ख्वाजा अहमद अब्बास तथा उसका पंजाब 

मेरी ओर से संभाल कर रखी गईं पत्रिकाओं में से मेरे हाथ अंग्रेज़ी पत्रिका (Surge) ‘लहर’ का पंजाब अंक लगा है जो 1983 मेें प्रकाशित हुआ था। संभाल कर रखने का कारण तो शायद यह था कि इसमें मुल्क राज आनन्द, डा. गोपाल सिंह तथा ख्वाजा अहमद अब्बास जैसे प्रसिद्ध लेखकों के लेखों के अतिरिक्त रचनात्मक साहित्य के सृजक सिर्फ दो ही थे। अमृता प्रीतम तथा मैं। इसमें अमृता की पांच कविताएं हैं और मेरी कहानी एक ‘छिण दी भाल’ जिसे अनुवादक ने अंग्रेज़ी में अनुवाद करते हुए ‘क्वैस्ट’ (Quest)नाम दिया है। अमृता प्रीतम की कविताओं में से एक कविता खुशवंत सिंह द्वारा अनुवादित है। 1983 की हमारी तस्वीरें भी प्रभावी हैं। 
मेरा अपनी पीठ थपथपाना तो बनता ही है, परन्तु इस पत्रिका के रूप तथा पेशकारी में हिन्दू, मुस्लिम तथा सिख समुदाय की साझ का संदेश भी मिलता है। मुल्क राज आनन्द का लेख बहुत बड़ा है परन्तु अब्बास का लेख इतना छोटा तथा भावपूर्ण कि मैंने इसे पूरे का पूरा अनुवाद किया है। विशेषकर इसलिए कि इसमें 1947 के बाद के हिमाचल, हरियाणा व पंजाब की साझ की भावना उजागर होती है जिसे केन्द्र की वर्तमान सरकार अन्नदाता में फूट डाल कर राजनीतिक लाभ लेना चाहती है। ख्वाजा अहमद अब्बास ने अपने लेख का शीर्षक ‘मैं वी एक पंजाबी सां’ देकर देश विभाजन के बाद के पंजाब के टुकड़े-टुकड़े होने की बात की है।  
याद रहे कि अब्बास अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी से शिक्षा प्राप्त करने के बाद फिल्मी दुनिया में भी छाया रहा, जन-संचार एवं पत्रकारिता में भी। किसी समय अंग्रेज़ी पत्रिका ‘बलिट्स’ अर्थात ‘त्रिखा’ में उसका कालम ‘The Last Page’ (अंतिम पृष्ठ) प्रकाशित होता था तो उसके प्रशंसक इस पत्रिका को सिर्फ उसकी रचना के कारण ढूंढते थे। पेश है उसका लेख ‘मैं वी एक पंजाबी सां।’
मैं पानीपत में जन्म हूं। कोई समय था (देश के विभाजन से पहले तथा बाद में भी) मेरा जन्म स्थान पंजाब में पड़ता था। 
मुझे आज तक याद है कि अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी में पढ़ते हुए यू.पी. वालों के पास हमें चिढ़ाने के लिए सिर्फ एक ही वाक्य होता था। ‘तुम आदमी हो या पंजाबी।’ हम गर्व से उत्तर देते थे, ‘पंजाबी’, हम इतने भोले थे कि हमें यह भी पता नहीं चलता था कि वे हमें मूर्ख बना गये हैं। हमें अपनी गलती का अहसास तब होता था जब वे खिलखिला कर हंसते और हंसते रहते। 
