महंगा पड़ सकता है सनातन धर्म का अपमान

बिहार के शिक्षा मंत्री चन्द्रशेखर ने दावा करके एक नया विवाद खड़ा कर दिया है कि ‘रामचरित मानस’ जैसे प्राचीन ग्रंथ में इतने हानिकारक तत्व हैं कि उनकी तुलना ‘पोटाशियम साइनाइड’ से की जा सकती है। यह बयान उन लाखों लोगों को आहत करने वाला है, जिनके घरों में नित ‘रामचरित मानस’ को ‘रामायण’ कह कर ससम्मान पढ़ा जाता है। लाखों लोग इस स्वभाव के भी है जिनके घरों में नियमित पाठ तो नहीं होता लेकिन शुभ विवाह के अवसर, जन्म दिन पर या फिर नया घर बनवाने पर रामचरित मानस का पाठ करवाया जाता है। गांव के अनपढ़ लोग भी सुन-सुन कर रामचरित मानस के दोहे व चौपाइयां कंठस्थ कर चुके हैं कि  समय-समय पर उनकी वाणी का हिस्सा बन कर प्रभावोत्पादक हो जाते हैं।
आज चुनाव में अपने आप को चर्चा में रखने के लिए बोल-कुबोल का चलन काफी बढ़ गया है। सनातन धर्म पर कटाक्ष कर राजनीतिक विवाद की तरह पेश करना नुक्सानदेह हो सकता है। इस बात का उन्हें अनुमान तक नहीं है। भारतीय लोकतंत्र का मैदान सीधा सपाट नहीं है। यह ऊबड़-खाबड़ है ही नहीं, फिसलन भरा भी है। 
सनातन का मसला तमिलनाडू से उठा और फिर बिना सोचे-समझे, बिना अर्थ विस्तार पर ध्यान दिये, बिहार और उत्तर प्रदेश में फैलता चला गया। वहां के नेता भी इसी तरह की बयानबाज़ी में शामिल रहने लगे। इस मुद्दे पर भाजपा को जितना फायदा होना था, वह जाहिर होने लगा है। भाजपा नेता प्रतिकार कर रहे हैं और व्यंग्य करते हुए मुस्कुरा रहे हैं। विपक्ष के लिए अब व्यंग्य वाण सम्भालना कठिन होता चला जायेगा। इस सवाल की जितनी भी चर्चा होगी, भाजपा के पक्ष में ही जाने वाली है। देश के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने अपने मंत्रियों से कहा है कि उन्हें सनातन धर्म पर सवाल उठाने वालों को कड़ी प्रतिक्रिया देनी चाहिए। मोदी के ऐसा कहने पर प्रहारात्मक क्षमता में इज़ाफा होता दिखाई दे रहा है। सनातन धर्म नाम की विस्फोटक सुरंग विपक्षी राजनीति की ज़मीन में तमिलनाडू की लोकल राजनीति के कारण जन्म ले पाई है। सनातन धर्म और ब्राह्मणों की सख्त आलोचना वहां की राजनीति की देन है, जिसका आदेश राम स्वामी नायकर पेरियार ने किया था। वे स्वयं को पश्चिम शैली का नास्तिक, बुद्धिवादी, धर्म-विरोधी, प्रगतिशील विचारों की दावेदारी पेश कर रहे थे। तब तमिलनाडू में कुछ ब्राह्मण सभी लाभप्रद जगहों पर विराजमान थे। सत्ता पर उन्हीं का कब्ज़ा रहता था। इसलिए पेरियार के आस-पास विरोधी विचारधारा वाले लोगों का जमावड़ा जमता चला गया। विशेष बात यह है कि इस लाइन में दावा कमज़ोर वर्ग के हितों को छूने लगा। कमज़ोर वर्ग के लोग इसे अपना समझने लगे। लेकिन इस राजनीति पर पकड़ अभी मजबूत जातियों की ही थी। यही वह कारण है कि बाबा साहेब अम्बेदकर पेरियार के आत्म-सम्मान आन्दोलन से अंतर बना कर चलते रहे। पहले जस्टिस पार्टी और द्राविड कषगम के ज़रिये बनी मुहिम ने कांग्रेस को सत्ता से उखाड़ फैंका।
 इधर के भारतीय तमिल नहीं जानते इसलिए हम पेरियार तथा उनके मानने वालों द्वारा इस्तेमाल की जाने वाली आक्रामक भाषा से अपरिचित हैं। उदयनिधि स्टालिन या फिर ए. राजा जो कुछ कह रहे हैं वह उस आक्रामक  भाषा के सामने बहुत कम है। पेरियार की भाषा के कारण ही कहा गया कि वह शेर की तरह दहाड़ता है। परन्तु अब देश के चुनाव के दिनों के पास आने पर ऐसे बयान विपक्ष को परेशान कर सकते हैं।