पत्रकारिता की चुनौतियां

विश्व भर में पत्रकारिता कभी भी सुरक्षित व्यवसाय नहीं रही। पत्रकारों को हमेशा सरकारों, ़गैर-सरकारी संगठनों तथा भिन्न-भिन्न तरह के म़ािफया गिरोहों की भारी चुनौतियों का सामना करना पड़ता रहा है। युद्ध के दौरान तो पत्रकारों की ज़िम्मेदारियां तथा चुनौतियां और भी बढ़ जाती हैं। इस सन्दर्भ में 2023 का वर्ष सरकारों के लिए बेहद जोखिम भरा साबित हुआ है। पत्रकारों की अन्तर्राष्ट्रीय फैडरेशन (आई.एफ.जे.) द्वारा जारी की गई एक रिपोर्ट के अनुसार इस वर्ष अब तक 94 पत्रकार मारे गये हैं तथा 393 के लगभग पत्रकारों को नज़रबंद किया गया है। इस रिपोर्ट के अनुसार मारे गये 94 पत्रकारों में से 68 पत्रकार इज़रायल-हमास युद्ध के दौरान ही मारे गये हैं। इस वर्ष विश्व भर में मारे गये कुल पत्रकारों का यह 72 प्रतिशत बनता है। बहुसंख्यक पत्रकार गाज़ा पट्टी में इज़रायल के हमलों के दौरान मारे गये हैं। रूस-यूक्रेन युद्ध भी पत्रकारों के लिए  बेहद घातक सिद्ध हुआ है। एक अन्य अन्तर्राष्ट्रीय संस्था जनर्लिस्ट विदाऊट बार्डर की रिपोर्ट के अनुसार रूस-यूक्रेन युद्ध में 10 पत्रकार मारे गये हैं। अन्तर्राष्ट्रीय फैडरेशन के अनुसार विश्व में 2022 में 67 पत्रकार मारे गये थे तथा 2021 में 47 पत्रकार मारे गये थे।
पत्रकारों के इस अन्तर्राष्ट्रीय संगठन ने मांग की है कि अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर मीडिया कर्मचारियों की सुरक्षा के लिए बेहतर व्यवस्था होनी चाहिए तथा मीडिया पर हमला करने वालों की जवाबदेही भी निर्धारित की जानी चाहिए। पत्रकारों की इस अन्तर्राष्ट्रीय फैडरेशन के अध्यक्ष डोमनीक्यू पैराडलाई ने कहा है कि अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर पत्रकारों की सुरक्षा के लिए नये मापदंड तय किये जाने चाहिएं। इस संस्था ने अ़फगानिस्तान, फिलिपाइन्ज़, भारत, चीन तथा बंगलादेश में भी मीडिया कर्मचारियों पर हो रहे हमलों की आलोचना की है। 
संघर्षों-युद्धों में पत्रकारों का शिकार होना कुछ सीमा तक समझ आने वाली बात है, परन्तु विश्व के जितने भी देशों में ऐसा कोई युद्ध नहीं हो रहा, उन स्थानों पर भी पत्रकारों पर हमले होते हैं तथा उन्हें सरकारों द्वारा नज़रबंद भी किया जाता है। वास्तविक बात यह है कि अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर लोकतंत्र, मानवाधिकार, विचारों की आज़ादी तथा प्रैस की आज़ादी की समर्थक ताकतें भिन्न-भिन्न कारणों के कारण कमज़ोर होती जा रही हैं तथा विश्व के भिन्न-भिन्न देशों में भारी संख्या में ऐसे राजनीतिक दल सत्तारूढ़ होते जा रहे हैं, जो मानवाधिकारों तथा प्रैस की आज़ादी में ज्यादा विश्वास नहीं करते। अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर कार्पोरेटरों द्वारा अपना मीडिया स्थापित करके सरकारों की ़गैर-लोकतांत्रिक तथा जन-विरोधी नीतियों के किये जा रहे समर्थन से भी मीडिया की आज़ादी पर विपरीत प्रभाव पड़ा है।
