पंजाब में हुए सभी पुलिस मुकाबलों की हो निष्पक्ष जांच 

लहू ना हो तो कलम तर्जुमा नहीं होता,
हमारे दौर में आंसू ज़ुबां नहीं होता।
प्रसिद्ध शायर वसीम बरेलवी का यह शे’अर वैसे तो सदियों के हालात की तर्जुमानी करता है, परन्तु जो ज़ुल्म का इतिहास पंजाब के 10 वर्षों के काले दौर के दौरान देखा, उस से कुछ ज़्यादा ही अनुकूल है। नि:संदेह अब श्री अकाल तख्त साहिब के स्वर्गीय कार्यकारी जत्थेदार गुरदेव सिंह काऊंके की शहादत की दास्तां फिर से चर्चा में है और सिख पंथ की अलग-अलग संस्थाएं जिनमें केन्द्रीय सिंह सभा भी शामिल है, तथा अन्य कई मानवाधिकार संस्थाएं और कार्यकर्ता भी शामिल हैं, इस अमानवीय ‘कत्ल’ की जांच की मांग कर रहे हैं, परन्तु हम समझते हैं कि इन 10 वर्षों के काले दौर में हुए सभी रिकार्डड पुलिस मुकाबलों, हत्याओं तथा अज्ञात शवों एवं झूठे पुलिस मुकाबलों की जांच के लिए व्यापक अधिकारों वाला उच्च-स्तरीय न्यायिक आयोग बनाया जाना चाहिए। जहां तक भाई काऊंके को हिरासत में ही गायब कर दिये जाने का मामला है, इस संबंध में 1997 में हाईकोर्ट के पूर्व जज तथा मानवाधिकार कार्यकर्ता जस्टिस अजीत सिंह बैंस के नेतृत्व में उस समय के मुख्यमंत्री प्रकाश सिंह बादल को निजी तौर पर मिल कर इस मामले की जांच करवाने हेतु ज्ञापन दिया गया था, परन्तु बादल सरकार ने बाद में तत्कालीन अतिरिक्त डी.जी.पी. बी.पी. तिवारी की जांच रिपोर्ट को दबा लिया था। उसके बाद की अकाली-भाजपा तथा कांग्रेस सरकारों ने भी इसे दबाए ही रखा। मानवाधिकार कार्यकर्ताओं द्वारा लगातार रिपोर्ट की कापी की आर.टी.आई. के माध्यम से मांग की भी ठुकराया जाता रहा, परन्तु अंत में मानवाधिकार कार्यकर्ताओं ने अपने ही स्रोतों के माध्यम से 11 पृष्ठों की यह रिपोर्ट प्राप्त करके जत्थेदार श्री अकाल तख्त साहिब को इस पर कार्रवाई करवाने हेतु सौंप दी है। हम समझते हैं कि जत्थेदार साहिब को इस पर कार्रवाई करवाने के लिए प्रत्येक संभव प्रयास करना चाहिए। वैसे इस बारे में प्रमुख लेखक तथा मानवाधिकार कार्यकर्ता राम नारायण कुमार के नेतृत्व वाली ‘कमेटी फार को-आर्डिनेशन आफ डिसअपीयरैंस इन पंजाब’ ने इस रहस्यमयी गुमशुदगी का पर्दाफाश किया था और इस बारे दो प्रत्यक्षदर्शी पुलिस अधिकारियों जिनमें एक दर्शन सिंह थे, ने अपना बयान भी दिया था कि यह सब कुछ कैसे हुआ था। 
इस पर कार्रवाई अवश्य होनी चाहिए, परन्तु मैं दोहरा रहा हूं कि वास्तविक ज़रूरत तो पंजाब के काले दौर के दौरान हुए सभी सच्चे और झूठे पुलिस मुकाबलों की जांच के लिए एक आयोग बनाया जाए। 
