसे अहम पहलू पर कोई विचार नहीं कर रहा है कि इस तरह के अपराध रोकने के लिए इससे भी अधिक बुद्विमान और तकनीकी, साइबर के डिप्लोमा, डिग्री धारी संवर्ग का विशेष भर्ती अभियान चलाकर साइबर थानों में विशेषज्ञों की तैनाती की जाए। 
डीपफेक को सामान्य रूप से ऐसे समझे जैसे मान लीजिए कोई तस्वीर या वीडियो है, अगर उस तस्वीर या वीडियो पर किसी दूसरे व्यक्ति की शक्ल छाप दें और उसी को मिमिक कर दें तो लोगों को यही लगेगा कि वह दूसरा व्यक्ति बोल रहा है। डीपफेक के जरिए यही कोशिश की जाती है कि लोगों को गुमराह किया जाए, उन्हें धोखा दिया जाऐ, उनके विश्वास को जीता जाए और उसके बाद उन्हें साइबर क्राइम का शिकार बनाएं। इतना ही नहीं, इससे हमारी राष्ट्रीय सुरक्षा को भी खतरा हो सकता है और बड़े पैमाने पर वित्तीय धोखाधड़ी हो सकती है। हाल ही में ब्रिटेन की एक एनर्जी कंपनी के प्रमुख के साथ धोखा हो चुका है। उसे उसके जर्मन सीईओ की आवाज़ में फोन आया और उसने पैसे भेज दिए। हालांकि, वह आवाज़ डीपफेक का नमूना ही थी। 
केन्द्रीय मंत्री अश्विनी वैष्णव के अनुसार ने लोकतंत्र के लिए डीपफेक एक नया खतरा है। इससे समाज और इसके संस्थानों की विश्वसनीयता कमज़ोर हो सकती है। हम डीपफेक के लिए नियम बनाने की शुरुआत कर रहे हैं। उनका कहना था कि सरकार चार बिंदुओं—डीपफेक की पहचान, ऐसे कंटेंट को फैलने से रोकने, रिपोर्टिंग की प्रक्रिया को मज़बूत करने और इस मुद्दे पर जागरूकता बढ़ाने पर कार्य करेगी। हाल ही में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने भी डीपफेक को लेकर चेतावनी दी थी। अमरीका ने फॉरन डीपफेक के लिए संघीय कानून बनाया है जबकि उसके नागरिकों की रक्षा के लिए एक विधेयक अभी लम्बित है। अमरीका के कुछ राज्यों ने भी बिना सहमति के डीपफेक बनाने को अपराध घोषित कर दिया है जबकि कुछ अन्य राज्यों ने इसे दीवानी मामलों के तहत रखा है। यूरोपियन यूनियन में भी डीपफेक को लेकर कानून बनाने पर गम्भीरता से विचार हो रहा है।
बड़ी तकनीकी कम्पनियां इस चिंता को लेकर प्रतिक्रिया दे रही हैं, लेकिन बहुत धीमे से। समस्या यह है कि डीपफेक को ढूंढ पाना बहुत कठिन है क्योंकि विजुअल एक्सपर्ट्स जिन पैमानों पर असली और नकली का अंतर पता करते हैं, वे इसमें काम नहीं आते हैं। फर्जी कंटेंट को पकड़ने वाली टेक्नॉलोजी डीपफेक क्रिएटर्स से कदमताल नहीं मिला पा रही है। जब तक हमें बुरी टेक्नॉलोजी से मुकाबले के लिए अच्छी टेक्नॉलोजी के आने का इंतज़ार है, तब तक किया ही क्या जा सकता है? 
भारत में सूचना-प्रौद्योगिकी अधिनियम के अंतर्गत एक विशेष प्रावधान है जो किसी व्यक्ति की निजता के उल्लंघन के मामले में लागू हो सकता है। ऐसे मामलों में अपराध साबित होने के बाद 3 वर्षों तक कारावास या 2 लाख रुपये तक आर्थिक दंड लगाया जा सकता है। फर्जी वीडियो या विकृत तस्वीर प्रकाशित करने वाले प्लेटफार्म भी इस संबंध में नोटिस मिलने के बाद कदम नहीं उठाते हैं तो उनके खिलाफ भी कानूनी कार्रवाई हो सकती है। हालाकि दिल्ली महिला आयोग ने अभिनेत्री मंदाना का वीडियो प्रसारित होने के बाद दोषी लोगों के खिलाफ  कार्रवाई करने की मांग की है। आयोग ने कहा कि अब तक इस मामले में कोई गिरफ्तारी नहीं हुई है। 
केन्द्र सरकार ने भी सोशल मीडिया कम्पनियों को पूरी सतर्कता बरतने और भ्रामक सूचना एवं फर्जी तस्वीरों को पहचानने में सभी उपाय करने के निर्देश दिए हैं। मगर विशेषज्ञों का कहना है कि ऐसे मामले रोकने के लिए उपयुक्त एवं ठोस नियमन की दरकार है। कानून में यह परिभाषा बिल्कुल स्पष्ट होनी चाहिए कि किस तरह के वीडियो फर्जी या आपत्तिजनक वीडियो की श्रेणी में आते हैं। इसके अलावा एआई की मदद से तैयार वीडियो का इस्तेमाल ठगी सहित अन्य अपराधों के लिए इस्तेमाल होने से भी रोकने के प्रावधान होने चाहिएं। असल समस्या तो तब खड़ी होती है जब ऐसे मामले से निपटने में काफी वक्त निकल जाता है। विशेषज्ञों की माने तो इन वीडियो का प्रसार तत्काल रोकना सबसे बड़ी चुनौती होती है। इससे प्रभावी ढंग से निपटने के लिए एक निगरानी ढांचे की आवश्यकता है। हमारे यहां कानूनी प्रक्रिया सभी पहलुओं पर विचार तो ज़रूर करती है मगर एक तय रफ्तार से ही आगे बढ़ती है। सरकार को इस बात पर गम्भीरता से विचार करना होगा कि पुलिस की ऐतिहासिक व्यवस्था के इतर उन्हें अत्याधुनिक और तकनीकी विशेषज्ञों की भर्ती कर साइबर अपराधों से निपटने के लिए अलग थानों के निर्माण एवं कानून में विशेष संशोधन करते हुए इस तरह के अपराध में शामिल अपराधियों पर त्वरित कार्रवाई का निर्णय लेना होगा।