किसानों की शुद्ध आय बढ़ाने की तकनीकें

भारत की जी.डी.पी. विकास दर वर्ष 2023-24 के दौरान 7.3 प्रतिशत रहने का अनुमान है। यह विकास दर विगत वर्षों के मुकाबले काफी उच्च एहसास की जा रही है। सूचक अंक (सेंसेक्स) भी इस समय बहुत शिखर पर है, जो पहली बार 72,000 को पार कर गया है। विदेशी मुद्रा का ज़खीरा पिछले माह 620 बिलियन डॉलर पर था। इसके बावजूद अति गरीबों की संख्या 16 करोड़ है। गरीबी बहुत धीरे-धीरे कम हो रही है। इसके कम होने की दर वर्ष 2023-24 में 0.3 प्रतिशत वार्षिक रही। किसानों की शुद्ध आय में भी कोई विशेष वृद्धि नहीं हो रही, जबकि उत्पादकता और उत्पादन बढ़ रहा है। कृषि की विकास दर 3.7 प्रतिशत है। डा. मनमोहन सिंह की यू.पी.ए. सरकार के समय यह 3.5 प्रतिशत थी। कृषि का विकास आम लोगों की खुशहाली के लिए बहुत महत्वपूर्ण है। भारत की 45 प्रतिशत जनसंख्या कृषि व्यवसाय से जुड़ी हुई है, जबकि पंजाब में 55-60 प्रतिशत के करीब लोग कृषि में लगे हुए हैं। कृषि की शुद्ध आय पिछले 10 वर्षों में केवल 1.3 प्रतिशत की दर से बढ़ी है। भारत कृषि प्रधान देश है और पंजाब कृषि आधारित प्रदेश है। ग्रामीण आर्थिकता के विकास के लिए स्थायी कृषि का विकास ज़रूरी है। इसके साथ ही किसानों की शुद्ध आय बढ़ सकती है। इस समय चाहे अनाज़ की पैदावार शिखर पर है परन्तु किसानों की आय में वृद्धि नहीं हो रही।  कृषि किस्मों की एम.एस.पी. डा. स्वामीनाथन कमिशन द्वारा की गई सिफारिशों के अनुसार नहीं बढ़ी। सरकार की नीति उपभोक्ता समर्थक है, जबकि अब महंगाई पर भी कुछ नकेल डाल ली गई लगती है। कृषि के आकार के कम होना, छोटे और कंढ़ी के किसानों की संख्या में लगातार वृद्धि होना, प्राकृतिक स्त्रोतों का कम होना और पर्यावरण तबदीली भी किसानों की शुद्ध आय न बढ़ने के लिए जिम्मेदार है। इसके अलावा उत्पादन खर्चों का बढ़ना और मंडी में किस्मों की कीमतों में उतार-चढ़ाव भी अपना प्रभाव डालते हैं। जो आजकल नौजवानों में कृषि से दूर भागने की और पंजाब छोड़ कर विदेश जाने की रूचि बढ़ रही है, उसके साथ ही किसानों की कृषि से आय प्रभावित होती है। पंजाबी नौजवानों के कृषि से अलग होने के कारण कृषि प्रवासी खेत मज़दूरों पर ही निर्भर हो गई है। 
कृषि खर्चे जिनमें बीज़, खाद, कीड़ेमार दवाईयां, खेत मज़दूरों की दिहाड़ी, मशीनरी और उपकरण के खर्च शामिल हैं, बढ़ कर बहुत ऊपर चले गये। कृषि सामग्री का सही तरीके के साथ उपयोग नहीं हो रहा। गेहूं और धान, जो पंजाब की मुख्य रबी और खऱीफ की फसलें हैं, उनमें विशेषज्ञों द्वारा तय की गई मात्रा से अधिक किसान कीमियाई खाद आदि सामग्री पाई जा रहे है फलसी बीमारियों की भरमार है और किसान कीटनाशकों पर ज़रूरत से अधिक खर्च कर रहे हैं।
किसानों की आय और उत्पादकता बढ़ाने के लिए बीज टैक्नॉलोजी का विशेष महत्व है। गुणवत्ता वाले बीज का उपयोग करना, फिर उसको सुधार कर उपयोग करना बहुत ज़रूरी है। यदि बीज अच्छा होगा तभी दूसरी सामग्री अपना असर दिखाएगी। विशेषज्ञों के अनुसार गुणवत्ता वाले बीज 25 प्रतिशत तक झाड़ बढ़ाते हैं। इसी प्रकार यदि समय पर बिजाई की जाए तो झाड़ अधिक निकलता है। जो तीन फसली चक्कर किसानों द्वारा अपनाया जाना शुरू हो गया, उनमें एक फसल फलीदार होनी चाहिए, जिससे नाइट्रोजन की ज़रूरत घटेगी और खर्च में बचत होगी। ज़ीरो टिलेज, कम से कम गहाई, मुंडेरों पर बुआई, लेज़र कराहे के साथ ज़मीन को समतल करवाना और फसलों के अवशेष का योग्य प्रबंधन भी उत्पादकता और आय में वृद्धि करके पानी और तत्वों के उपयोग को घटाते हैं। इसके साथ फसली विभिन्नता भी आती है। कृषि गतिविधि के उपयोग में संतुलन लाकर भी खर्चा घटाया जा सकता है और उत्पादकता बढ़ाई जा सकती है। भूमि स्वास्थ्य कार्ड फसलों के उत्पादन के लिए खाद और अन्य सामग्री कृषि विशेषज्ञों की सिफारिश अनुसार प्रयोग करने में मदद करता है। नीम-कोटिड यूरिया भी झाड़ बढ़ाने और बीमारियों का हमला घटाने में सहायक होता है। भू-जल का स्तर प्रत्येक वर्ष तेज़ी से गिर रहा है। पानी बचाने की स्कीमें जैसे तुपका सिंचाई और छिड़काव के साथ सिंचाई आदि उपयोग में लाई जाएं, जिससे पानी की बचत होगी और बिजली का उपयोग कम करना पड़ेगा। भारत सरकार की ‘प्रधानमंत्री कृषि सिंचाई योजना’ को अमली रूप पहना कर कम पानी का उपयोग करके अधिक उत्पादन लिया जा सकता है।
आय बढ़ाने के लिए फसलों के साथ सहायक धंधे जैसे पशु पालन, मुर्गी पालन, बकरियां या भेड़ें पालन आदि शामिल किये जा सकते हैं। ऐसा करने के साथ किसानों की आय बढ़ेगी। कृषि के साथ संबंधित व्यवसायों से बाईप्रोडकट मिलते हैं, जिनके उपयोग से कृषि खर्चे घटेंगे और आय बढ़ेगी। सब्ज़ियों, फलों, बागबानी और शहद की मखियां पालन आदि भी सहायक धंधे हैं, जिनको किसान आय बढ़ाने के लिए अपना सकते हैं।