इसके तीन मुख्य पक्षों की जांच होना आवश्यक है। अन्य पक्षों के बारे जांच करने संबंधी तथ्य सामने आने पर सोच सकते हैं। पहला पक्ष यह कि इस दौर में कितने निर्दोष हिन्दुओं को मारा गया? यह बहुत आसान कार्य है क्योंकि उस दौर में मारे गये एक भी हिन्दू भाई की मौत ऐसी नहीं जो पुलिस रिकार्ड में दर्ज न हुई हो। दूसरा पक्ष उन पुलिस मुकाबलों के सच्चे या झूठे होने की जांच की जाये जिन्हें पुलिस रिकार्ड में दर्ज किया गया और जिनके सिर पर पुलिस अधिकारियों ने तेज़ी से पदोन्नतियां लीं। ऐसी कुछ घटनाएं भी सामने आ चुकी हैं कि पुलिस ने किसी निर्दोष सिख को मार कर किसी बड़े खाड़कू या खालिस्तान समर्थक का नाम दे दिया और तरक्की ले ली, परन्तु बाद में वह बड़ा खाड़कू जीवित निकला। 
इसका तीसरा पहलू जो बहुत बड़ा तथा जटिल है, वह है हज़ारों सिख नौजवानों को मार कर अज्ञात कह कर या तो जला दिया गया और या शव नहरों में फेंक कर तथा अन्य कई तरह से खुर्द-बुर्द कर दिये गये। इसमें से अज्ञात कह कर जलाये गये शवों बारे बहुत कुछ हमारे सामने है। मानवाधिकार कार्यकर्ता जसवंत सिंह खालड़ा का अनुमान था कि लगभग 25000 नौजवानों के अज्ञात शवों का अंतिम संस्कार किया गया था। उन्होंने सिर्फ तीन श्मशानघाटों का विवरण एकत्रित करके लगभग 2100 ऐसे शवों की पहचान कर ली थी, परन्तु उन्हें स्वयं भी इसके बदले गायब करके शहीद कर दिया गया। कई पुस्तकों के लेखक राम नारायण कुमार ने भी हज़ारों  ऐसे शवों की पहचान की। इन्साफ नाम की संस्था की रिपोर्ट भी जांच की मांग करती है। 11 दिसम्बर, 2017 को अधिकार एडवोकेसी ग्रुप ने पंजाब में जबरन लापता, सामूहिक हत्याओं तथा झूठे पुलिस मुकाबलों के 8257 मामलों में सबूत होने का दावा किया था जिनके सबूत गायब कर दिये गये। अन्य हज़ारों अलग हैं। इस ग्रुप की रिपोर्ट में कहा गया, ‘हमारी प्राथमिक जांचों ने दिखाया है कि इन रिपोर्ट किये गये पुलिस मुकाबलों में से 95 फीसदी से अधिक फर्जी (अर्थात झूठे) थे। 
वरिष्ठ वकील कोलिन गौंसालवेज़ ने कहा कि इनमें (उस समय तक) एक भी मुलज़म जेल नहीं गया और न ही हिरासत में ‘लोगों की हत्याओं’ (कोल्ड ब्लडेड मर्डज़र्) के लिए उम्र कैद हुई। हालांकि पिछले समय में कुछ झूठे मुकाबले बनाने वाले अधिकारियों को सज़ा अवश्य हुई जो सिद्ध करती है कि बहुत-से मुकाबले झूठे थे और इन सभी की जांच के लिए आयोग बनाना कितना आवश्यक है। गौंसालवेज़ ने कहा कि सकरारी आतंकवाद सबसे घातक आतंकवाद है। यहां कोई मीडिया कवरेज नहीं है, कोई अदालती केस नहीं, कोई दस्तावेज़ नहीं हैं। रिपोर्ट साफ करती है कि सामूहिक हत्याओं के अपराधियों ने अपराध छुपाने के लिए शवों को लावारिस कह कर अंतिम संस्कार किये थे। 
पुलिस अधिकारी का प्रायश्चित
इस बीच 6 जुलाई, 2013 की रिपोर्ट एक है जिसमें एक पुलिस सब-इन्पैक्टर सुरजीत सिंह प्रायश्चित करते हुए इकबालिया बयान द्वारा कहता है कि उसने कम से कम 80 लोगों को झूठे पुलिस मुकाबलों में मारा। उसने कहा कि इन झूठे एवं सच्चे पुलिस मुकाबलों में लोगों को मारने वालों को तेज़ पदोन्नतियां मिलीं। उसने कम से कम 16 फर्जी पुलिस मुकाबलों की सूचि भी दी, जिनमें लगभग तीन दर्जन व्यक्ति मारे गये थे। सब इन्स्पैक्टर सुरजीत सिंह जो सिपाही भर्ती हुआ था, कहता है कि उसे उसके अपराधों की तीव्रता ने बहुत उदास कर दिया है और कई अवसरों पर उसे पश्चाताप के लिए आत्म-हत्या ही साधन प्रतीत हुआ है। 