यदि भारत की बात करें तो यहां भी पिछले दो दशकों में प्रैस की आज़ादी में भारी अवसान आया है। यहां भी राष्ट्रीय स्तर पर बहुत-से मीडिया संस्थान सरकार पक्षीय कार्पोरेटरों के नियन्त्रण में चले गये हैं, जो कार्पोरेटरों के हितों की सुरक्षा करने के साथ-साथ सरकार की कार्पोरेट पक्षीय तथा जन-विरोधी नीतियों का डट कर समर्थन करते हैं। सरकारें विज्ञापनों द्वारा या अन्य ढंग-तरीकों से ऐसे मीडिया संस्थानों का खुल कर समर्थन करती  हैं। ऐसे मीडिया संस्थान सरकारी शह पर साम्प्रदायिक कतारबंदी को भी उत्साहित करने से गुरेज नहीं करते। जो मीडिया संस्थान या मीडिया कर्मचारी सरकारों के जाल में फंसने से इन्कार करते हैं, उन्हें भारत में भी बेहद परेशान किया जाता है। ऐसे स्वतंत्र न्यूज़ पोर्टलों तथा वैब चैनलों को अन्तर्राष्ट्रीय सोशल मीडिया प्लेटफार्मों पर दबाव डाल कर ऑफलाइन भी करवा दिया जाता है। वैसे भी सरकारें मीडिया को नियमित करने के नाम पर ऐसे नियम-कानून बना रही हैं, जिनसे कि प्रैस की आज़ादी को सीमित किया जा सके। पंजाब में आम आदमी पार्टी की सरकार भी मीडिया को विज्ञापनों से तथा अन्य ढंग-तरीकों से अपने हितों के अनुसार इस्तेमाल करने के यत्न में लगी हुई है तथा दूसरी तरफ स्वतंत्र पहुंच रखने वाले मीडिया के विज्ञापन बंद करके या झूठे मामलों में फंसा कर परेशान करने की होड़ लगी हुई है। विगत दिवस हरियाणा के शहर पंचकूला में 400 के लगभग पत्रकारों का चंडीगढ़-हरियाणा पत्रकार यूनियन के नेतृत्व में वार्षिक सम्मेलन हुआ था। उसमें यह बात उभर कर सामने आई थी कि देश में पत्रकारों की सुरक्षा के लिए कोई प्रभावी कानून बनना चाहिए, जिसके द्वारा सरकारों को पत्रकारों की सुरक्षा के लिए जवाबदेह बनाया जा सके तथा ़गैर-सरकारी संगठनों तथा माफिया गिरोहों से भी उन्हें सुरक्षा मिल सके।
यह बात स्पष्ट है कि यदि विश्व भर में तथा भारत में भी लोकतंत्र को कायम रखना है, आम लोगों के मानवाधिकारों की सुरक्षा को सुनिश्चित बनाना है, तो यह बेहद ज़रूरी है कि पत्रकारों की सुरक्षा के लिए देश में मज़बूत कानून बने। इसके साथ ही सरकारों द्वारा दिये जाने वाले विज्ञापनों संबंधी पारदर्शी नियम-कानून बनाये जाने चाहिएं ताकि सरकार आज़ाद तथा निष्पक्ष सोच रखने वाले मीडिया संस्थानों तथा पत्रकारों को विज्ञापन बंद करके उनकी आर्थिकता को खत्म करने के समर्थ न हो सके। इसके साथ ही देश के आज़ाद तथा जागरूक नागरिकों को भी पत्रकारों की सुरक्षा तथा प्रैस की आज़ादी के लिए डट कर खड़े होना चाहिए। जन-साधारण के हितों की सुरक्षा तभी हो सकती है यदि देश में आज़ाद और निष्पक्ष मीडिया बरकरार रहे तथा निर्भीक होकर अपने कर्त्तव्य को अदा करने हेतु उसे सरकारी या ़गैर-सरकारी दमन का सामना न करना पड़े।