कतर ने रिहा किए आठों कैदी, भारतीय कूटनीति की शानदार जीत

विगत वर्ष अक्तूबर माह में कतर की प्रथम दृश्य अदालत (अपील कोर्ट) ने जिन आठ भारतीयों को, जो कि पूर्व नौसैनिक थे, को जासूसी के आरोप में मौत की सजा सुनायी थी, भारत सरकार ने पहले अपनी कूटनीतिक के तहत उनकी सजा-ए-मौत को कम करवाने की अपील की और अब उन्हें अपने कूटनीतिक प्रभाव के चलते रिहा करवा दिया। यह सचमुच में भारतीय कूटनीति की एक बड़ी जीत है और वैश्विक परिदृश्य में भारत की उभरती हुई ताकत का सबूत भी है। देश के जिन आठ पूर्व नौसैनिकों को कतर की प्रथम दृश्य अदालत ने मौत की सजा सुनायी थी, वे थे- कैप्टन नवतेज सिंह गिल, कैप्टन सौरभ वशिष्ठ, कमांडर पूर्णेंदु तिवारी, कैप्टन विरेंद्र कुमार वर्मा, कमांडर सुगुनाकर पकाला, कमांडर संजीव गुप्ता, कमांडर अमित नागपाल और नाविक राजेश। भारतीय विदेश मंत्रालय के मुताबिक कतर की अपील कोर्ट में इन सभी पूर्व भारतीय नौसैनिकों को अक्तूबर 2023 में जासूसी के आरोप में मौत की सजा सुनायी थी। इस पर भारत सरकार ने कतर की कोर्ट में सजा-ए-मौत पर रोक लगाने की अपील की थी। जिस कारण 28 दिसम्बर, 2023 को कतर की अदालत ने भारत के इन पूर्व नौसैनिकों की सजा-ए-मौत पर रोक लगा दी थी और अब इन्हें पूरी तरह से रिहा कर दिया गया है और इन आठ नौसैनिकों में से सात भारत पहुंच चुके हैं।
नि:संदेह भारत और कतर के घनिष्ठ आर्थिक, कूटनीतिक और वैश्विक सहयोग संबंधों के कारण ही यह संभव हुआ है। भारत के लिए कतर एक बहुत महत्वपूर्ण देश है तो कतर के लिए भी हम उससे कम महत्वपूर्ण नहीं हैं। भारत जहां अपनी ज़रूरत की 90 प्रतिशत गैस कतर से आयात करता है, वहीं कतर की अर्थव्यवस्था में 80 प्रतिशत से ज्यादा भूमिका भारतीयों की है। भारतीय जहां कतर की गैस और तेल उत्खनन की व्यवस्था संभालते हैं, वहीं यहां की संचार, शिक्षा और हेल्थ जैसी व्यवस्थाएं भी भारतीयों के बिना एक ही दिन में पंगू हो जाएंगी। इस तरह देखा जाए तो कतर भी भारत पर बहुत निर्भर है। इसलिए भी दोनों देशों के रिश्ते बहुत मजबूत हैं। कतर की कुल 25 लाख जनसंख्या में से 7 लाख भारतीय हैं। निश्चित रूप से भारत में हर महीने बड़ी तादाद में विदेशी मुद्रा आती है, उसी में कतर में रहकर काम करने वाले भारतीयों द्वारा भेजी गई कतर की मुद्रा भी बड़ी तादाद में होती है। 
कतर में तीन तरह की अदालतें होती हैं- आपराधिक अदालतें, दीवानी अदालतें, वाणिज्यिक अदालतें। इनमें से आपराधिक अदालतों के पास आपराधिक मामलों पर फैसले देने का अधिकार होता है। इनमें हत्या, चोरी और धोखाधड़ी जैसे गंभीर अपराध शामिल होते हैं। हालांकि न तो भारत सरकार ने और न ही कतर की सरकार ने यह स्पष्ट किया है कि भारत के आठ पूर्व नौसैनिकों पर क्या आपराधिक मामले थे लेकिन जो खाड़ी देशों की मीडिया में छपी रिपोर्टों से छनकर हिंदुस्तान तक बातें पहुंची हैं, उनसे पता चलता है कि शायद भारतीयों पर जासूसी के गंभीर आरोप थे, जोकि कतर के आपराधिक अदालतों के तहत मामला आता है। गौरतलब है कि कतर की कानूनी प्रणाली नागरिक कानून और इस्लामी कानून का मिश्रण है। कतर के संविधान के मुताबिक शरिया कानून ही कतर के कानून का मुख्य स्रोत है। कतर में न्यायपालिका, सर्वोच्च परिषद की स्थापना ढाई दशक पहले 1999 में हुई थी, जिसका मकसद न्यायपालिका की स्वतंत्रता सुनिश्चित करना है। कहना न होगा कि भारतीयों को रिहाई में जो सफलता मिली है, इसमें इसका भी योगदान है।