ऐसे हालात तथा गवाहियां साफ करती हैं कि उस काले दौर के एक काले स्याह पृष्ठ की जांच ज़रूरी है। चाहे आयोग बनाने में बहुत देर हो गई है, परन्तु इतनी देर अभी भी नहीं हुई कि कुछ किया ही न जा सके। यह ठीक है कि 1980 के बाद की सभी सरकारें चाहे वे अकाली-भाजपा की थीं और चाहे कांग्रेस की या राष्ट्रपति शासन द्वारा राज्यपालों की सरकारें थीं, वे ज़ुल्म करने या ज़ुल्म की जांच हेतु चुप रहने की आपराधिक लापरवाही की ज़िम्मेदार हैं। उल्लेखनीय है कि पहला पुलिस मुकाबला खन्ना के पास गांव दहेड़ू में 19 नवम्बर, 1981 को दरबारा सिंह के मुख्यमंत्री काल में हुआ था। सो, यदि पिछली सरकारें आपराधिक लापरवाही की ज़िम्मेदार हैं तो यदि अब की ‘आप’ की भगवंत मान सरकार भी इस पर चुप रहती है तो वह भी इतिहास में इसी कतार में ही गिनी जाएगी, परन्तु हम आशा करते हैं कि शायद वह यह जांच करवाने के लिए तैयार हो जाए। 
किसी असीर को बांधो, सताओ, खत्म करो,
क्या दौर-ए-ज़ुल्म चला था तरक्की-ए-अहुदा।
भाजपा की नीति समझ से परे
भारतीय जनता पार्टी तथा उसकी सरकार जहां एक ओर छोटे साहिबज़ादों का दिन ‘वीर बाल दिवस’ के रूप में मना कर सिख पंथ तथा पंजाबियों का दिल जीतने की कोशिश कर रही है, वहीं गणतंत्र दिवस की झांकियों के लिए पंजाब सरकार द्वारा भेजे गये तीनों ही डिज़ाइन रद्द करके पंथ तथा पंजाबियों की नाराज़गी भी सहेड़ रही है। इस संबंधी केन्द्र सरकार तथा भाजपा को सोचने की आवश्यकता है।
परन्तु इस संबंधी पंजाब भाजपा के अध्यक्ष सुनील जाखड़ की प्रैस कान्फ्रैंस को भी दृष्टिविगत नहीं किया जा सकता, क्योंकि ये झांकियां रद्द किये जाने पर उनकी पहली प्रतिक्रिया पंजाब के पक्ष में था, परन्तु अब उन्होंने झांकियां रद्द करने के दो कारण बताये हैं। पहला यह कि ये झांकियां निर्धारित थीम से हट कर थीं, और दूसरा कारण साफ राजनीतिक है कि पंजाब सरकार ने इन झांकियों पर ‘आप’ प्रमुख अरविंद केजरीवाल तथा पंजाब के मुख्यमंत्री भगवंत मान की तस्वीरें लगा कर इन्हें पार्टी प्रचार के लिए इस्तेमाल करने की कोशिश की थी। सच्चाई क्या है, यह आगामी दिनों में सामने आ ही जानी है। अच्छा हो यदि पंजाब सरकार अपने नेताओं की तस्वीरें हटाने की बात मान ले और केन्द्र सरकार पंजाब की झांकियों को परेड में शामिल करने के लिए तैयार हो जाए, परन्तु भाजपा ने यदि सिखों के दिल जीतने हैं तो पंजाब के साथ विगत सरकारों के समय हुए अन्यायों को भी दुरुस्त करना होगा तथा अन्य भेदभाव भी बंद करने होंगे। 
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