रूस व यूक्रेन जंग के दो साल—न रूस जीता, न यूक्रेन हारा !
यूक्रेन-रूस के युद्ध को दो साल हो गये हैं। इन दो वर्षों में दो बातें एकदम स्पष्ट हो गई हैं। एक, यह युद्ध अभी खत्म होने के आस-पास भी नहीं पहुंचा है और अगर इस पर जल्द विराम न लगाया गया तो तीसरे विश्व युद्ध को रोकना कठिन हो जायेगा। क्योंकि यह संसार को दो युद्ध कैम्पों में तो बांट ही चुका है। इसलिए यह विश्व युद्ध नहीं है, तो और क्या है? यूक्रेन डिफेंस कांटेक्ट ग्रुप, जो यूक्रेन के लिए सैन्य मदद का संयोजन करता है, में 63 देश हैं यानी संसार के संप्रभु राज्यों का लगभग एक तिहाई हिस्सा। दूसरी ओर अपने हथियारों की सप्लाई लिए बेलारूस, ईरान व उत्तर कोरिया रूस के साथ खुलकर खड़े हैं। साथ ही उज्बेकिस्तान, म्यांमार, माली व इरीट्रिया जैसे देश अपने व्यापार विस्तार से युद्ध को फंड कर रहे हैं और रूस को आर्थिक प्रतिबंधों से बचने में मदद कर रहे हैं। चीन, रूस का लंगोटिया यार है, नतीजतन पिछले साल रूस से उसका व्यापार 200 बिलियन डॉलर को पार कर गया।
दूसरी महत्वपूर्ण बात यह है कि यूक्रेन और रूस में से कोई भी युद्ध नहीं जीत रहा है, दोनों ही युद्ध हार रहे हैं। अगर इस युद्ध में, बल्कि किसी भी युद्ध में, अगर कोई स्पष्ट विजेता है तो वह है ग्लोबल सैन्य औद्योगिक कॉम्प्लेक्स। जब 24 फरवरी 2022 को रूस ने यूक्रेन पर फुल-स्केल आक्रमण किया था, तो अमरीका की बाइडेन सरकार ने इसका राजनयिक विरोध आरंभ किया था जोकि उतना ही महत्वपूर्ण था जितना यूक्रेन की सेना को रक्षा हेतु हथियार सप्लाई करने की व्यवस्था करना। अमरीका ने रूस को आर्थिक दर्द व राजनीतिक वनवास से दण्डित करने का प्रयास किया और इसलिए उसने आर्थिक प्रतिबंध लगाये व अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर सामूहिक रक्षा का आह्वान किया। उद्देश्य यह था कि कम्पनियां व देश मास्को से संबंध विच्छेद कर लें। लेकिन अब दो साल बाद रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन अमरीकी अधिकारियों की इच्छाओं के अनुरूप अकेले या अलग-थलग नहीं पड़े हैं। रूस की अपनी अंदरूनी ताकत है जो उसके विशाल तेल व प्राकृतिक गैस भंडारों पर आधारित है, वह अपनी आर्थिक व राजनीतिक क्षमता से पश्चिमी विरोध को बर्दाश्त कर सकता है। एशिया, अफ्रीका व दक्षिण अमरीका के अनेक हिस्सों में पुतिन का प्रभाव पहले जितना ही बरकरार है या बढ़ रहा है।
यहां तक कि पुतिन की अपने देश की सत्ता पर भी पकड़ पहले की तरह ही मजबूत है। जो बाइडेन द्वारा गजा में इज़रायल के युद्ध को समर्थन देने से भी रूस को लाभ मिल रहा है। अमरीका का पाखंड जग जाहिर हो रहा है कि वह रुसी हमलों में यूक्रेन के नागरिकों की हत्या की तो निंदा करता है, लेकिन इज़रायल का बचाव यह कहकर करता है कि वह फिलिस्तीनी नागरिकों को बचाते हुए हमले कर रहा है। लेकिन इसमें भी कोई दो राय नहीं हैं कि युद्ध का रूस पर गंभीर प्रभाव पड़ा है। यूरोप के