पानी के प्राकृतिक स्त्रोतों को सम्भालना ज़रूरी

हिमाचल प्रदेश पानी के प्राकृतिक स्त्रोतों का सरताज माना जाता है, लेकिन गर्मियों में यहां भी बहुत-से क्षेत्र पानी की कमी से जूझ रहे होंगे। हालांकि केंद्र सरकार ने हर घर तक नल द्वारा जल पहुंचाने के लिए योजना भी शुरू की है, लेकिन हिमाचल एक पहाड़ी राज्य है जहां यह योजना कामयाब करने के लिए लम्बा समय लग सकता है। सवाल यह है कि हिमाचल प्रदेश में ऐसा क्यों होगा? प्रदेश में जिस तरह पानी के प्राकृतिक स्त्रोतों कुओं, तालाबों, बावड़ियों आदि की संभाल में लापरवाही बरती जा रही है और जल प्रदूषण भी बढ़ रहा है, इन कारणों से आने वाली पीढ़ी को पीने वाले साफ पानी के संकट का समाना करना पड़ सकता है। कुछ समय पहले नीति आयोग द्वारा जारी एक रिपोर्ट के अनुसार देश में 2030 तक 40 प्रतिशत आबादी के पास पीने का स्वच्छ जल उपलब्ध नहीं होगा, जो काफी चिंताजनक बात है। 
जल संकट हमारे देश के लिए ही नहीं, बल्कि दुनिया भर के लिए एक बहुत बड़ी चिंता का विषय है। किसी ने यह बात बिल्कुल सही कही है कि तीसरा विश्व युद्ध पानी के लिए हो सकता है। भारत में जहां एक तरफ गर्मियों में सूखा जैसी स्थिति बन जाती है, वहीं बरसात के दिनों में भारत के कुछ राज्य बाढ़ की चपेट में भी आ जाते हैं। अगर सरकारें और प्रशासन बरसाती पानी को संभालने के लिए कुछ उपाय करें तो गिरते भू-जल स्तर को कुछ हद तक रोक सकता है। भारत में गिरता भू-जल स्तर भी बड़ी चिंता का विषय है। अगर देश में इसी रफ्तार से भू-जल स्तर गिरता रहा तो देश में रेगिस्तान जैसी स्थिति पैदा हो सकती है। जल संकट का मुख्य कारण इसका बेहिसाब दोहन है। जब प्राकृतिक साधनों का दुरुपयोग होगा तो लाज़िमी है कि देश के कुछेक क्षेत्रों में बारिश कम होगी, जहां बारिश कम होगी वहां जल संकट उत्पन्न होगा ही। बारिश ही प्राकृतिक जल स्रोतों को जल से भर सकती है, अगर बारिश ही नहीं होगी तो मौजूदा जल स्त्रोत भी प्यासे ही रहेंगे। इसलिए ज़रूरी है कि जब भी कहीं जल संरक्षण की बात हो, साथ ही प्रकृति को बचाने की भी बात ज़रूर की जानी चाहिए। प्रकृति का दोहन बंद होगा तो समय पर बारिश होगी। अगर पर्याप्त मात्रा में बारिश होगी तो यह देश को जल संकट से बचाने में मददगार साबित होगा। इसलिए जल के साथ प्रकृति को बचाना भी सरकार, प्रशासन व प्रत्येक नागरिक की नैतिक ज़िम्मेदारी है। जिस तरह अधिकतर स्थानों पर जल के प्राकृतिक स्त्रोत कुओं, तालाबों, बावड़ियों आदि की संभाल में लापरवाही बरती जा रही है और जल प्रदूषण भी बढ़ रहा है, इससे भावी पीढ़ी को पीने वाला साफ पानी बहुत मुश्किल से मिलेगा।
शहरों में नए तालाबों के निर्माण के लिए जगह कमी आड़े आ सकती है, लेकिन शहरों के आसपास के गांवों के किसानों को तालाबों से होने वाले फायदे बता कर उन्हें जल संरक्षण के प्रति जागरूक करना होगा। सरकार और प्रशासन को भी उचित स्थानों पर तालाबों का निर्माण करके जल संरक्षण की व्यवस्था करनी चाहिए।

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