मैं उन पंजाबियों में से हूं जिसे बर्फीले रूस ही नहीं ठंडे देश अमरीका तथा कनाडा जाने का भी अवसर मिला है। जहां कहीं भी पंजाबी मिले, वह अपने रहन-सहन, लिबास तथा भाषा अपने साथ ले गए हैं। मिलते-मिलाते उन्हें यह भी भूल जाता है कि वे हिन्दू हैं, सिख या मुसलमान। भाषा की साझ (लिपि कोई भी हो) उन्हें जोड़े हुए है। पूर्वी पंजाब की साहित्यिक पत्रिकाओं में मुसलमान लेखकों की रचनाएं लिपियांतर करके प्रकाशित हुई मिलती हैं और पश्चिमी पंजाब वालों में हिन्दू तथा सिख रचनाकारों की। सैंतालीस के विभाजन के बाद पंजाब की तीन नदियां पाकिस्तान में बहती हैं और दो भारत में, परन्तु दोनों पक्षों ने शब्द पंजाब को गले लगाया हुआ है। 
भाषा की इस साझ की प्रतिक्रिया अच्छी भी है और बुरी भी। पंजाबियों के पंजाबी गर्व ने दो नदियों के निवासियों  में से हरियाणवी तथा हिमाचलियों को अपने से अलग कर दिया है। इसकी जड़ें सिखों द्वारा पंजाबी सूबे की मांग में हैं। (अनुवादक पृष्ठ छ दशकों से यह बात कहता आया है)। हम अपने भाग्य को कोस रहे हैं। एक दिन सुबह उठते ही हमें बताया गया कि हम पंजाबी नहीं हरियाणवी हैं। क्या यह हमारी ज़िन्दगी का उपहास नहीं? राजनीतिक दरार की उपज!
पंजाबी हां या गैर-पंजाबी, मुझे पंजाब पर गर्व है, जिसने हमें कुर्बान होने तथा आनन्द लेने का मार्ग दिखाया। आप दूरवर्ती मुम्बई तथा कोलकाता में भी किसी पंजाबी को भीख मांगता नहीं देखेंगे। सन् सैंतालीस में बेघर हुए पंजाबी गली-मोहल्लों में रेवड़ियां, भुजिया तथा अखबार बेचते तो देखे गए, परन्तु मांगते नहीं। 
देश के विभाजन के समय पंजाबी किसानों को उस ओर छोड़ी गई सेंजू ज़मीन के बदले इस तरफ रेतीली तथा बंजर  ज़मीन मिली, परन्तु सिख किसानों ने हौसला नहीं छोड़ा और सब्र-संतोष से नई तकनीकें अपना कर स्वयं को मिली बंजर ज़मीन की उपज 10-12 प्रतिशत ही नहीं बढ़ाई, अपितु 2-3 सौ प्रतिशत बढ़ा कर हरित क्रांति की नींव रखी। 
आज भारतीय कृषि में पंजाब सबसे अग्रणी है। हरियाणा भी बहुत पीछे नहीं। एक-दूसरे साथ लक्षित कर फसली उपज बढ़ा रहे हैं। यदि हरित इन्कलाब सांस लेने लगा है तो पशु पालकों ने चिट्टे (दूध) इन्कलाब का आह्वान करके सुस्त लोगों को सक्रिय किया है। 
बल्ले ओ! पंजाबी शेरो!!
अंतिका 
—बल्ले जट्टा बल्ले : नंद लाल नूरपुरी—
बल्ले जट्टा बल्ले, कल कौडी नहीं सी पल्ले
अज्ज तेरा सिक्का सारे देश विच्च चल्ले
बार विच्च छड आएओ, भरे घर बार नूं
काफले का घट्टा तूं ख्वाया संसार नूं
गोलियां दे वार तेरे सोहणियां ने झल्ले
बल्ले जट्टा बल्ले ...............
बंजरां, पहाड़ा ते उजाड़ां नूं संवार के
किड्डा तूं जवान कीता देश नूं उसार के
रात दिने मेहनतां दे मार-मार हल्ले
बल्ले जट्टा बल्ले..............
गये जित्थे गब्बरू पंजाब दीआं मावां दे
वहिण रोक दित्ते वड्डे-बड्डे दरियावां दे
लक्खां उत्ते भारी एह जवान कल्ले-कल्ले 
बल्ले जट्टा बल्ले..............।   

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