अधिकतर हिस्से से उसके संबंध खराब हुए हैं। इंटरनेशनल क्रिमिनल कोर्ट ने पुतिन की गिरफ्तारी के वारंट जारी किये हैं। संयुक्त राष्ट्र ने बार-बार रूस के आक्रमण की निंदा की है। रुसी ब्लॉगर अंद्रेई मोरोजोव उर्फ मुर्ज, 44, जो यूक्रेन में फ्रंटलाइन सैनिक भी थे, ने अपनी हाल की पोस्ट में कहा था कि अक्तूबर में जब अव्दीवका के लिए चार माह का युद्ध आरंभ हुआ तो रूस के लगभग 16,000 सैनिक मारे गये और लगभग 300 सशस्त्र वाहन नष्ट हुए। हालांकि अब अव्दीवका पर रूस का कब्ज़ा हो गया है, लेकिन सैन्य अधिकारियों ने मुर्ज पर अपनी पोस्ट हटाने का दबाव डाला, जिसके चलते उसने आत्महत्या कर ली।
गौरतलब है कि रूस के युद्ध ब्लॉगर्स ने अधिक विश्वसनीय खबरें उपलब्ध करायी हैं, बजाय सरकारी टीवी के प्रोपेगंडा या सैन्य अधिकारियों के संक्षिप्त वक्तव्यों के। हालांकि सभी रुसी ब्लॉगर्स यूक्रेन में क्रेमलिन के युद्ध का समर्थन करते हैं, लेकिन उन्होंने उन समस्याओं को भी उजागर किया है जिनका सामना खराब योजनाओं व ज़रूरतों की अनदेखी करने की वजह से रुसी फौज को सामना करना पड़ रहा है। अब अगर दोनों रूस व यूक्रेन युद्ध हार रहे हैं तो जीत कौन रहा है? जाहिर है ग्लोबल सैन्य औद्योगिक कॉम्प्लेक्स। इस युद्ध के कारण 2022 में ग्लोबल सैन्य खर्च रिकॉर्ड 2.2 ट्रिलियन डॉलर तक पहुंच गया था। 2023 में अमरीका की हथियारों की ओवरसीज बिक्री 238 बिलियन डॉलर की हुई, जोकि एक रिकॉर्ड है। 2024 के लिए नाटो के सैन्य बजट में 12 प्रतिशत का इजाफा किया गया है जोकि बढ़कर 2.2 बिलियन हो गया है। ब्रिटेन के हथियार निर्माता बीएई सिस्टम्स ने 2023 में 3.4 बिलियन डॉलर का मुनाफा अर्जित किया, जोकि उसका आज तक का सबसे अधिक लाभ है। फरवरी 2022 से यूरोप की रक्षा कम्पनियों के शेयर के दामों में जबरदस्त वृद्धि हुई है- रहीनमेटल (367 प्रतिशत), थेल्स (78 प्रतिशत) और साब (244 प्रतिशत)। शेयर दाम वृद्धि में ब्रिटिश कम्पनियों ने अमरीकी कम्पनियों की तुलना में बेहतर प्रदर्शन किया है।
इस युद्ध का एक अन्य सबक यह भी है कि प्रतिबंध चांदी की गोली नहीं हैं कि उसके चलते ही आशानुरूप नतीजे बरामद हो जायेंगे। एनर्जी, आवश्यक वस्तुओं व टेक्नोलॉजी के लिए जी7 देशों ने रूस के बाज़ारों को काट दिया था। उन्होंने इंटरनेशनल फाइनेंस सिस्टम के उसके अधिकतर एक्सेस को भी ब्लाक कर दिया था, उसके सेंट्रल बैंक रिजर्व को स्थिर कर दिया था और उसके सैंकड़ों व्यक्तिगत व अन्य एसेट्स भी फ्रीज कर दिए थे, लेकिन ऐसा करने से भी रूस को न युद्ध करने से रोका जा सका और न ही उसकी अर्थव्यवस्था ध्वस्त हुई। इस युद्ध ने यह भी एक्सपोज कर दिया है कि घरेलू सप्लाई चेन कितनी क्रिटिकल हैं। यूक्रेन को जब सैन्य सप्लाई की ज़रूरत होती है तो उसे अपने सहयोगियों से वार्ता करनी पड़ती है। जब रूस को ऐसी आवश्यकता होती है तो वह अक्सर अपने नियंत्रण वाले उद्योगों में उत्पादन बढ़ा देता है।
-इमेज रिफ्लेक्शन सेंटर