जब भारत ने अपने नागरिकों यानी आठ पूर्व सैनिकों को दी गई सजा-ए-मौत पर रिहाई की कोशिशें शुरु की थी, तो सीधे-सीधे हमने अपने नागरिकों की रिहाई की मांग नहीं की थी बल्कि उनकी सजा-ए-मौत को रोक लगाने की बात की थी। वास्तव में अलदेहरा ग्लोबल कम्पनी के लिए काम करने वाले इन भारतीय नागरिकों की रिहाई के लिए यह बहुत ही स्मार्ट कोशिश थी, क्योंकि अगर सीधे सीधे हमारी सरकार पहली अपील में ही इन्हें रिहा करने की मांग करती, तो इसे कतर की कानून व्यवस्था खुद पर एक गैर ज़रूरी हस्तक्षेप मानती। इसलिए सरकार ने सबसे पहले इन्हें दी गई सजा पर रोक लगवाने की कोशिश की। विदेश मंत्रालय की कूटनीतिक लॉबी के साथ भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी निजी तौर पर भी भारतीयों की रिहाई के प्रयास में लगे थे। अपने हाल के कई महत्वपूर्ण दौरों पर प्रधानमंत्री मोदी ने अपने निजी संबंधों के कई चैनलों का इस्तेमाल इन भारतीयाें की रिहाई के लिए किया था। लेकिन भारत सरकार और न ही सरकार का कूटनीतिक अमला इस पूरे मामले को पैनिक होने देना चाहता था। क्योंकि पूरी दुनिया इस बात को जानती है कि किस तरह मध्य पूर्व ऐसे मामलों में जरा से भी हस्तेक्षप को अपनी प्रतिष्ठा का प्रश्न बना लेता है। इसलिए भारत सरकार इस पूरे मामले में बिना कोई शोर-शराबा मचाए अपना काम करती रही, क्योंकि सरकार जानती है कि पश्चिम एशिया का यह जीवाश्म तेल से समृद्ध देश न सिर्फ भारत की अर्थव्यवस्था में महत्वपूर्ण गति प्रदान करता है बल्कि तीन तरफ से पारस की खाड़ी से घिरा यह देश अंतर्राष्ट्रीय व्यापार में भी महत्वपूर्ण सिक्योरिटी प्वाइंट है और यह जगजाहिर है कि दुनियाभर की जहाज रानी गतिविधियों में सबसे ज्यादा भारतीय लगे हुए हैं। इसलिए भारत सरकार को एक साथ कई मोर्चों पर निशाना साधना था और कहना न होगा कि भारत इसमें सफल रहा।
भारतीय अर्थव्यवस्था में जिस तरह से कतर रियाल की मज़बूत उपस्थिति है, इसी तरह की उपस्थिति अब समूचे मध्य पूर्व में भारतीयों की भी इस रिहाई की भी होगी। इस रिहाई के जरिये भारत ने साबित कर दिया है कि वह एक उभरती हुई महाशक्ति है। हालांकि न तो भारत सरकार ने और न ही कतर की अदालत या वहां की सरकार ने इस बात का खुलासा किया कि पूर्व भारतीय सैनिकों पर क्या आरोप लगे थे? लेकिन माना जा रहा है कि उन पर इटली की गोपनीय पनडुबी यू-212 के बारे में कुछ गुप्त सूचनाएं, मध्य पूर्व इस्लामिक देशों में जानी दुश्मन इज़रायल को देने का मामला था। हालांकि बार-बार इस बात को जोर देकर कहा गया है कि कतर न्यायालय ने आरोपियों पर लगे आरोप का सार्वजनिक खुलासा नहीं किया, केवल भारतीय कानूनी टीम से साझा किया है। फिर भी विभिन्न मीडिया चैनलों से बार-बार इस जासूसी मामले की बात उठती रही है और अगर यह सही है तो मानना होगा कि भारत को जबरदस्त कूटनीतिक सफलता मिली है। क्योंकि इज़रायल से संबंधित किसी भी मामले की मध्य पूर्व के इस्लामिक देश जरा भी अनदेखी नहीं करते। ऐसे में भारतीयों की रिहाई समूचे देश के लिए गर्व की बात है। 
-इमेज रिफ्लेक्शन सेंटर