देश-विभाजन की भूल बख्शाओ, अनेकता में एकता को गले लगाओ


राजस्थान, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, तेलंगाना और मिज़ोरम के विधानसभा चुनावों के परिणाम संबंधित पार्टियों के लिए बढ़िया सोच तथा समझ लेकर आए हैं। सबसे बड़ा सबक तो कांग्रेस पार्टी के लिए है, जिसके दिमाग पर कर्नाटक की जीत  सवार हो गई थी। 
जहां पंजाब में नवजोत सिंह सिद्धू की बल्लेबाज़ी ने चरणजीत सिंह चन्नी तथा भगवंत मान जैसे अज्ञात नेताओं को पंजाब की कमान पकड़ा दी थी, वहीं कर्नाटक की जीत ने इसके नेताओं की भाषा में विरोधी गुट के लिए अनुचित शब्द इस्तेमाल करने का मार्ग खोल दिया था। इन चुनावों ने आम आदमी पार्टी की पोल भी खोल दी है, जो बड़े तख्त के सपने लेती हुई छोटे तख्तों से भी खिसकती दिखाई दे रही है। यदि ज़ोरम पीपल्स मूवमैंट भी अपनी वर्तमान चढ़त के बल पर ‘आप’ जैसे सपने लेने लग पड़ी तो इसका भी वही हश्र हो सकता है। जहां तक बल्लेबाज़ी का संबंध है, इमरान खान की वर्तमान स्थिति से सबक लेने में कोई हज़र् नहीं। हो सकता है कि कैप्टन अमरेन्द्र सिंह तथा सुनील जाखड़ जैसे अनुभवी नेता पुन: कांग्रेस में लौट लाएं और पंजाब का पैसा बाहरी राज्यों में चुनाव प्रचारकों से बचा रहे। बस इतनी हिदायत अवश्य है कि नवजोत सिंह सिद्धू की सलाह से बचें। 
आरएसएस की पटरी पर चढ़ कर वोट बटोरने वाली भाजपा को याद रखना चाहिए कि स्वतंत्रता प्राप्ति से पहले मुस्लिम लीग ने भी स्वायत्तता के ऐसे रंगदार गुबारे छेड़े थे कि मुहम्मद इकबाल जैसा समझदार शायर भी ‘हिन्दी हैं हम वतन हैं, हिन्दुसतां हमारा’ के स्थान पर ‘मुस्लिम हैं हम वतन हैं, सारा जहां हमारा’ लिखने लग गया था। 1947 में हिन्दुस्तान से कट जाने वाला मुस्लिम बहु-संख्यक देश कितने लाख लोगों की बलि का कारण बना और कितनी माताओं-बहनों का अपमान हुआ, यह सब इतिहास के पन्नों में दर्ज है। वर्तमान पाकिस्तान की यात्रा करने वाले तो यह भी जानते हैं कि वहां खस्ताहाल सड़कें हैं और गांवों के घर 75 वर्ष पहले वाले कच्चे। यदि कोई एकाध घर पक्की ईंट वाला है तो इसकी दीवारें पर सीमेंट की टीप नहीं की मिलती। वैसे इधर के निवासियों को उधर के लोगों से मान-सम्मान के सलामों के गफ्फे खूब मिलते हैं। हो सकता ऐसा करने से उनके मन की वह मैल धुल जाती है, जो स्वतंत्रता की प्राप्ति के समय मुस्लिम बहु-संख्यक देश बन जाने से लेकर उनके मन पर हावी है। एक देश, एक ध्वज तथा एक विधान का आह्वान करने वाले क्या जाने कि वे भी कुएं के मेंडक बनते जा रहे हैं। उनकी ओर से जम्मू-कश्मीर को दो केन्द्रीय शासित ईकाइयों में बदलना भी अनेकता में एकता के रंगों को बिखेरना ही है। दूसरी ओर कांग्रेस पार्टी द्वारा ‘इंडिया’ गठबंधन की जल्दाबाज़ी में 6 दिसम्बर को रखी बैठक को इस माह के तीसरे सप्ताह तक स्थगित करना बताता है कि यह सबक उन्होंने विधानसभा चुनावों से सीखा है। वे अभी भी अनेकता में एकता का फल खा रहे हैं।    
क्या कोई देश विभाजन के मार्ग पर चलना चाहेगा? तेलंगाना तथा छत्तीसगढ़ के चुनाव परिणाम कहते हैं कि बिल्कुल ही नहीं। यही बात दक्षिणी भारत के राज्यों पर लागू होती है और हिमाचल प्रदेश जैसे उन पहाड़ी राज्यों पर भी जो अनेकता में एकता का फल खा रहे हैं। 
यहां यह बताना भी ज़रूरी है कि चुनाव जीतने के लिए नेताओं की भाषण कला ही काफी नहीं है। मतदाता तो यह भी देखता है कि धरातल पर उसे क्या मिला है और क्या मिलने वाला है। इन चुनावों ने महिला शक्ति पर भी मुहर लगाई है। निश्चय ही आगामी लोकसभा चुनाव के समय इस ओर विधानसभा में हारने वाली पार्टियां ध्यान देंगी। विशेष तौर पर कांग्रेस पार्टी।  
भाई वीर सिंह पुरस्कार 
भाषा विभाग पंजाब की ओर से घोषित किए गए पुरस्कारों में से ताज़ा भाई वीर सिंह पुरस्कार पटियाला के एडवोकेट सरबजीत सिंह विर्क में मिला है। वह शहीद भगत सिंह का प्रशंसक है और पुरस्कृत पुस्तक का नाम ‘शहीद-ए-आज़म की कहानी चिट्ठियां दी ज़ुबानी’ है। मुबारकां! 
चिन्ताजनक घटनाक्रम 
पंजाब, हरियाणा तथा दिल्ली के ताज़ा समाचार चिन्ताजनक हैं। मौजूदा वर्ष के पहले छ माह में अकेले चंडीगढ़ से भिन्न-भिन्न आरोपों में पकड़े जाने वाले नाबालिगों की संख्या 60 बताई गई है। यदि इन्हें 2022 की 80 तथा 2021 की 50 गिरफ्तारियों से तुलना करके देखें तो यह बात वास्तव में ही गम्भीर है। गत सप्ताह अकेले चंडीगढ़ में दो हत्याओं में नाबालिगों का हाथ होना रौंगड़े खड़े करता है। पुलिस रिकार्ड गवाह हैं कि पंजाब, हरियाणा तथा दिल्ली के आरोपी हत्या, लूट, दुष्कर्म ही नहीं करते, अपितु बुज़ुर्गों के साथ धक्केशाही पर भी उतर आते हैं। राष्ट्रीय स्तर पर दोष रिकार्ड करने वाली एजेंसी एनसीआरबी तो यह भी बताती है कि चंडीगढ़ क्षेत्र में दुष्कर्म के मामले सिर्फ उत्तराखंड से कम थे तथा नशों की तस्करी करने में पंजाबी सबसे ऊपर हैं। इस रूझान को पुलिस की मारपीट नकेल नहीं डाल सकती, सिर्फ माता-पिता तथा अध्यापकों का योगदान ही काम आ सकता है। ध्यान दें।
अंतिका
—लोक बोली—
कीड़े पैणगे, मरेंगी सप्प लड़ के
मित्तरां नूं भाई आखदी।