किसानों का रोष कैसे दूर किया जाए ?

किसान दु:खी हैं, क्योंकि पंजाब की कृषि गम्भीर संकट में है। इसीलिए वे प्रदर्शन कर रहे हैं और धरने लगा कर सड़कें तथा रेलगाड़ियां रोक रहे हैं। पंजाब में धान, गेहूं का फसली-चक्र प्रमुख है। भू-जल का स्तर प्रत्येक वर्ष कम हो रहा है। बहुत-से ब्लाकों में नये ट्यूबवैल लगाने की कोई सम्भावना नहीं रही। मौजूदा ट्यूबवैल किसानों को समय-समय पर और गहरे करने पड़ रहे हैं, जिससे उनका खर्च बढ़ रहा है। भूमि की उत्पादन शक्ति कम हो रही है। भूमि को प्रत्येक वर्ष अधिक नाइट्रोजन की ज़रूरत पड़ रही है। गत 20 वर्ष से प्रयास किए जा रहे हैं कि धान की काश्त के अधीन रकबा कम हो, परन्तु इसमें कोई सफलता नहीं मिल रही। विशेषज्ञों के अनुसार कम से कम 10 लाख हैक्टेयर रकबा धान की काश्त से निकालने की ज़रूरत है। किसान स्वयं भी सोच रहे हैं कि पानी बचाना बहुत ज़रूरी है। धान की काश्त प्रत्येक वर्ष बढ़ती-बढ़ती 31 लाख हैक्टेयर को छू गई है। लेज़र कराहा बड़ा महंगा पड़ता है। इसका इस्तेमाल प्रत्येक किसान नहीं कर रहा। किसान भी फसली विभिन्नता लाने बारे सोचते हैं। 
किसान तो गेहूं व धान दोनों फसलों के अधीन रकबा कम करने के लिए तभी तैयार होंगे, यदि इनके लाभदायक विकल्प उन्हें उपलब्ध हों। गेहूं अधिक लागत वाली फसल होने के कारण किसान इसका अधिक लाभदायक विकल्प चाहते हैं और धान का विकल्प वे चाहते हैं इस फसल की पानी की अधिक ज़रूरत होने के कारण। रबी के मौसम में गेहूं के लाभदायक विकल्प ढूंढने के लिए खोज तेज़ किये जाने की ज़रूरत है।
 धान की काश्त कम करने के लिए पंजाब कृषि विश्वविद्यालय के उपकुलपति डा. सतबीर सिंह गोसल कहते हैं कि यदि केन्द्र 23 फसलों जिनमें कपास, नरमा, मक्की, गन्ना, तेल बीज, बासमती तथा दालों की फसलें आती हैं, का न्यूनतम समर्थन मूल्य तय करके मंडियों में खरीद सुनिश्चित बना दे तो धान की काश्त के अधीन रकबा कम होगा और किसान धीरे-धीरे इन फसलों को धान के स्थान पर अपनाएंगे। इससे पंजाब में पानी की समस्या हल होगी। इससे प्रदूषण कम होगा और पराली को आग लगाने की समस्या का भी काफी हद तक समाधान हो जाएगा।
 डा. गोसल कहते हैं कि केन्द्र सरकार 23 फसलों के न्यूनतम समर्थन मूल्य की घोषणा तो करती है, परन्तु इनकी खरीद न्यूनतम समर्थन मूल्य पर नहीं की जाती। यदि पंजाब के किसानों के लिए गेहूं तथा धान के अतिरिक्त अन्य किसी फसल पर न्यूनतम समर्थन मूल्य पर खरीद सुनिश्चित नहीं बनती तो वे फसली विभिन्नता किस प्रकार लाएंगे तथा धान की काश्त कैसे छोड़ेंगे?
डा. एम.एस. स्वामीनाथन जो शीर्ष कृषि वैज्ञानिक थे तथा जिन्हें हाल ही में सबसे बड़ा सम्मान ‘भारत रत्न’ दिया गया है, उनकी सिफारिशों को लागू करके पंजाब के किसानों में जो निराशा, विरोधता तथा रोष का माहौल है, वह समाप्त किया जा सकता है। लुधियाना स्थित कृषि विश्वविद्यालय के उपकुलपति द्वारा सिफारिश किए गए न्यूनतम समर्थन मूल्य    पर खरीद करने के लिए जिन 6 फसलों की सिफारिश की गई है, उनको किसान धीरे-धीरे अवश्य अपनाएंगे, जिससे फसली विभिन्नता आएगी और पंजाब की पानी की समस्या समाप्त होगी। स्वामीनाथन की सिफारिशों में सी 2+ 50 प्रतिशत (जिसमें कृषि सामग्री व अन्य खर्च तथा परिवार द्वारा की गई मज़दूरी, भूमि का किराया तथा लागत का ब्याज आदि सभी खर्च शामिल हैं) पर फसल का न्यूनतम समर्थन मूल्य तय करने के फार्मूले के अतिरिक्त किसानों की बेहतरी के लिए कुछ अन्य सिफारिशें भी शामिल हैं, जिन पर केन्द्र को ध्यान  देकर मानने पर विचार करना चाहिए। कृषि तथा कृषि अनुसंधान पर अधिक खर्च करने की आवश्यकता है, जिससे पर्यावरण में आ रहे बदलाव, भू-जल का कम होता स्तर तथा फसली विभिन्नता जैसी समस्याएं हल होंगी। 
डा. स्वामीनाथन आयोग की सिफारिशें लागू करने के लिए जो खर्च आता है, वह अन्य क्षेत्रों में आय बढ़ा कर पूरा किया जा सकता है। प्रत्येक वर्ष कृषि बजट बढ़ाने की ज़रूरत है। ऐसा करने से ही किसानों का रोष दूर होगा।  

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